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दक्षिण के राज्यों में चरम पर रही है अभिनेताओं को लेकर दीवानगी, अब क्यों घट रहा है क्रेज?
चेन्नई: फिल्म से जुड़े नेताओं की आत्महत्या और उनके मरने पर वैसा हंगामा या शोर नहीं होता जैसा दक्षिण के राज्यों में हुआ करता है। खासकर उत्तर भारत के राज्यों में तो ऐसा 'पागलपन' बिल्कुल नहीं दिखता कि कोई उनकी याद में आत्महत्या कर ले या हार्ट अटैक से उसकी मौत हो जाए। तमिलनाडु की सीएम जे जयललिता की 5 दिसंबर की रात लंबी बीमारी के बाद मौत हो गई थी।
उनकी मौत की खबर के बाद तीन लोगों की मौत हार्ट अटैक से हुई है। वो तमिलनाडु में जिनती लोकप्रिय थीं उतना लोकप्रिय तो उत्तर भारत में कोई नेता नहीं है। लेकिन जयललिता की मौत के बाद वैसा हंगामा नहीं दिखा जैसा आमतौर पर देखा जाता रहा है।
'प्रिय' की मौत पर आत्महत्या का है इतिहास
एआईडीएमके के संस्थापक और तमिलनाडु के तीन बार सीएम रहे एमजी रामचन्द्रन की जब मौत हुई तो 29 लोगों ने आत्महत्या कर ली थी। एमजी रामचन्द्रन को यहां लोग प्यार से 'एमजीआर' भी कहा करते थे । इसी तरह दक्षिण के फिल्मी कलाकार राजकुमार की मौत के बाद एक सौ से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या कर ली थी।
रजनीकांत के बीमार होने पर भी दिखा था नजारा
इसी तरह रजनीकांत जब बीमार हो अस्पताल में भर्ती किए गए तो लगता था पूरा चेन्नई बीमार हो गया। अस्पताल के बाहर उनके प्रशंसकों का हुजूम हमेशा लगा रहता था। जब तक वो दुरुस्त होकर अस्पताल से बाहर नहीं आ गए, तब तक लोगों ने चैन की सांस नहीं ली।
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इन वजहों से पुकारी जाने लगीं 'अम्मा'
जे. जयललिता ने जितना काम अपने राज्य में गरीबों के लिए किया उतना काम संभवत: आजाद भारत में कोई दूसरा नेता नहीं कर पाया। पांच रुपए में गरीब की थाली, दो रुपए किलो चावल, बच्चों के लिए नैपकिन, फ्री मिक्सी जैसी कई योजनाएं थीं जो जयललिता ने गरीबों के लिए राज्य में चलाई थीं। दिलचस्प है कि अपने स्वभाव के अनुसार उन्होंने न तो किसी से सलाह ली और न ही किसी से विचार-विमर्श किया। अपनी योजनाओं को कैबिनेट में रखा और उसे पारित करा लिया। इसी वजह से उन्हें 'अम्मा' कहा जाने लगा।
कईयों ने तय किया अभिनेता से राजनेता का सफ़र
दक्षिण भारत में लोग फिल्मों में काफी रुचि रखते हैं। यदि फिल्म से जुड़ा कोई अभिनेता या अभिनेत्री राजनीति में आ जाए तो फिर कहना ही क्या। एमजीआर, एनटी रामाराव, करूणानिधि, जयललिता, चिरंजीवी ऐसे नाम हैं जो फिल्म के साथ राजनीति में भी काफी सफल रहे।
समय-समय पर दिखी रही है दीवानगी
दिवंगत इंदिरा गांधी ने जब आन्ध्र प्रदेश में रामाराव की पूर्ण बहुमत की सरकार गिराई थी तब खूब हंगामा हुआ था। लोग रेल पटरियों पर लेट गए थे और ट्रेनों का आना जाना रोक दिया था। ऐसे कई उदाहरण हैं जब फिल्म से राजनीति में आए लोगों के प्रति लोगों की दीवानगी दिखी। हिंदी फिल्मों में असफल हो दक्षिण का रुख करने वाली खुशबू जो अब कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं, उनके नाम पर कई मंदिर भी बन गए हैं। हिंदी में उनकी एक फिल्म आई थी, 'मेरी जंग' जिसमें उनकी सहायक नायिका की भूमिका थी। बाद में काम नहीं मिला तो उन्होंनें दक्षिण का रुख कर लिया।
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अमिताभ के लिए दुआ में उठे थे हाथ
उत्तर भारत में सिर्फ अमिताभ बच्चन के प्रति लोगों की ऐसी दीवानगी दिखी जब वो फिल्म 'कुली' की शूटिंग के दौरान घायल हुए थे। दुआओं का लंबा दौर चला। लोगों ने मंदिर में उनकी सलामती की प्रार्थना की तो मस्जिदों में दुआ भी मांगी। गुरू के दरबार में मत्था तक टेका था।
क्या कारण है कि अब वो क्रेज नहीं दिखता?
सवाल ये उठता है कि अब प्रशंसकों में अब वो दीवानगी का आलम क्यों नहीं दिखता। संभवत: इसका कारण उनका लगातार विज्ञापनों में आना या खबरों को लेकर चैनलों पर दिखते रहना हो सकता है। पहले सिनेमाघरों में फिल्में लगती थीं और विज्ञापनों की दुनिया भी उस तरह सामने नहीं आई थी। लेकिन पिछले पन्द्रह-बीस सालों में काफी कुछ बदला है। बड़ी संख्या में खबरिया चैनल आ गए हैं। प्रोडक्ट्स भी इतने आ गए हैं कि पूछिए मत। लोग लगातार अपने लोकप्रिय नेता और अभिनेता को टेलीविजन पर देखते रहते हैं इसलिए पहले जैसा क्रेज देखने को नहीं रहता। दिवानगी कम होती है तो वो परिणाम दिखाई नहीं देते जो पहले दिखाई दिया करते थे।