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कान में पिघलते शीशे की तरह हैं तलाक के '3 शब्द', महसूस करो, तो हो दर्द
संध्या यादव
लखनऊ: तलाक…तलाक…तलाक… बस टूट गया तुम्हारा साथ। तोड़ दी तुमने वो हर कसम, जो कभी मेरे साथ जीने के लिए खाया करते थे। भूल गए तुम वो हर वादा, जो तुमने मेरी हिफाजत के लिए इस जमाने से किया था। आखिर क्या जुर्म है मेरा? दिल नहीं मान पा रहा है कि क्या तुम वही हो, जिसने सिर्फ मेरे लिए इस समाज की रस्मों को तोड़ दिया था। जिसने मेरी मोहब्बत में सब कुछ भुला दिया था। आज तुमने मेरी मोहब्बत को ‘तलाक’ जैसे घिनौने शब्दों से नापाक कर दिया। तुमसे दूर होने के डर से मेरी रूह कांप जाती थी और तुमने मुझे इन अल्फाजों को कहकर जैसे जिंदगी से ही जुदा कर दिया।
कहने को तो वो सिर्फ अल्फाज हैं, लेकिन जिन्होंने इसे झेला है, उनके लिए यह किसी जलते अंगारे को निगलने से कम नहीं है। खुदा से डरने के बाद शायद यही वो बात होगी, जिससे मुस्लिम महिलाएं सबसे ज्यादा डरती होंगी। आखिर डरें भी क्यों ना??? अगर उनके शौहर का दिल किसी और पर आ जाए, तो इसका खामियाजा बेचारी महिलाएं भुगतती हैं। अगर शौहर को बीवी की कोई बात नहीं पसंद आए, तो इसमें भी उसी को झेलना पड़ता है।
कितनी अजीब बात है कि जिस रिश्ते को क़ुबूल करने में लोग इतना समय लगाते हैं, जिस हमसफर के साथ सात जन्मों तक जीने-मरने की कसमें खाते हैं, उनसे जरा सी नाराजगी होने पर केवल तीन शब्दों से उनकी जिंदगी को नरक से भी बदतर बना देते हैं। जिंदगी को हसीं बनाने में जहां प्यार के वो तीन शब्द मोहब्बत की बिसारद बनाने का काम करते हैं, वहीं ‘तलाक’ के तीन शब्द किसी महिला के लिए दर-दर भटकने का कारण भी बन जाते हैं।
कहने को ये शब्द बड़े ही आसान से साधारण होते हैं, लेकिन जिस महिला के कानों में पड़ते हैं, उनके कान में किसी पिघले शीशे की तरह उतरते हैं। एक औरत जो रात-रात भर जगकर अपने पति और बच्चों का ख्याल रखती है। अपनी हर ख़ुशी को शौहर की ख़ुशी में भुला देती है। उसी शौहर को अपनी ख़ुशी के आगे कुछ नहीं दिखता है। अगर इतनी ही ख़ुशी प्यारी होती है, तो आखिर ‘निकाह’ करके लाते ही क्यों हो?
क्यों उसे मां बनाते हो? क्या औरत से सिर्फ जिस्मानी रिश्ता तुम्हें उससे निकाह के लिए मजबूर करता है। अगर नहीं तो आखिर किस गुनाह की सजा उसे देते हो? कभी उसकी आंखों में भी झांककर अगर देखा होता कि उसका तुम्हारे सिवा कोई नहीं है? कौन उसके बच्चों का ख्याल रखेगा? ‘तलाक’ बोलने वालों जरा सोचकर देखो कि अगर तुम्हारे अब्बू ने भी तुम्हारी अम्मी को तलाक दे दिया होता, तो क्या तुम आज ये सब करते ?
