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पहली बार 1000 विधवाओं की जिंदगी हुई रंगीन, फिर जगी जीने की चाह
वृंदावन: वृंदावन में ऐसा पहली बार हुआ वहां की विधवाओं ने रंगों ले होली खेली। ये पहल इनके लिए काम करने वाली संस्था सुलभ इंटरनेशनल ने की है।संस्था का मानना है कि विधवा होना एक घटना है, जिसका सामाजिक दाग से कोई सरोकार नहीं है।
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अपनों के जाने का गम ताउम्र रहता है, लेकिन किसी के जानें से जीवन बदरंग नहीं होता। बस साथ छुटता है। खुश रहने का अधिकार तो हर किसी को है। कुछ ऐसा ही साबित किया यहां की विधवाओं ने। उन्होंने होली खेलकर कहां कि हमने जो खोया उसे कोई लौटा नहीं सकता, लेकिन हमसे खुश रहने का हक भी किसी को नहीं छिनना चाहिए।
कुप्रथा को रोकने की कोशिश
ठाकुर गोपीनाथ मंदिर में सोमवार (21मार्च) को मंदिर प्रागंण में विधवाओं ने होली खेली। यहां देश के हर कोने और वाराणसी से भी विधवाएं आई थी। करीबन 1000 की तदाद में विधवाओं ने होली खेली। कार्यक्रम में 1200 किलोग्राम गुलाल, 1500 किलोग्राम से अधिक गुलाब और गेंदे के फूलों की पंखुड़ियों का इस्तेमाल किया गया। सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक और सामाजिक सुधारक डॉ. विंदेश्वर पाठक ने कहा-कि विधवाओं को होली खेलने से रोकने वाले समाज की कुप्रथा को रोकने की ये पहली कोशिश है। जल्द ही समाज पर भी इसे स्वीकार करेगा।
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समाज में है बंदिश
आज भी विधवाओं को समाज में शुभ अवसर पर दूर रखा जाता है। उनकी बदरंग हुई जिंदगी में दोबारा रंग भरने को पाप माना जाता है। संस्था का मानना है कि इस पहल से उम्मीद जगी है कि ये होली न सिर्फ वृंदावन और वाराणसी की विधवाओं के जीवन में नए रंग भरेगी, बल्कि समाज के सोच को बदले की कोशिश करेगी।