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यूपी टेक्‍सटाइल इंसटीट्यूट का इनोवेशन, खास कपड़े से साफ हो जाएगी गंगा

sudhanshu
Published on: 23 Oct 2018 4:49 PM IST
यूपी टेक्‍सटाइल इंसटीट्यूट का इनोवेशन, खास कपड़े से साफ हो जाएगी गंगा
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कानपुर: उत्तर प्रदेश टेक्सटाईल्स टेक्नोलाजी इन्स्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने गंगा को साफ रखने में मददगार तकनीक ईजाद की है। वैज्ञानिक ने एक ऐसा कपड़ा तैयार किया है जो टेनरी, कल-कारखानों और थर्मल पावर प्लाण्ट्स से निकलने वाले गन्दे पानी से जहरीले पदार्थ सोख लेगा और गंगा में ट्रीट पानी ही जाने देगा। वैज्ञानिक का दावा है कि यदि इस तकनिकी को गंगा सफाई में इस्तेमाल किया गया तो निश्चित ही बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा।

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आईआईटी से पहले यूपीटीटीआई ने किया इनोवेशन

केन्द्र सरकार ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत आईआईटी कानपुर से भी गंगा सफाई के लिए नए तरीके इजाद करने की अपील की थी l सभी के मन में यह ख्याल आया था कि कि आईआईटी कुछ ऐसा करेगा की गंगा साफ़ और स्वच्छ हो जाएगी l इस सबके बीच उपेक्षित रहने वाले यूपीटीटीआई यानि उत्तर प्रदेश वस्त्र प्रौद्योगिकी संस्थान एक छुपा रूस्तम साबित होगा। जब आईआईटी, कानपुर के वैज्ञानिक अपनी बड़ी बड़ी रिसर्च के जरिये गंगा साफ करने की तकनीक खोज रहे हैं।

टैक्सटाईल इन्जीनियर डा शुभांकर मैती ने भी ऐसा इलेक्ट्रो कण्डक्टिव पालीमर खोज निकाला जिसका लेप चढ़ा कपड़ा पानी से जहरीले रसायन खींच लेने का काम करेगा। शोधकर्ता ने अपने लैब टेस्ट में साबित किया है कि किसी भी दूषित पानी में यह कपड़ा डालते ही वो इसके रासायनिक तत्व और भारी धातुऐं सोख लेता है।

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रासायनिक कचरे की चपेट में गंगा

कानपुर के चमड़ा कारखाने गंगा में जहरीले क्रोमियम को गिराते हैं तो कन्नौज के इत्र कारखाने अपना रासायनिक कचरा। देश में जगह जगह तमाम पवित्र नदिया उद्योगों के रासायनिक कचरे की चपेट में हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि उनके ईजाद किये गये कपड़े से पूरी गंगा तो नहीं छानी जा सकती लेकिन अगर उद्योगों से निकलने वाला रासायनिक कचरा छान कर बचा हुआ शोधित पानी नदी में जाने दिया जाय तो भी गंगा साफ रखी जा सकती हैं।

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काले रंग का पॉलीमर है यह कपड़ा

खास प्रकार के कपड़ों से पानी छानकर उस शुद्ध बनाने की प्रथा सनातनकाल से चली आ रही है। इनमें मलमल को सबसे अच्छा माना जाता था जिसके महीन रेशे पानी में मिले कणों को अलग कर देते थे। वाटर प्यूरीफायर के बाजार में आने से पहले घर घर मलमल के कपड़े को नल की टोटिंयों में भी बाधा जाता था। लेकिन यूपीटीटीआई में बना काले रंग का यह पालीमर क्रोमियम, कापर, आयरन, मैग्नीशियम और मरकरी जैसी भारी धातुओं और खतरनाक बैक्टीरिया को पानी से अलग कर देगा।

यूपीटीटीयू निदेशक डा मुकेश कुमार सिंह के मुताबिक जो उद्योग प्रदूषित जल निकालते है l ऐसा जल पीने की बात तो दूर है खेतो की सिचाई तक नही कर सकते है l हमारा उद्धेस्य यह होगा कि हम अपने फैब्रिक के द्वारा उस पानी को इस योग्य बना दे कि प्रदूषित पानी कृषि योग्य हो जाये और जानवरों के पीने योग्य हो जाये l इस पानी को इन्सान पी सके इसके लिए ट्रीटमेंट प्लांट की जरूरत पड़ेगी l कारखानों से निकलने वाले पानी को ट्रीट करने के लिए हम नाले के मुहाने पर कपडे की पांच या छह पर्ते बनाकर एक फ़िल्टर पर्त तैयार करेगे l इसमें हर एक एक पर्त की एक क्षमता होगी कि यह 10 हजार लीटर या 15 हजार लीटर प्रदूषित जल को ट्रीट कर सके l इस कपडे की लागत बहुत कम है जो फैक्ट्रिया बड़ी आसानी से इसका इस्तेमाल कर सकती है l डा0 एपीजे अब्दुल कलाम टेक्नीकल यूनीवर्सिटी ने उनके शोध को आगे बढ़ाने और आर्थिक अनुदान को मन्जूरी दे दी है।

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