जी हां, एक तरफ जहां आज पूरे देश भर में तीन तलाक सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है, वहीं इस मुद्दे को आज से करीब 35 साल पहले डायरेक्टर बी.आर. चोपड़ा ने अपनी फिल्म ‘निकाह’ में उठाया था। कैसे एक महिला की जिंदगी तीन तलाक और हलाला जैसी बातों के चलते नरक बन जाती है, इसका फिल्मांकन फिल्म ‘निकाह’ में बखूबी’ किया गया था। कम बजट की यह फिल्म अपने टाइम की काफी हिट फिल्म साबित हुई थी। एक तरफ आज जहां तीन तलाक के मुद्दे ने राजनीतिक बहस का रूप लिया है, वहीं अपने टाइम पर फिल्म ‘निकाह’ ने सामाजिक बहस को भड़काया था।
आगे की स्लाइड में जानिए क्या थी फिल्म ‘निकाह’ की कहानी
क्या थी फिल्म 'निकाह' की कहानी: फिल्म ‘निकाह’ शरिया कानून पर बेस्ड फिल्म है, जिसमें हैदर (राज बब्बर) और निलोफर (सलमा आगा) कॉलेज में साथ-साथ पढ़ते हैं। हैदर एक जाना माना कवि है। दिल ही दिल में उसे निलोफर से प्यार है। पर वह इस बात से अनजान रहता है कि निलोफर वसीम (दीपक पराशर) से प्यार करती है। वसीम एक नवाब होता है। जल्द ही निलोफर और वसीम शादी कर लेते हैं। कुछ ही टाइम में हैदर एक मैग्जीन का एडिटर बन जाता है। वसीम अपने नए बिजनेस में काफी बिजी हो जाता है। देखते ही देखते उनकी शादी को एक साल पूरा हो जाता है और शादी की पहली सालगिरह पर निलोफर एक पार्टी रखती है।
पार्टी खत्म भी हो जाती है सारे मेहमान चले जाते हैं, लेकिन वसीम नहीं पहुंच पाता है। ऑफिस से थका-हारा जब वसीम घर लौटता है, तो निलोफर उससे शिकायत करती है। इस पर वसीम नाराज हो जाता है। दोनों में तकरार बढ़ती है और इसी बात पर वसीम निलोफर को तीन बार तलाक कह देता है। निलोफर की मानों जिंदगी ही खत्म सी हो जाती है। शरियत के अनुसार दोनों का तलाक हो जाता है। बाद में वसीम को अपनी भूल का एहसास होता है। मजबूर वसीम कुछ नहीं कर पाता है।
निलोफर भी हैदर की मैगजीन में काम शुरू कर देती है। धीरे-धीरे उसे लगता है कि हैदर उसे प्यार करता है। वहीं दूसरी ओर वसीम निलोफर को घर वापस लाने की हर संभव कोशिश करता है। पर निलोफर तैयार नहीं होती है। इसके बाद निलोफर को पाने के लिए वसीम की जद्दोजहद को दिखाते हुए फिल्म की कहानी आगे बढ़ती है।
फिल्म का वो सीन आज भी लोगों के जेहन में है। जब वसीम बने दीपक पराशर निलोफर यानी की सलमा आगा को 'तलाक...तलाक...तलाक' बोलते हैं। इसी सीन की वजह से इस फिल्म को ना केवल दर्शकों की बल्कि क्रिटिक्स का भी अच्छा रिस्पांस मिला था।
फिल्म 'निकाह' ने ना जाने कितने ही लोगों की आंखें खोली थी। बता दें कि वर्तमान में 'तीन तलाक' का मुद्दा सबसे ज्यादा गरमाया हुआ है। टीवी चैनलों से लेकर अखबारों तक बस तलाक ही तलाक छाया हुआ है। बता दें कि पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित कई इस्लामी देशों में ट्रिपल तलाक प्रतिबंधित है। महिलाओं की जिंदगी को तीन शब्दों से बर्बाद कर दी जाने वाली इस प्रक्रिया पर तलाक को गैरकानूनी घोषित किए जाने की मांग की जा रही है। भारत जैसे देश में केवल तीन बार तलाक कह देने से मिया-बीवी का रिश्ता अलग हो जाता है। लेकिन कई मुस्लिम देशों में ये उच्चारण एक ही बार में ना कर के तीन महीने में करने का नियम है। जिससे पति को तीसरे और आखिरी बार तलाक के उच्चारण से पहले अपने फैसले पर ठीक से विचार करने का पर्याप्त मौका मिल सके।
इंडिया में मुस्लिम पर्सनल लॉ से जुड़े कोई संहिताबद्ध कानून नहीं हैं। वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे रूढ़िवादी मुस्लिम संगठन ट्रिपल तलाक पर प्रतिबंध नहीं लगाना चाहते। उनके लिए यह शरियत के खिलाफ है। पर तीन तलाक ना जाने कितनी ही महिलाओं की जिंदगी उजाड़ चुके हैं, इसकी सच्चाई से वह वाकिफ नहीं होना चाहते हैं।
आगे की स्लाइड में देखिए फिल्म 'निकाह' के हिट गाना 'दिल के अरमां आंसुओं में बह गए'
सौजन्य: यूट्यूब
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