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HAPPY TEACHERS DAY: साइकिल वाला गुरु, सड़क वाली पाठशाला
लखनऊ: मैं अकेला ही चला था जानिब-ए- मंजिल मगर.. लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया.....कुछ ऐसी ही कहानी है देश के सबसे अनोखे टीचर आदित्य की। दिल में भारत के हर बच्चे को शिक्षित बनाने के जूनून में आदित्य अब तक कश्मीर से कन्याकुमारी तक साइकिल से सफर कर चुके हैं और उनकी इस मुहिम से एक करोड़ से ज़्यादा बच्चे फायदा उठा रहे हैं और तीन लाख लोग जुड़ चुके हैं। इस टीचर्स डे अपना भारत इस बेमिसाल गुरु को सलाम करता है।
कहते है शिक्षा हर परेशानी का हल होती है। अगर जिंदगी में कोई भी शिक्षा की एहमियत समझ जाए, तो उसे जीने की सही राह खुद ब खुद मिल जाती है । कुछ ऐसा ही हुआ लखनऊ के रहने वाले आदित्य के साथ, आर्थिक रूप से कमज़ोर आदित्य को बचपन से ही पढ़ाई का बहुत शौक था। पर आर्थिक समस्या आड़े आ रही थी, लेकिन कहते हैं ना कि किसी चीज़ के प्रति सच्ची चाह हो, तो हर मुश्किल घड़ी में उसे पाने की राह मिल जाती है और इसी अपनी इसी चाह को बरक़रार रखने के लिए आदित्य ने ट्यूशन पढ़ा कर अपनी पढ़ाई पूरी की।
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आदित्य का मक़सद सिर्फ खुद शिक्षित होने तक नहीं था बल्कि पढ़ाई पूरी होने के बाद भी इसी जज्बे को बरक़रार रखते हुए आदित्य ने ट्यूशन पढ़ाना नहीं छोड़ा। ट्यूशन पढ़ाने के दौरान आदित्य का सामना ऐसे बच्चों से हुआ जो पढ़ना तो चाहते थे, लेकिन उनके के पास पढ़ाई के पैसे नहीं थे। तब आदित्य ने ठान लिया कि वो आम इंसान की निशानी साइकिल के ऊपर एक चलता-फिरता स्कूल खोल कर गरीब बच्चों को शिक्षित करेंगे। बस फिर क्या बच्चों की शिक्षा के प्रति लगन ने लखनऊ के आम इंसान को बना दिया। ‘साइकिल वाले गुरु जी और उनकी साइकिल बन गई सड़क वाली पाठशाला।'
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साइकिल पर स्कूल और झुग्गी बस्ती में अधनंगे बच्चों की क्लास कुछ ऐसा ही इस ख़ास गुरु का अंदाज़। साइकिल की ट्रिंग-ट्रिंग सुनते ही बच्चे दौड़ कर अपने प्यारे गुरु के पास पहुच जाते हैं और शुरू हो जाती सड़क की पाठशाला। अपने सपने को साकार करने के लिए आदित्य ने लखनऊ से शुरू हुई इस मुहीम की कामियाबी के लिए साइकिल से कश्मीर से कन्याकुमारी तक का सफर तय कर लिया है और आजकल आदित्य तेलंगाना के गरीब बच्चों को पढ़ाने में लगे हुए हैं। देश में शिक्षा की ललक जगाने के लिए सफर तय चुके आदित्य कुमार का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड समेत और भी रेकॉर्ड्स में दर्ज है। जो उनकी काबिलियत को सलाम करती नज़र आती है।
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हर बच्चे को शिक्षित करने का जज़्बा और साइकिल की सवारी ही आदित्य की पहचान बन गयी है। इस जज़्बे को देखते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी उनके काम की सराहना की। देश में अपनी मुहिम के लिए तीन लाख वालेंटियर्स को जोड़ने वाला यह ख़ास गुरु बच्चों का भी दुलारा है। गरीब तबके के बच्चों को पढ़ाने के एवज़ में आदित्य को इन बच्चों का प्यार मिलता है। हर टीचर्स डे पर स्टूडेंट अपने ख़ास गुरु को अपने हाथों से कार्ड बना कर देते हैं, जिन्हें आदित्य अपनी जमा पूंजी मानते हैं।
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नेक और अलग काम करना जितना अच्छा दिखता है, उसे निभा पाना उतना आसान नही होता। इस चलती-फिरती पाठशाला के गुरु को भी अपने जीवन में बहुत परेशानिया उठानी पड़ी हैं। ट्यूशन से ही इनका गुज़ारा चलता है, लेकिन जब ट्यूशन नहीं होता, तो एक वक़्त की रोटी की नसीब नहीं होती। घरवालों का साथ छूट गया। रिश्तेदारो ने ताने मारे, लेकिन शिक्षा के प्रति अपनी जिंदगी समर्पित कर चुके आदित्य को आज अगर कुछ दिखता है, तो सिर्फ उन मासूम चेहरों की पुकार जो उनसे शिक्षा का तोहफा मांगती हैं।