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WOMEN'S DAY SPECIAL: मर्यादा में रहकर उसने खुद का वजूद तलाशा, इसलिए तो औरत कहलाई?
सुमन मिश्रा
नहीं बदली वो, इसलिए तो औरत कहलाई,
प्यार और त्याग की मूरत बनकर सब पर प्यार बरसाई,
खुद के लिए नहीं कोई चाह या मांग उसकी,
बेटी से बहू बनकर हर रिश्ते को वो निभाई,
इसलिए तो औरत कहलाई।।
मायके के आंगन में खिली कली,
कब ससुराल में बन गई संपूर्णता की गली,
खुद ही ना समझ पाई।।
कर जाती अपनी हर इच्छा का दमन,
क्यों कि उसे पूरा करना था अपने हर धर्म,
कहीं प्यार तो कहीं धिक्कार पाई,
हंसती रही फिर दूसरे के चेहरे पर हंसी ला पाई,
इसलिए तो औरत कहलाई।।
बेटी का प्यार मिला उसे तो मां का सम्मान भी,
हर रिश्ते ने दिया उसे अपनापन,
फिर क्यों ना सास समझ पाई,
इसलिए तो औरत कहलाई।।
कहीं निर्लज तो कहीं पापी,
कहीं मिली उसे बाप की गाली,
फिर भी दिए संस्कारों से,
मिले आशीर्वादों से हर दुख सहती आई,
इसलिए तो औरत कहलाई।।
समाज ने हरदम कुचलना चाहा उसको,
मर्यादा में रहकर उसने खुद का वजूद तलाशा,
फिर जाकर कही दंगल गर्ल कहलाई,
निर्भया बन कितनी बार जान गंवाई,
क्या चुका पाएगा समाज उसका कर्ज,
जो वो कभी ना मांग पाई,
इसलिए तो औरत कहलाई।।