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40 साल तक यूरोप में की नौकरी,अब 1400 बेटियों को दे रहे फ्री एजुकेशन

Admin
Published on: 8 March 2016 10:21 AM IST
40 साल तक यूरोप में की नौकरी,अब 1400 बेटियों को दे रहे फ्री एजुकेशन
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बुलंदशहरः बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन के बेहद लोकप्रिय शो ‘आज की रात है जिन्दगी’ में बुलंदशहर का नाम रौशन करने वाले एनआरआई वीरेंद्र सिंह सैम ने गरीब लड़कियों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया है। सैम ने बुलंदशहर से 55 किमी दूर अनूपशहर में परदादा-परदादी एजुकेशन सोसाइटी (पीपीईएस) चला रहे हैं। भारत के कुछ इलाकों में जहां लड़कियों को अभिशाप माना जाता हैं, वहीं वीरेंद्र सैम ने बेटियों का भविष्य उज्जवल करने के लिए एक स्कूल की स्थापना सन 2000 में की थी।

सैम ने अपनी बेटियों से किया था वादा

टेक्सटाइल के बिजनेस से जुड़े अंकल सैम ने यूरोप के देशों में 40 साल तक नौकरी की। अंकल सैम बताते हैं कि विदेशों में उन्हें और उनकी दो बेटियों को भारतीयों के बारे में काफी कुछ सुनने को मिलता था। इसलिए उन्होंने कुछ ऐसा करने की ठानी जिससे देश और समाज को विकास की राह दिखाई जा सके। अपनी बेटियों से किए गए वायदे को पूरा करते हुए वह अपने गांव लौटे और उन्होंने इलाके की बेटियों को आर्थिक और सामाजिक रूप से स्वाबलंबी बनाने की शुरुआत की।

स्‍कूल में मिलती है मुफ्त शिक्षा

परदादा-परदादी स्कूल के जरिए उन्होंने इलाके की बेटियों को मुफ्त शिक्षा के साथ उन्हें किताबें, ड्रेस, साइकिल,जूतों का मुफ्त पैकेज देना शुरू किया। इतना ही नहीं, स्कूल में पढ़ने वाली बेटियों के परिवार की महिलाओं के लिए रोजगार की व्यवस्था भी की, जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति बदली जा सके। शुरुआत में सैम को बहुत परेशानी उठानी पड़ी, लोगों ने उनका काफी विरोध किया। उन्हें जान से मारने की कोशिश भी की गई, लेकिन वह बच गए।

परदादा-परदादी स्कूल की स्टूडेंट्स परदादा-परदादी स्कूल की स्टूडेंट्स

पढ़ाई के साथ दिलाते हैं जॉब

उन्होंने अनूपशहर स्थित अपनी पैतृक जमीन पर परदादा-परदादी एजुकेशन सोसाइटी (पीपीईएस) की स्थापना मार्च 2000 में की। अंकल सैम ने जब यह स्कूल खोला तो उनके सामने सबसे बड़ी समस्या बेटियों को स्कूल तक लाने की थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और लोगों के घर-घर जाकर उन्हें समझाया। उन्होंने बेटियों की पढ़ाई का पूरा खर्च उठाने और अच्छी जॉब दिलवाने का वायदा किया।

अंकल सैम कहते हैं कि शुरुआत में केवल 44 बच्चियों ने स्कूल में आना शुरू किया। सभी को उन्होंने पैकेज भी दिया जिसमें साइकिल, स्कूल बुक्स, बैग, जूते और 2 जोड़े ड्रेस शामिल थी। लेकिन आठ दिन में ही उनकी स्कूल में आमद बंद हो गई। परिवार के लोगों ने स्कूल से मिले पैकेज को बेच दिया और बिक्री से मिले पैसे की शराब पी ली। इसके बाद उनके स्कूल में केवल 13 बच्चियां ही रैगुलर आ सकी।

सैम की स्‍टूडेंट को मिल रहा विदेशों में पढ़ाई का मौका

एक और खास बात यह है कि पूरे देश में अंकल सैम का यह ऐसा अनोखा स्कूल है जो इंटर पास बेटी को फ्री- एजुकेशन के साथ जॉब गारंटी देता है। इतना ही नही, हर रोज की हाजिरी के साथ जमा होने वाला 10 रुपए का वजीफा स्कूली शिक्षा पूरी करके निकलने वाली बेटी के लिए रोजगार, हायर एजूकेशन या फिर शादी का विकल्प खोलता है। आज इस स्कूल की 200 से ज्यादा छात्राएं देश के बेहतरीन विश्वविद्यालयों में हायर एजुकेशन ले रही है। कुछ ऐसी भी स्टूडेंट्स हैं जिन्हें अमेरिका और ब्रिटेन में पढ़ने का मौका मिला है। हायर ऐजुकेशन के बाद देश के विभिन्न क्षेत्रों में नौकरी करने वाली इस स्कूल की बेटियों की संख्या भी सौ से ज्यादा है।

स्‍कूल में मिलता है लंच और ब्रेकफास्‍ट

अंकल सैम के इस स्कूल में आज 14 सौ बेटियां पढ़ती है। सर्दियों में आठ और गर्मियों में साढ़े नौ घंटे चलने वाले इस अनोखे स्कूल में उन्हें हर रोज ब्रेकफास्ट, लंच और आफ्टरनून स्नेक्स दिया जाता है। स्कूल का आधा समय पढ़ाई में और आधा समय पर्सनॉलिटी डवलपमेंट की क्लासेज में खर्च होता है। बेटियों की हर समस्या चाहे वह परिवार से ही जुड़ी क्यों न हो सभी का हल निकालना स्कूल की जिम्मेदारी है।

