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TV पर आने वाले वो TOP 8 ADS, जिन्होनें हर घर में मचाया धमाल...
लखनऊ: टीवी पर हम कोई सीरियल देख रहे हो या फिर कोई फिल्म कोई संगीत या समाचार हर ब्रेक में नया-नया अंदाज लेकर विज्ञापनों का आना तो तय है। कई बार हम 'एड' आते ही चैनल बदल देते हैं, लेकिन वहीँ कुछ टेलीविज़न एड ऐसे भी रहे हैं, जिन्होनें अपनी क्रिएटिविटी, ह्यूमर, और पंचलाइन से दर्शकों को टीवी के आगे ठहरने को मजबूर कर दिया।
एक छोटा-सा विज्ञापन क्या नहीं कर सकता, हिट हो जाए तो सामान्य से उत्पाद को आसमान की बुलंदियों तक पहुंचा सकता है। विज्ञापन की बानगी देखिए ‘ठंडा मतलब कोकाकोला’ हो या ‘सर उठा के जियो’ और ‘कुछ मीठा हो जाए’ जैसे विज्ञापन सभी की जुबान पर चढ़ गए हैं।
विज्ञापनों को अपना उद्देश्य रेडियो या टेलीविजन के प्रसारण के थोड़े से समय या समाचार-पत्रों के छोटे-से हिस्से में भी पूरा करना पड़ता है, बावजूद इसके इनमें क्रिएटिविटी देखते ही बनती है।
इस बात में भी कोई शक नहीं कि, मैगी, सॉस और साबुन-शैंपू सहित कई प्रोडक्ट्स की बिक्री में वृद्धि की वजह ये क्रिएटिव विज्ञापन ही हैं।
ऐसे में न्यूज़ट्रैक.कॉम आज आपको उन 8 ‘टीवी विज्ञापनों’ से रूबरू करवाने जा रहा है जिनकी बदौलत उन ‘प्रोडक्ट्स’ को भारतीय बाजार में जबरदस्त तरक्की और नई पहचान मिली।
पार्ले-जी- साल 1982 में पार्ले-जी का पहला एड टीवी पर आया। इस एड में दो बच्चे अपने हट्टे-कट्टे दादा जी के पास से पार्ले-जी बिस्किट चुराते हैं लेकिन तभी दादा जी उन्हें पकड़ लेते हैं और कहते है, “हमको पता है जी सबको पता है जी, बरसों से चाहत अपनी यही है जी स्वाद भरे शक्ति भरे”- ‘पार्ले जी’। बच्चों की पसंद और सेहतमंद बिस्किट दोनों की खूबियाँ एक ही विज्ञापन में देखकर धीरे-धीरे उपभोक्ता इस बिस्किट के दीवाने हो गए और बाजार में पार्ले-जी की बिक्री में इजाफा होता ही गया।
फेना- कुछ ‘विज्ञापन’ टीवी पर अपने प्रेजेटिंग स्टाइल से ज्यादा अपनी ‘टैगलाइन’ की वजह से हर घर में जाने गए उन्हीं में से एक है ‘फेना’ । फेना के लिए इस्तेमाल की गई टैगलाइन ‘फेना ही लेना’ लोगों को इतनी पसंद आई कि लोगों को लगने लगा, ‘अगर कपड़ा अच्छे से साफ़ करना है तो ‘फेना ही लेना’ हैं’।
निरमा- ‘दूध सी सफेदी, निरमा से आए, रंगीन कपडा भी खिल-खिल जाए ‘सबकी पसंद निरमा’...शायद ही कोई ऐसा घर होगा जहां इस टैगलाइन ने धमाल न मचाया हो। निरमा ब्रांड के इस एड ने घर की सभी बेटी, बहुओं और लड़कियों को कपड़ा चमकाने की तरकीब जो बता दी, निरमा लाओ और झट से गंदे से गंदा कपड़ा चमकाओ। कुछ ऐसी ही आइडियोलॉजी पर आधारित ये विज्ञापन टीवी पर आते ही छा गया इस विज्ञापन ने निरमा ब्रांड को देखते ही देखते आसमान की ऊँचाइयों पर पहुंचा दिया।
एमडीएच मसाला- वो सिर पर लाल पगड़ी और आँखों पर चश्मा लगाए हुए शादी के जश्न में शामिल बूढ़े अंकल तो आप सभी को याद ही होंगे। क्या हुआ भूल गए क्या? अरे! वही जिन्होनें आपको कभी एमडीएच मसाले के बारे में बताया था और गाते हुए कहते थे- ‘असली मसाले सच-सच, एमडीएच-एमडीएच”।
इस विज्ञापन ने एमडीएच मसालों को तो पहचान दी ही साथ ही साथ 94 साल के बूढ़े अंकल धर्मपाल गुलाटी को भी फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया
कॉम्प्लान- फूड ऐंड बेवरेज कंपनी क्राफ्ट हाइंज इंडिया के न्यूट्रिशन ड्रिंक ब्रांड ‘कॉम्प्लान’ का पहला विज्ञापन आते ही घरों में बच्चों के बीच संघर्ष छिड़ गया। बच्चे अपने-अपने दोस्तों को ये साबित करने में लग गए कि, ‘वो भी कपिल खुराना है। ’ अब आप सोच रहे होंगे कि कपिल खुराना कौन, तो बता दें कि हम उसी ‘कपिल खुराना’ की बात कर रहे हैं जिससे कॉम्प्लान के एड में बच्चे चौंककर पूछते है, ‘अरे! खाता क्या है। ’
‘आई एम ए कॉम्प्लान बॉय’ विज्ञापन ने दर्शकों व बच्चों के दिमाग पर ऐसा असर किया कि, चिढ़ाने को बच्चे आपस में ही पूछने लगे, ‘मम्मी ने कॉम्प्लान नहीं दिया क्या?
