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मारपीट के बावजूद एमजीआर के शव के पास जहां खड़ी रही थीं जयललिता, आज वहीं होगा अंतिम संस्कार

aman
By aman
Published on: 6 Dec 2016 8:59 AM GMT
मारपीट के बावजूद एमजीआर के शव के पास जहां खड़ी रही थीं जयललिता, आज वहीं होगा अंतिम संस्कार
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चेन्नई: जे. जयललिता और उनके राजनीतिक गुरू एमजीआर से उनके संबंधों को लेकर लंबे समय से कयास लगाते जाते रहे। एक वो भी समय था जब एमजीआर के देहांत के बाद उनकी पत्नी जानकी सहित कुछ सहयोगियों ने जयललिता को एमजीआर के शव के अंतिम दर्शन करने से रोकने की कोशिश की थी। बाद में जब जयललिता को एमजीआर के शव के अंतिम दर्शन का मौका तो मिला लेकिन उनके साथ गाली-गलौच और मारपीट तक हुई। बावजूद इसके जयललिता वहां 21 घंटे तक खड़ी रही थीं।

आज इस बात को करीब ढाई दशक बीत गए। वक्त ने एक बार फिर करवट ली और आज जयललिता का अंतिम संस्कार मरीना बीच पर एमजीआर के स्मारक के बगल में ही किया जाएगा।

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फिल्मों से राजनीति तक रहा एमजीआर का साथ

कहते हैं कि एमजीआर ने जयललिता की मां से वादा किया था कि वो जयललिता का ख्याल रखेंगे। जयललिता, एमजीआर से उम्र में 31 साल छोटी थीं। दोनों ने पहली बार 1965 में एक साथ काम किया था। उनकी जोड़ी को दर्शकों ने खूब सराहा। दोनों ने दो दर्जन से ज्यादा फिल्मों में साथ काम किया। 1972 में एमजीआर फिल्मों से संन्यास लेकर राजनीति में आ गए। जयललिता भी 1982 में आधिकारिक तौर पर एमजीआर की पार्टी एआईएडीएमके में शामिल हो गईं। इस तरह फिल्मों की तरह राजनीति में भी उनके पहले गुरू एमजीआर ही बने।

आगे की स्लाइड में पढ़ें जयललिता की जुबानी अनकही कहानी ...

बिगड़ने लगे थे एमजीआर से रिश्ते

एमजीआर और जयललिता के रिश्ते पहले भी चर्चाओं में थे। राजनीति में आते ही 1983 में उन्हें पार्टी के प्रचार विभाग का सचिव बना दिया गया। 1984 में उन्हें एमजीआर ने राज्यसभा सदस्य बना दिया। लेकिन कुछ ही सालों बाद जयललिता और एमजीआर के संबंध बिगड़ने लगे। एमजीआर की पत्नी जानकी को दोनों की कथित नजदीकियों पर सख्त एतराज था। जानकी के इसी रवैये का असर तब दिखा जब एमजीआर का 1987 में देहांत हुआ।

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इंटरव्यू में जयललिता ने खोले थे राज

1988 में एक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में जयललिता ने उस घटना को याद करते हुए बताया था, कि 'बहुत थोड़े से लोगों का एक समूह नहीं चाहता था कि मैं एमजीआर के शव के करीब जाऊं। 24 दिसंबर को तड़के एक दोस्त ने मुझे जगाकर एमजीआर के निधन की खबर दी थी। मैं दौड़कर थोत्तम (एमजीआर का निवास) पहुंची। लेकिन मुझे घर के अंदर नहीं जाने दिया गया। मैं अपनी कार से निकलकर घर का दरवाजा पीटती रही। थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला लेकिन अंदर जाने पर मैंने देखा कि अंदर सभी कमरों के दरवाजे बंद हैं।'

भागती रही थी एमजीआर के एम्बुलेंस के पीछे

जयललिता ने उस दिन को याद करते हुए बताया था, 'आखिरकार मैं तीसरे तल पर स्थित अपने नेता के कमरे के दरवाजे के बाहर खड़ी हो गई। मुझसे कहा गया कि उनके शव को पिछले दरवाजे से निकालकर राजाजी हॉल ले जाया जा रहा है। मैं सीढ़ियों से दौड़ती हुई उतरी और मेन गेट की तरफ भागी। मैंने देखा कि एक ऐंबुलेंस एमजीआर के शव को लेकर जा रही है। मैं उसके पीछे भागी। मैंने अपने कार के ड्राइवर को बुलाया और उसमें बैठकर ऐंबुलेंस के पीछे गई। मैंने किसी और गाड़ी को ऐंबुलेंस और अपनी कार के बीच में नहीं आने दिया।'

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जयललिता ने बताया कि उनके अपमान और दुख का अंत यहीं नहीं हुआ था। राजाजी हॉल में एमजीआर के शव को सार्वजनिक दर्शन के लिए रखा गया था। जयललिता ने बताया था, 'राजाजी हॉल में मैं पहले दिन अपने नेता के पास 13 घंटे और दूसरे दिन आठ घंटे खड़ी रही।' लेकिन जयललिता को वहां भी जानकी समर्थकों के हाथों अपमानित होना पड़ा।

हुआ था अपमान लेकिन सहती रही

जयललिता ने बताया था, 'वहां मेरा मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न हुआ। सात या आठ महिलाएं जिनका मैं नाम नहीं लेना चाहूंगी, दूसरे दिन वहां आईं और मेरे बगल में खड़ी हो गईं। उन्होंने मेरे पैर को कुचलना शुरू कर दिया। वो मेरे शरीर में अपने नाखून चुभो रही थीं, चुटकी काट रही थीं। उन लोगों ने मेरे चेहरे को छोड़कर शरीर के हर हिस्से पर चोट की।'

जयललिता के साथ मारपीट तक हुई

इतना ही नहीं जब एमजीआर का अंतिम संस्कार किया गया तो वहां जयललिता को नहीं जाने दिया गया। जयललिता ने बताया था, 'जब उनके शव को परिजनों ने अंतिम संस्कार के लिए राजाजी हॉल के अंदर ले जाया गया तो मुझे वहां नहीं जाने दिया गया।' एमजीआर की अंतिम यात्रा में भी जयललिता के साथ बदसलूकी हुई। जयललिता के अनुसार, जानकी के भांजे दीपन और एआईएडीएम के विधायक केपी रामलिंगम ने उनके साथ गाली-गलौच और मारपीट की थी। वो लोग नहीं चाहते थे कि जयललिता अंतिम यात्रा में शामिल हों।'

जयललिता ने एमजीआर के अंतिम संस्कार के बाद राज्यपाल और शीर्ष पुलिस अधिकारियों से इस बदसलूकी की शिकायत की थी लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी।

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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