इन सबसे अलग, यह स्कूल ऐसी छात्राओं के घर शौचालय भी बनवाता है, जो अपने क्लास में शीर्ष तीन में स्थान बनाती हैं। पिछले 6 साल में इस स्कूल ने सैकड़ों लड़कियों की पढ़ाई का खर्च उठाया और अब तक लगभग 90 शौचालय बनवाए हैं।

शिक्षा और रोजगार-

इस स्कूल में 1400 छात्राएं और 55 टीचर हैं। यह स्कूल अपनी छात्राओं को सौ फीसदी रोजगार की गारंटी देता है और उन्हें योग, नर्सिंग, कंप्यूटर इंजीनियरिंग, होटल मैनेजमेंट और खेल प्रशिक्षण जैसे व्यावसायिक क्षेत्रों में जाने के लिए प्रेरित करता है।

‘पीपीईस’ की छात्राएं यहां करती है काम-

वीरेन्द्र सैम सिंह ने बताया कि पिछले सत्र में शिवानी और छाया अमेरिका से होटल मैनेजमेंट का कोर्स करके वापस भारत आई हैं। छाया चौधरी जयपुर के एक फाइव स्टार होटल में जॉब कर रही है। वहीं, शिवानी एक साल का कोर्स करने के लिए दूसरी बार यूएसए गई है। अंकल सैम ने बताया कि उनके स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद शबनम खान पंजाब नेशनल बैंक दिल्ली में काम कर रही है। सोनम कैलाश हॉस्पिटल में काम करती है। शिवानी चौधरी बैंगलोर में एनटीटीएफ में काम करती है।

डॉक्टर, पुलिस, इंजीनियर बनना चाहती है छात्राएं-

परदादा-परदादी स्कूल की छात्रा आशू ने बताया कि वह बहुत ही गरीब परिवार से है उसके पापा एक होटल में बैंग उठाने का काम करते है। आशू कक्ष 9 की छात्रा है और वह एक सिंगर बनना चाहती है। समरीन ने बताया कि वह एक डांसर बनना चाहती है। अमरीन ने बताया कि वह देश की सेवा करना चाहती है। अमरीन बड़ी होकर पुलिस में भर्ती होकर देश की सेवा करेगी। सोनी ने बताया कि वह एक कम्प्यूटर इंजीनियर बनना चाहती है।

‘मानवाधिकार’ चलती है क्लास-

वीरेंद्र सैम सिंह बताते है कि परदादा-परदादी एजुकेशन सोसाइटी (पीपीईएस) में छात्राओं के लिए हूमन राईटस यानि मानवाधिकार की अलग से क्लास भी चलती है। इस क्लास में छात्राओं को उनके ‘‘सामाजिक और आर्थिक रूप से स्वतंत्र और जागरूकता के अधिकारों के बारे में जानकारी दी जाती है। इस स्कूल की लड़कियां बाल विवाह, पर्दा प्रथा, लिंग भेदभाव और परिवार नियोजन को लेकर इस इलाके में जागरुकता भी फैला रही है।

मिलता है रोजगार-

स्कूल के प्रधानाचार्य केके शर्मा ने बताया कि बड़ी-बड़ी कम्पनियों से कोंट्रक्ट करके बैंग कोर्ट कवर बनाने का काम लिया जाता है। उन्होंने बताया कि इस स्कूल में पढ़ने आने वाली गरीब छात्राओं के मम्मी, चाची बहन यहां जो छात्रा पार्ट टाइम काम करना चाहती है वह यहां पर काम करती है। यहां पर ब्लैक बैरी कम्पनी के कोर्ट के बैग, बैग आदि सामान बनाते है जिन्हें स्कूल प्रबंधन इन समानों को देश, विदेशों में सप्लाई करते है।

‘परदादा परदादी सेल्फ हेल्प ग्रुप’ की शुरुआत-

‘परदादा परदादी सेल्फ हेल्प ग्रुप’ की स्थापना की है। जो मिलकर दूध से जुड़ा कारोबार चलाती हैं। वीरेंद्र सैम बताते है कि सेल्फ हेल्प ग्रुप गांव की महिलऐं काम करती है। इस में 10 से 15 महिलाओं का एक ग्रुप बनाया गया है जिसमें ग्रुप की महिलाए हर हफ्ते 15 रुपए अपनी तरफ से जमा करती है। ग्रुप की एक महिला सारी महिलाओं का रिकॉर्ड रखती है तो दूसरी महिला के पास एक गुल्लक होता है जिसमें वो पैसे जमा किए जाते हैं, जबकि तीसरी महिला के पास उस गुल्लक की चाबी होती है।

जब इन महिलाओं के गुल्लक में 3 हजार रुपये जमा हो जाते हैं तो जरूरत पड़ने पर वो इसमें से आधे पैसे उधार ले सकती हैं। सैम बताते है इसके पीछे उनकी यह सोच है कि महिलाएं जरूरत पड़ने पर साहूकार के झांसे में ना फंसे। क्योंकि साहूकार जरूरत पड़ने पर उन्हें रुपए उधार दे देता है जिसके बदले गांव के लोगों से मोटी रकम वसूल करता है।

नीचे स्‍लाइड्स में देखें तस्‍वीरें-

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