मारुति- कहते हैं अगर किसी काम को पूरी मेहनत और लगन से किया जाए तो उसका परिणाम हमेशा बेहतर ही होता है। कुछ ऐसा ही हुआ साल 2005 के मारुति कार के विज्ञापन में, हिंदी के साथ साथ पंजाबी तड़के का ये एड व एक बच्चे का मासूम जवाब मारूति की खासियत को बताने में सफल हो जाता है।
पूरे घर में अपनी कार घुमाते हुए छोटू से जब पापा कहते हैं, अरे! बस कर कि करा, तो छोटू का जवाब होता है, ‘पापा की करां, पेट्रोल खत्म ही नहीं होंदा’ सरल शब्दों में कार की माइलेज को इतने क्रिएटिव तरह से प्रेजेंट करना खुद में काबिल-ए-तारीफ है।
डेटॉल- ‘एक कदम आगे’, जी हां। एक कदम आगे होना ही पड़ता है जब आपके साथ हो छोटे-छोटे नटखट से शैतान बच्चे. साल 2013 में हर घर की मां बच्चों के लिए और सतर्क हो गई, जब टीवी पर उन्होनें देखा। डेटॉल का वो एड जहां एक माँ अपने बच्चे को बाहरी गंदगी से बचाने के लिए डेटॉल रखने की सलाह दे रही है, जिसे देख आम जिंदगी की माओं ने भी बच्चों को बीमारियों से बचाने के लिए डेटॉल रखना शुरू कर दिया।
बता दें कि, डेटॉल का ‘एड’ आज टॉप पॉपुलर विज्ञापनों में शुमार है।
पोलियो- विज्ञापनों की दुनिया की एक जो सबसे ख़ास बात रही है, वो ये है कि, ‘विज्ञापनों ने न सिर्फ प्रोडक्ट्स को बेचने तक के लिए ही जहमत की, बल्कि समाज में जागरूकता फैलाने का भी काम किया। हालिया टीवी चैनलों पर आ रहा ‘बेटी-बचाओ बेटी पढाओ’ विज्ञापन हो या ‘स्वच्छ भारत स्वच्छ निर्माण’ ये कोई आज की ही बात नहीं है, बल्कि काफी समय पहले से ही टीवी और प्रिंट माध्यमों से ऐसे विज्ञापनों को जागरूकता फैलाने के मकसद से जन-जन तक पहुंचाया जा रहा था। इन्हीं में एक था....बहुचर्चित ‘एड ‘पोलियो’ का जिसकी टैगलाइन ‘दो बूँद जिंदगी की’ एक चिंगारी थी समाज को जागरूक करने के लिए ताकि लोग अपने बच्चों को बचपन में पोलियो ड्राप पिलाना न भूले।
गौरतलब है कि, विज्ञापन प्रभावशाली ढंग से संप्रेषित अथवा प्रचारित होने वाला एक संदेश होता है। अन्य शब्दों में, विज्ञापन का अर्थ ‘विशेष प्रकार का ज्ञापन’ करना होता है, विज्ञापित होने वाला संदेश यदि विशिष्टता लिए हुए हो, तो उसका प्रभाव भी उसी प्रकार का ही होता है ।