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132 बार रक्तदान कर संत कमल ने दर्ज कराया इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम
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सहारनपुर: रक्तदान करने से कमजोरी आती है ऐसी ही तमाम तरह की गलतफहमियों को संत कमल किशोर ने दूर किया है। रक्तदान करने की प्रेरणा लेनी है तो संत कमल किशोर से ली जाए। जिन्होंने 132 बार रक्तदान कर अपना नाम इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज कराया है। इस बुक में नाम दर्ज कराने तक ही वह सीमित नहीं रहे। उम्र के पांच दशक से अधिक पार करने यानी 57 साल के संत कमल किशोर अब तक 132 बार रक्तदान कर चुके हैं और आगे भी जीवन भर रक्तदान करने का हौसला रखते हैं। वह न केवल स्वयं बल्कि दूसरों को भी रक्तदान करने के लिए प्रेरित करते चले आ रहे हैं।
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पहली बार 17 साल की उम्र में किया था रक्तदान
रक्तदान करने की प्रेरणा लेनी है तो संत कमल किशोर से लीजिए। वह दूसरों की जिंदगी के लिए खून देने से कभी पीछे नहीं हटते हैं। उनका मानना है कि रक्तदान कर दूसरों की जिंदगी बचाना सबसे बड़ा पुण्य है। सामाजिक एवं अध्यात्मिक संस्था शून्य के संस्थापक संत कमल किशोर ने अपनी जिंदगी में पहली बार 17 साल की उम्र में रक्तदान किया था। उस वक्त वह कालेज व अन्य संस्थानों में लगने वाले रक्तदान शिविरों में भाग लेते थे। दूसरों को रक्तदान करते देख उनके मन में भी रक्तदान करने की जिज्ञासा हुई। दूसरों से रक्तदान करने के फायदे जानने के बाद से वह लगातार रक्तदान करते आ रहे हैं और अब तक करीब 132 बार रक्तदान कर चुके हैं।
पिछले साल दर्ज हुआ था नाम
ये शख्श 132 बार रक्तदान कर इंडिया बुक ऑफ़ रेकॉर्ड्स में 2 बार अपना नाम दर्ज कराकर रेकॉर्ड्स बना चुका है। पहला रिकॉर्ड 14 जून 2014 को 126वीं बार रक्तदान कर बनाया और इंडिया बुक ऑफ़ रेकॉर्ड्स में नाम दर्ज कराया। अब दूसरी बार का रेकॉर्ड्स 22 मई 2016 को 132वीं बार रक्तदान कर अपना नाम इंडिया बुक ऑफ़ रेकॉर्ड्स में दर्ज कराया। संत कमल किशोर को 14 जून 2015 को यूपी के राज्यपाल राम नाईक भी पुरुस्कृत कर चुके हैं। इससे पूर्व सर्वाधिक बार रक्तदान करने पर इस बुक में अहमदाबाद रेडक्रास सोसायटी के अध्यक्ष मुकेश पटेल और पूना के शांति लाल सूरतवाला उर्फ काका का नाम आया था। संत कमल किशोर बताते हैं कि विज्ञान ने चाहे जितनी भी उन्नति क्यों न कर ली हो, लेकिन मानव रक्त का विकल्प नहीं तैयार किया जा सका। रक्त की आवश्यकता पड़ने पर एक इंसान को दूसरे इंसान का रक्त ही दिया जा सकता है, किसी पशु का नहीं। रक्त शरीर की नसों में जन्म से लेकर मृत्यु तक लगातार बहता रहता है। इसकी गति नहीं रुकती।
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झगड़ों में न बहाया जाए रक्त : कमल
उनका कहना था कि लड़ाई झगडे में रक्त को न बहाया जाए। इस कीमती सामान को न केवल संजो कर रखा जाए, बल्कि जरुरत पड़ने पर दूसरों को दिया जाए यानी कि रक्तदान किया जाए। वह कहते हैं कि जिस प्रकार एक कुएं से थोड़ा सा पानी निकाल लिया जाए तो कुएं को कोई फर्क नहीं पड़ता, उसी प्रकाश शरीर से यदि थोड़ा सा रक्त निकाल लिया जाए और दूसरों को दे दिया जाए तो शरीर पर किसी तरह का जरा सा भी बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। इस युग में स्वैच्छिक रुप से रक्तदान देने वालों की संख्या इंडिया में आटे में नमक के बराबर है।
आवश्यता तथा आपूर्ति में यह अंतर 70:30 का है।
चार सौ बच्चों को ले रखा है गोद
संत कमल किशोर केवल रक्तदान के प्रति ही लोगों को प्रेरित नहीं कर रहे हैं। बल्कि सामाजिक कार्यों में भी बढ़चढ़ कर न केवल हिस्सा हैं, बल्कि दूसरों को भी गरीबों की मदद करने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी सामाजिक संस्था द्वारा चार सौ ऐसे गरीब बच्चों को गोद लिया गया है, जो किन्हीं कारणवश पढ़ाई नहीं कर पाते। जनपद के विभिन्न स्कूलों में पढ़ने वाले चार सौ बच्चों की पढ़ाई का खर्च वह स्वयं ही वहन करते हैं।
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