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संन्यासी से सिंहासन तक: छात्रसंघ चुनाव में मिली एक हार ने अजय को बनाया योगी आदित्यनाथ
... और एक हार ने उसे बुलंदी तक पहुंचा दिया साल 1991 में उत्तराखंड के छोटे से कस्बे कोटद्वार में छात्रसंघ चुनाव के दौरान अजय बिष्ट को हार का सामना करना पड़ा।
लखनऊ: ... और एक हार ने उसे जीत की बुलंदी तक पहुंचा दिया। साल 1991 में उत्तराखंड के छोटे से कस्बे कोटद्वार में छात्रसंघ चुनाव के दौरान अजय बिष्ट को हार का सामना करना पड़ा। इस हार ने अजय को पूरी तरह से झकझोर दिया और इसी के साथ योगी के लिए सुनहरे भविष्य का द्वार भी खुल गया।
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कोटद्वार डिग्री कॉलेज में छात्रसंघ चुनाव हारने के बाद योगी ने अपने मामा महंत अवैद्यनाथ को चिट्ठी लिखकर गोरखपुर बुलाने का अनुरोध किया। इसके बाद योगी गोरखपुर पहुंचे। अजय सिंह बिष्ट से योगी आदित्यनाथ बने। देखते ही देखते योगी ने पूर्वांचल की राजधानी कहे जाने वाले गोरखपुर में अपने नाम का लोहा मनवा लिया और फिर यूपी में सत्ता के सिंहासन तक पहुंचे।
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यमकेश्वर ब्लाॅक के पचुर गांव से कोटद्वार योगी स्नातक (बीएससी) की पढ़ाई के लिए आए थे। अजय शुरू से ही इंट्रोवर्ट (अंतर्मुखी) स्वभाव के थे। लिहाजा वह इस कस्बे में अपनी अलग पहचान बनाना चाहते थे। यही कारण था कि उन्होंने छात्रसंघ चुनाव का सरल-सहज रास्ता चुना।
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अजय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) से तो जुड़े थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिल पाया था। उस समय एबीवीपी ने महासचिव पद पर दीप प्रकाश बिष्ट को टिकट दे दिया, तब समर्थकों के कहने पर योगी बागी होकर चुनाव लड़ गए। नतीजा यह हुआ कि अजय पांचवें पायदान पर रहे। इसी हार ने अजय के लिए उनके भविष्य की धमाकेदार जीत की दास्तां लिखी।
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साल 1992 में योगी गोरखपुर चले गए और फिर वहीँ के होकर रह गए। यहां महंत अवैद्यनाथ के पास पहुंचने के बाद अजय ने उनसे दीक्षा ली।
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इसके बाद उन्होंने अपने पिता आनंद सिंह बिष्ट को चिट्ठी भेजी, जिसमें उन्होंने अपने पिता को सारी परिस्थितियों से अवगत कराते हुए लिखा कि अब 'अजय सिंह बिष्ट' मर गया है। अब सिर्फ 'योगी आदित्यनाथ' का ही अस्तित्व है।
अगली स्लाइड में पढ़ें ... और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा योगी ने
उत्तराखंड में 5 जून 1972 को जन्में अजय ने 22 साल की उम्र में सांसारिक जीवन त्यागकर संन्यास ग्रहण कर लिया। गढ़वाल यूनिवर्सिटी से उन्होंने एमएससी किया और फिर 1998 वह पहली बार गोरखपुर से बीजेपी के सासद चुने गए। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 26 साल की उम्र में वह सांसद बने।
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इस तरह उन्हें सबसे कम उम्र में सांसद बनने का गौरव हासिल हुआ। गोरखपुर के प्रसिद्द गोरखनाथ मंदिर के महंत अवैद्यनाथ ने राजनीति से संन्यास लेने के बाद योगी आदित्यनाथ को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। पूर्वांचल में अपना संगठन खड़ा करने के लिए साल 2002 में रामनवमी के दिन योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी की स्थापना की।