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ये है देश की पहली GATEWOMAN, उम्र 22 साल, ड्यूटी करती है 12 घंटे
लखनऊ: जिंदगी एक सफर है सुहाना, यहां कल क्या हो किसने जाना....ये लाइनें अक्सर आप गुनगुनाते होंगे। इन पंक्तियों की समझ मुश्किल वक्त में ही आती है। अपने जीवन में हमेशा ये याद रखे कि जिंदगी में कभी भी हार नहीं मानें, पहले उसे पटरी पर लाए और फिर उसे ट्रेन की तरह दौड़ाए। क्योंकि जिंदगी चलने का नाम है। कुछ ऐसा ही कहना है सलमा बेग का। सलमा ने महिला दिवस के मौके पर सभी को ये संदेश दिया।
ये कहानी है 22 साल की मिर्जा सलमा बेग की,जिसने अपने काम से साबित कर दिया है कि महिलाएं किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं है। सलमा की पहली महिला गेटवुमैन है। उससे पहले किसी महिला ने यह काम नहीं किया है। गरीब मुस्लिम परिवार से आने वाली सलमा की लखनऊ के मल्होर स्टेशन पर ड्यूटी है। उसके पिता भी गेटमैन की नौकरी करते थे, लेकिन जब उन्हें कम सुनाई देने लगा तो वे रिटायर हो गए। पिता के रिटायर होते ही परिवार की माली हालत खराब हो गई। परिवार में कमाने वाले कोई और नहीं था। परिवार का खर्च पिता की मामूली पेंशन से चल नहीं पा रहा था। सलमा की मां भी लकवाग्रस्त है। ऐसे में सारी जिम्मेदारी सलमा पर आ गई।
आसान नहीं था डगर
उनके बुलंद हौसले के सामने आसमान भी घुटने टेकता नजर आएं और काम करने की लगन ऐसा कि लगातार काम करने के बाद भी मुस्कान उसका साथ नहीं छोड़ती ये है सलमा बेग। जो किसी परिचय की मोहताज नहीं है, उनके इस हौसले ने उसे जो पहचान दी है इससे उसे लखनऊ में ही नहीं पूरे देश में लोग जानने लगे हैं। सलमा हर उस महिला के लिए, सिर्फ महिला ही क्यों हर उस इंसान ने लिए एक मिसाल है जिसे लगता है जिंदगी ने उसके लिए सारे रस्ते बंद कर दिए हैं।
कहते हैं मंजिल हासिल करने के लिए हर इंसान को कुछ कीमत चुकानी पड़ती है, सलमा ने भी इस मुकाम को हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत की है। इतनी छोटी सी उम्र में सलमा ने अपने पूरे परिवार का जिम्मा अपने नाजुक कंधों पर उठा रखा है। जिस काम को करने में शायद कोई भी लड़की कतराती, सलमा ने उसी काम को कुछ यूं किया कि आज सारा देश उसके ऊपर गर्व करता है। एक दिन में सलमा 12 घंटे की ड्यूटी करती हैं और हर घंटे करीब 10 ट्रेनों को पास कराती है। सलमा बिना थके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान लिए काम करती रहती है।
घर में ली पिता की जगह
पुरुष प्रधान समाज में जहां बेटे को पिता का उत्तराधिकारी समझा जाता है । सलमा ने अपने परिवार की जिम्मेदारी निभाते हुए समाज के उस सोच को भी बदलने पर मजबूर किया है। जिस उम्र में बच्चे दोस्तों के साथ मौज मस्ती और घुमते-फिरते नजर आते हैं उस छोटी सी उम्र में सलमा ने पिता की जगह ले ली। सलमा ने बताया कि साल 2010 में इनके पिता मिर्जा सलीम बेग की तबियत काफी खराब हो गई थी।
ऐसे में रोज ड्यूटी पर जाने से उनकी सेहत गिरती जा रही थी। इसी बीच मां अक्लीमुन्निशां को पैरालिसिस का अटैक पड़ गया। परिवार के हालात बिगड़ने लगी। ऐसे में एक दिन उसने फैसला किया कि वो अपने पिता का काम संभालेगी। रेलवे विभाग ने उनकी अर्जी पर विचार किया और पिता की जगह काम करने की इजाजत मिल गई। इस तरह सलमा महज 20 साल की उम्र में देश की पहली गेटवुमन बन गई।
खुद के लिए भी वक्त नहीं
सलमा को लगातार काम करने के बाद दोस्तों-रिश्तेदारों से मिलने तक का समय नहीं मिल पाता। फ़ोन पर बात हो जाती है। सलमा ने बताया कि अटेंडेंस लगाने के बाद वो सुबह 8 बजे तक भरवारा क्रॉसिंग पहुंचती है। वहां ड्यूटी बुक में अपना चार्ज रात वाले गेटमैन से लिखित में लेती है। इसके बाद शुरू हो जाता है जिम्मेदारी से क्रॉसिंग बंद कर रेलगाड़ियों और मालगाड़ियों को पास कराने और क्रॉसिंग खोलने का काम। कई बार तो वो कई हफ़्तों तक अपने परिवार से फ़ोन पर भी बात नहीं कर पाती है।