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गीता जयंती: 9 लाख लोगों के गले-बाह में रक्षा कवच बना हुआ है ‘ताबीजी गीता’
दुनिया में गीता ही इकलौता धार्मिक ग्रंथ है, जिसकी जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का संदेश दिया था। गीता की उत्पत्ति के इस दिन को हर साल गीता जयंती के तौर पर मनाया जाता है।
गोरखपुर: दुनिया में गीता ही इकलौता धार्मिक ग्रंथ है, जिसकी जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का संदेश दिया था। गीता की उत्पत्ति के इस दिन को हर साल गीता जयंती के तौर पर मनाया जाता है। इस बार 25 दिसम्बर को गीता जयंती है। गीता की मान्यता और विश्वास को लेकर हजारों लोग गीता को मुफ्त में बांटने की मुहीम चला रहे हैं तो लाखों लोगों ने इसे रक्षा कवच के रूप में अपने गले या बाह में धारण कर रखा है।
एक पन्ने में प्रकाशित हुई गीता
गीता प्रेस एक पन्ने में भी गीता प्रकाशित करता है। इसकी कीमत है मात्र एक रुपये। इसका उपयोग सिर्फ ताबीज में होता है। इसीलिए गीता प्रेस प्रबंधन ने भी इस ताबीजी गीता नाम दे दिया है। रक्षा कवच और सकारात्मक ऊर्जा के लिए लोग इसे ताबीज बनाकर गले और बाह में भी धारण कर रहे हैं। अभी तक इसकी 9 लाख से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन कुरुक्षेत्र के मैदान में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का संदेश दिया था। गीता की उत्पत्ति के इस दिन को हर साल गीता जयंती के तौर पर मनाया जाता है। इस बार 25 दिसम्बर को गीता जयंती है।
एक पन्ने वाली गीता में ही श्रीमद्भगवद्गीता के सभी 18 अध्याय शामिल हैं। जिनमें 6 अध्याय कर्मयोग, 6 अध्याय ज्ञानयोग और आखिर के 6 अध्याय भक्तियोग पर आधारित हैं। गीता प्रेस के ट्रस्टी लाल मणि तिवारी का कहना है कि ‘एक पेज वाली गीता को आम बोलचाल में लोग ताबीजी गीता या गीता ताबीजी भी कहते हैं। अब यह इसी नाम से बिक रही है। अमेरिका से लेकर नेपाल तक में रहने वाले इसका प्रयोग करते हैं। इसे विशेष प्रकार के पेपर पर छापते हैं। ताकि इसका वजन काफी कम रहे हैं। मोड़ने के बाद भी दिक्कत नहीं हो।’
एक रुपये से लेकर 300 रुपये में खरीदें गीता
वर्ष 1923 में गीता के प्रकाशन के लिए ही गोरखपुर में गीताप्रेस की स्थापना हुई थी। वर्तमान में 12 आकार-प्रकार की गीता का प्रकाशन हो रहा है। इसकी कीमत तीन रुपये से लेकर 300 रुपये तक है। 15 भाषाओं में प्रकाशित होने वाली गीता की अब तक 15.20 करोड़ प्रतियां बिक चुकी हैं। इसमें हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, बांग्ला, मराठी, गुजराती, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, उड़िया, असमिया, उर्दू, पंजाबी व नेपाली भाषा की गीता शामिल है।
नकारात्मकता दूर होती है, सकारात्मक सोच उत्पन्न होती है
ज्योतिषाचार्य मनीष मोहन कहते हैं कि भगवान कृष्ण के रक्षा कवच के रूप में बहुत से लोग गीता को जेब या ताबीज में रखते है। वृहस्पति ग्रह की शान्ति में यह उपयोगी है। गीता को रोग नाशक भी माना जाता है। इसे साथ रखने से नकारात्मकता दूर होती है, सकारात्मक सोच उत्पन्न होती है। यह लोगों को अच्छे कर्म करने की प्रेरणा भी देती है। गीता प्रेस के ट्रस्ती लालमणि तिवारी बताते हैं कि एक पन्ने में प्रकाशित होने वाली ताबीजी गीता की देश ही नहीं दुनिया के विभिन्न देशों में अच्छी मांग है। हर साल करीब 50 हजार प्रतियों का प्रकाशन हो रहा है। ग्रहों की शांति और सकारात्मक ऊर्जा के लिए लोग इसे वाटर प्रूफ यंत्र में रखकर शरीर पर धारण करते हैं।
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1950 में एक पैसा थी ताबीजी गीता की कीमत
गीता प्रेस प्रबंधन के मुताबिक, एक पन्ने वाली गीता का प्रकाशन 1942 से हो रहा है। अब तक इसकी 9.20 लाख प्रतियां बिक चुकी हैं। आजादी से पहले इसकी कीमत को लेकर प्रबंधन आधिकारिक रूप से कुछ नहीं बता रहा लेकिन 1950 के आसपास इसकी कीमत मात्र एक पैसा थी। 2003 तक 25 पैसे में बिकने वाली गीता की 2013 में कीमत 50 पैसे कर दी गई। 50 पैसे के सिक्के के चलन से बाहर होने से अब इसकी कीमत एक रुपये कर दी गई।
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सादगी से मनाई जा रही जयंती
गीता प्रेस प्रबंधन जयंती पर हर साल विशेष आयोजन करता है लेकिन कोरोना संक्रमण के खतरों को देखते हुए इस बार सांकेतिक पूजा-पाठ का कार्यक्रम ही रखा गया है। ट्रस्टी लालमणि तिवारी कहते हैं कि हर साल सप्ताह भर के आयोजन होते हैं। जिसमें देश-दुनिया से लोग आते हैं। इस बार गीता प्रेस परिसर में सांकेतिक कार्यक्रम ही रखा गया है।