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200 तोला सोना थी लखनऊ विश्वविद्यालय के पहले कुलपति की तनख्वाह

भविष्य की आधारशिला इतिहास का बेहतर ज्ञान है। इस ध्येय वाक्य को ध्यान में रखकर लखनऊ के युवा पत्रकार सचिन त्रिपाठी ने लखनऊ विश्वविद्यालय शून्य से 100 तक पुस्तक तैयार की है।

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Published on: 21 Nov 2020 2:21 PM GMT
200 तोला सोना थी लखनऊ विश्वविद्यालय के पहले कुलपति की तनख्वाह
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200 तोला सोना थी लखनऊ विश्वविद्यालय के पहले कुलपति की तनख्वाह

लखनऊ । 100 साल पहले लखनऊ विश्वविद्यालय के पहले कुलपति जीएन चक्रवर्ती को वेतन के तौर पर हर महीने 3000 रुपये मिला करते थे तब सोने का भाव लगभग 15 रुपये तोला था। इस तरह उन्हें वेतन के तौर पर लगभग 200 तोला सोना मिल रहा था। इस भारी भरकम तनख्वाह का हाल यह रहा कि देश आजाद होने के बाद तक लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति का वेतन तीन हजार रुपये पर ही अटका रहा। यह रोचक जानकारी लखनऊ विश्वविद्यालय शून्य से 100 तक में दी गई है। राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने शनिवार को इस पुस्तक का शताब्दी वर्ष समारोह में लोकार्पण किया है।

भविष्य की आधारशिला इतिहास का बेहतर ज्ञान है

भविष्य की आधारशिला इतिहास का बेहतर ज्ञान है। इस ध्येय वाक्य को ध्यान में रखकर लखनऊ के युवा पत्रकार सचिन त्रिपाठी ने लखनऊ विश्वविद्यालय शून्य से 100 तक पुस्तक तैयार की है। इस पुस्तक में लखनऊ विश्वविद्यालय के 100 साल पुराने इतिहास और क्रमिक विकास को रोचक जानकारियों के ताने-बाने पर सजाया गया है। इस पुस्तक को पढक़र अहसास होता है कि लखनऊ विश्वविद्यालय सिर्फ एक शिक्षण संस्थान नहीं है।

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लखनऊ की गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक

लखनऊ का इतिहास लखनऊ विश्वविद्यालय के इतिहास के बिना अधूरा है। यह लखनऊ की गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक भी है। इसे अवध के हिन्दू और मुस्लिम ताल्लुकेदार ने चंदा जमा करके स्थापित किया था। इसकी स्थापना से जुड़े तमाम किस्से और तथ्य हैं। इनको प्रामाणिक दस्तावेज के माध्यम से पुस्तक- लखनऊ विश्वविद्यालय शून्य से 100 तक, में शामिल किया गया है। लखनऊ विश्वविद्यालय के साथ ही इसके सभी एसोसिएटेड कॉलेज का इतिहास और उनकी स्थापना की कहानी भी इस किताब का भाग है।

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लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ, यहां के कुलपति, आजादी की लड़ाई में यहां की भागीदारी, यहां के प्रमुख शिक्षक, स्थापना के समय यहां के विभाग-शिक्षक, यहाँ के प्रमुख उत्सव तथा दीक्षांत समारोह में दिए गए महानुभावों के भाषण भी इस पुस्तक के अलग-अलग अध्याय में शामिल किए गए हैं। यह पुस्तक लखनऊ विश्वविद्यालय और इसके सहयुक्त कालेजों में पढ़ने वाले और पढ़कर निकल चुके विद्यार्थियों के लिए उपयोगी, रोचक और ज्ञानवर्धक है।

पुस्तक के कुछ अंश --

तीन हजार रुपये मासिक के वेतन पर नियुक्त किये गये पहले कुलपति

लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.जीएन चक्रवर्ती की नियुक्ति का ब्यौरा राजकीय अभिलेखागार में शिक्षा विभाग की फाइल संख्या 410 में दिया गया है। इसके अनुसार लखनऊ विश्वविद्यालय के पहले कुलपति जीएन चक्रवर्ती को तीन हजार रूपये मासिक वेतन पर नियुक्त किया गया था। यह वेतन उस समय इतना ज्यादा था कि वर्ष 1950 तक किसी भी कुलपति को इतना वेतन नहीं मिला।

प्रो. ज्ञानेंद्र नाथ चक्रवर्ती ने 16 दिसंबर 1920 को लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्यभार ग्रहण किया। इससे एक दिन पहले ही इलाहाबाद विवि के रजिस्ट्रार के रूप में उनका कार्यकाल समाप्त हुआ था। कुलपति के अलावा लविवि के पहले रजिस्ट्रार मेजर टीएफ ओ-डोनेल को 1200 रूपये मासिक वेतन पर नियुक्त किया गया। जहां तक शिक्षकों की बात है तो फिजिक्स के शिक्षक और विज्ञान संकाय के पहले डीन प्रो.वली मोहम्मद को सबसे ज्यादा 1300 रूपये मासिक वेतन पर नियुक्ति दी गई।

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नदी किनारे कुलपति आवास, माल्टिंग हाउस में कार्यालय

प्रो.जीएन चक्रवर्ती की नियुक्ति के बाद नदी की ओर खुलने वाले आवास में उनके रहने की व्यवस्था की गई। इसी आवास के पास माल्ंिटग हाउस जहां पर वर्तमान में लविवि का लेखा कार्यालय स्थापित है, को विश्वविद्यालय कार्यालय के रूप में चुना गया। अभिलेखागार की फाइल के अनुसार सरकार द्वारा उस समय माल्ंिटग हाउस में पुलिस अस्पताल शिफ्ट करने की योजना बनाई जा रही थी। इसके लिए विश्वविद्यालय की ओर से पत्र लिखकर आपत्ति जताई गई और अंतत: पुलिस अस्पताल के बजाय विश्वविद्यालय का कार्यालय ही इस भवन में स्थापित हुआ।

रिपोर्ट- अखिलेश तिवारी

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