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सबसे बड़ा सवाल आखिर कोटेदार को चोर बनाता कौन है
कोटेदार का नाम आते ही जिले के आला हुक्मरान से लेकर आमलोग अथवा जन प्रतिनिधि उसे चोर की संज्ञा से नवाजते हुए फांसी पर लटकाने का हुक्म सुना देते है ।
जौनपुर: कोटेदार का नाम आते ही जिले के आला हुक्मरान से लेकर आमलोग अथवा जन प्रतिनिधि उसे चोर की संज्ञा से नवाजते हुए फांसी पर लटकाने का हुक्म सुना देते है । क्या किसी अधिकारी अथवा जिम्मेदार लोगों ने कभी यह भी बिचार किया कि कोटेदार को आखिर चोर बनाता कौन है । कोटेदार के चोरी के पीछे का असली रहस्य क्या है। सरकारी तंत्र के लोग सच क्यों स्वीकार करने से परहेज करते है। जनपद में जिला प्रशासन के आदेश पर कोटेदारो के खिलाफ की जा रही कार्यवाहियों आज उपरोक्त सवाल खड़े कर दिए है।
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जी हां सच कहा जाए तो कोटेदार को चोर जिले के आला अधिकारी से लेकर आपूर्ति विभाग के लोग ही बनाते है। कोटेदार को चोर बनने के पीछे का असली रहस्य तो सरकारी तंत्र ही है। लेकिन, चूंकि कोटेदार वितरण व्यवस्था की सबसे कमजोर कड़ी है इसी लिए उसे चोर कह कर दन्ड दे दिया जाता है।
यहाँ बताना चाहेंगे कि एफ सी आई गोदाम से खाद्यान कोटेदार को देने का जो शासनदेश है उसका विभाग कत्तई पालन नहीं करता है। शासनदेश के मुताबिक एफ सी आई गोदाम से खाद्यान को सरकारी तंत्र अपने साधन से दुकान तक पहुंचाए और सही मात्रा में वजन कर कोटेदार को खाद्यान की सुपुर्दगी दे। लेकिन ऐसा नहीं होता है। कोटेदार को खुद ही एफ सी आई गोदाम से खाद्यान उठा कर अपने किराए पर दुकान तक ले जाना पड़ता है। मजेदार बात यह भी है कि एफ सी आई के आर एम ओ के सह पर प्रति 50 किग्रा की बोरी से 3 से 4 किग्रा तक खाद्यान प्रति बोरी से परखी लगा कर निकाल लिया जाता है।
यानी कागज पर 50 किग्रा खाद्यान दिया जाता है जबकि सच यह है कि उसमें अधिकतम 46 या 47 किग्रा खाद्यान दिया जाता है। इस घटतौली का खामियाजा कोटेदार को भुगतना पड़ता है। कोटेदार की इस पीड़ा को टाप टू बाटम कोई नहीं सुनता क्योंकि घटतौली से की गयी आय में हिस्सेदारी तो सभी सरकारी तंत्र के लोगों को मिलता है।
इसके अलावा शासनदेश है कि कोटेदार को वितरण के एवज में 20 प्रतिशत कमीशन सरकार देती है वह धनराशि आज तक किसी भी कोटेदार को नहीं मिला है। अब यहाँ पर सवाल खड़ा होता है कि क्या कोटेदार अपने घर की ''उरदी झेंगरा में मिला दे '' जैसे अधिकारी अपने परिवार को रोटी के लिए नौकरी करता है उसी तरह कोटेदार भी अपने परिवार की रोटी के लिए कोटेदारी करता है। ऐसी सोच अधिकारी में क्यों नहीं है।
यहाँ पर सवाल उठता है कि जब कोटेदार को खाद्यान कम मिलता है तो वह शत प्रतिशत सही तौल से वितरण कैसे करेगा कभी अधिकारी इस बिचार क्यों नहीं करते है। हां गांव का कोई व्यक्ति रंजिशन एक शिकायत कर दिया कि हमे खाद्यान एक पाव कम मिला है तो शीर्ष हुक्मरान की भृगुटी तन जाती है और सीधे कोटेदार को फांसी की सजा मुकर्रर कर दी जाती है। क्या इसे न्याय की संज्ञा दी जा सकेगी।
यदि आकड़े पर नजर डालें तो जनपद जौनपुर में प्रति माह लगभग एक हजार टन खाद्यान का परखी घोटाला एफ सी आई गोदाम से होता है लेकिन जिले के शीर्ष अधिकारी की नजर में लोग इमानदार है। इसके पीछे का सच यही है कि घोटाले से अर्जित धनराशि में हिस्सेदारी सभी की है।
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अब सवाल इस बात का है कि क्या इस घोटाले को कोई रोक सकता है और कोटेदारो को शासनदेश के मुताबिक खाद्यान दिया जा सकता है। यदि यह संभव हो जाये और फिर भी कोटेदार चोरी करे तो उसे दन्ड दिया जाना चाहिए। लेकिन यदि यह संभव न हो तो कोटेदार को चोर कहने का हक सायद किसी को नहीं है ।
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