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शिक्षक दिवस पर मिसाल: मुस्लिम बच्चों को मंदिर में कुरान-गीता पढ़ाती हैं दो हिंदू बहनें

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Published on: 5 Sep 2016 7:35 AM GMT
शिक्षक दिवस पर मिसाल: मुस्लिम बच्चों को मंदिर में कुरान-गीता पढ़ाती हैं दो हिंदू बहनें
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आगरा: मोहब्बत की नगरी आगरा में ताजमहल के जैसी ही एक मिसाल मलिन बस्ती में रहने वाली बहनें पूजा और नन्दनी हैं। जो मंदिर में बुलाकर मुस्लिम और हिंदू बच्चों को उर्दू और हिंदी सिखाती हैं। एक बहन को उर्दू का ज्ञान है, तो दूसरी को हिंदी का ज्ञान दोनों बहनें मिलकर हिंदू-मुस्लिम बच्चों को कुरआन और गीता के श्लोक सिखाती हैं। पूछने पर बहनों का कहना है कि यह काम वो दोनों सम्प्रदायों में आपसी भाईचारा कायम रखने की नियत से करती हैं क्योंकि जब हम एक-दूसरे के धर्मो को जानेंगे, तो ही उसका सम्मान कर पाएंगे। हमारे पास आ रहे हिंदू बच्चों को कलमे और मुस्लिमों को हनुमान चालीसा तक याद है।

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आगरा के भगवान टाकीज के पास संजय नगर कृपाल कालोनी की मलिन बस्ती में हिंदू-मुस्लिम की मिश्रित आबादी है। यहं की रहने वाली नन्दनी और पूजा को अलग-अलग हुनर सीखने का शौक था। नन्दनी ने हिंदी से पीजी किया है और पूजा ने अभी इंटर किया है। पूजा और नन्दनी ने पढ़ाई के साथ-साथ सिलाई-कढ़ाई ब्यूटीशियन आदि हुनर भी सीखे हैं। पूजा-नन्दनी की मां रानी कई काम कर लेती हैं और यही शिक्षा उन्होंने बच्चों को भी दी है।

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आगे की स्लाइड में जानिए कहां से ली इन्होंने उर्दू और अरबी की तालीम

दो वर्ष पहले मोहल्ले की संगीता बेगम ने दोस्ती में पूजा को उर्दू सीखने को कहा और पूजा ने उर्दू सीखना शुरू कर दिया। कुछ ही महीने में पूजा को उर्दू भी आ गई और कुरान भी पढ़ने लगी। संगीता बेगम की मां मुस्लिम और पिता हिंदू थे और संगीता की शादी मुस्लिम परिवार में ही हुई थी। पहले संगीता पढ़ाती थी, लेकिन पारिवारिक स्थितियों में घिरने के बाद उसने पढ़ाना छोड़ दिया। पूजा के उर्दू पढ़ने के दौरान ही कुछ और बच्चे भी पढ़ने आ जाते थे। मोहल्ले में सभी गरीब हैं। इस कारण मोहल्ले के लोग बच्चों को उच्च तालीम नहीं दे पाते थे। उर्दू और कुरआन समझने के बाद जब पूजा ने मोहल्ले के मुस्लिमों की हालत देखी, तो उसे लगा कि पढ़ाई को व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। उसने गरीब मुस्लिम बच्चो को पढ़ाने का निर्णय लिया और उसने अपनी बहन नन्दनी और मां रानी से बच्चों को पढ़ाने की इच्छा जताई।

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मां और नन्दनी तुरन्त राजी हो गई तो दो वर्ष पहले घर पर ही बच्चों को मुफ्त पढ़ाने की मुहिम शुरू की गई। कभी घर, तो कभी गली में बच्चों की पढ़ाई शुरू हो गई। जब बच्चों की संख्या 35 से ज्यादा हो गई, तो जगह की दिक्कत होने लगी। मोहल्ले के बजरंग बली मंदिर में काफी खाली जगह थी। मंदिर पर दबंगों की नजर रहती थी और दिन भर लोग जुआ और शराब पीते रहते थे। ऐसे में मोहल्ले के लोगों ने एकमत होकर मोहल्ले के बजरंगबली मंदिर में बच्चों को पढ़ाने की शुरुआत कराई।

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छोटी बहन पूजा को देखकर बहन नंदनी के मन में भी शिक्षा का ज्ञान बाटने की भावना जाग्रत हुई। नन्दनी भी आने वाले बच्चो को हिंदी के साथ-साथ गीता के श्लोक और कबीर के दोहे पढ़ाती है। नंदनी का कहना है कि छात्र चाहे हिंदू हो या मुस्लिम उसे शिक्षा का ज्ञान मिलना जरुरी है और पढ़ाई में जाति-धर्म नहीं होना चाहिए। शिक्षक ही समाज का सुधारक होता है।

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पूजा का कहना है कि तालीम कोई भी गलत नहीं होती। जब हम उर्दू में कुरान और हिंदी में गीता पढ़ाते हैं, तो मां बहुत खुश होती है। आज लोग दूसरे के धर्मों के बारे में गलत बातें कहते हैं और एक-दूसरे से लड़ते हैं। अगर लोग दूसरे धर्मों को जानेंगे, तो ही सम्मान कर पाएंगे। मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर मोहल्ले में हमारे स्कूल को जगह और सड़क की मांग करेंगे।

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मोहल्ले की मुन्नी बेगम, सरोज रानी, साहिद मुख्तार आदि सभी लोग स्कूल से खुश हैं। मोहल्ले वालों का कहना है कि आज तक यहां कभी हिंदू या मुस्लिम में कोई झगड़ा नहीं हुआ। हमें कभी इस तरह की पढ़ाई से कोई परेशानी नहीं थी। मुस्लिम बच्चों को उर्दू पढ़ाने को टीचर हजार रुपए महीना मांगते हैं, जो किसी के बस में नहीं है। आज तक यहां सिर्फ नेता वोट मांगने आए हैं। विकास के नाम पर कभी यहां एक ईंट भी नहीं आई। पूजा और नन्दनी मोहल्ले के लाए वरदान हैं, जो बच्चों को मुफ़्त पढ़ाती हैं।

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