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15 रुपये की नकली दवा को 800 में बेचते थे, ड्रग विभाग ने किया गिरोह का फर्दाफाश

ड्रग विभाग टीम ने ऐसे गैंग का पर्दाफाश किया है जो कि महज 15 रुपये की लागत में तैयार होने वाली नकली दवा को बाजार में 799 रुपये में बेचा जाता था। ड्रग माफिया धीरज राजौरा इन दवाओं को चार सौ रुपये में डॉक्टरों, झोलाझापों व मेडिकल स्टोर्स में सप्लाई करता था।

Ashiki
Published on: 9 Feb 2021 10:22 PM IST
15 रुपये की नकली दवा को 800 में बेचते थे, ड्रग विभाग ने किया गिरोह का फर्दाफाश
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15 रुपये की नकली दवा को 800 में बेचते थे, ड्रग विभाग ने किया गिरोह का फर्दाफाश

आगरा: रातोंरात अमीर बनने के सपने ने उन्हें ऐसा काम करवा दिया कि वे लोगों की जान के साथ खिलवाड़ करने लग गए। रुपया तो बहुत कमा लिया, लेकिन वे सलाखों के पीछे हैं। ड्रग विभाग टीम ने ऐसे गैंग का पर्दाफाश किया है जो कि महज 15 रुपये की लागत में तैयार होने वाली नकली दवा को बाजार में 799 रुपये में बेचा जाता था। ड्रग माफिया धीरज राजौरा इन दवाओं को चार सौ रुपये में डॉक्टरों, झोलाझापों व मेडिकल स्टोर्स में सप्लाई करता था।

आठ सौ का लेबल लगाकर बेचते थे राजौरा बंधु

बता दें कि सोमवार को ड्रग विभाग की टीम ने आगरा और मथुरा में दो जगह छोपमारी की थी। जिसमें धीरज राजौरा, प्रदीप राजौरा और सौरभ शर्मा को हिरासत में लिया गया। छापेमारी में ड्रग विभाग ने गाबा एक्सएनटी नामक औषधि का जखीरा बरामद किया है, जिसकी स्ट्रिप पर मंबई की एक फर्म का नाम अंकित था। जिसकी कीमत राजौरा बंधु आठ सौ रुपये अंकित करते थे।

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पूछताछ में सौरभ शर्मा ने बताया कि धीरज उसकी फर्म मथुरा स्थित बैकुंठ बिहार अजोई में टैबलेट्स और एल्मूनियम की फॉयल व कार्टन लेकर आता था। यहां वह अपने ऑपरेटर को भी साथ लाता था। यहीं से कार्टन पैक होकर बाजारों में बेचने के लिए भेजे जाते थे। धीरज ने बताया कि वह दवाओं को ग्रामीण अंचलों में बेचने के लिए ले जाता था। मेडिकल स्टोर्स को 50 परसेंट का लालच दिया जाता था। डॉक्टरों से मानोपॉली दवाओ को लिखने के लिए कमीशन देता था। डॉक्टर एवं झोलाछापों को वह चार सौ रुपये में एक स्ट्रिप बेचता था और डॉक्टर मरीज को 800 रुपये में बेचते थे।

राजौरा बंधु- प्रदीप राजौरा और धीरज राजौरा

हालांकि, आरोपियों ने मेडिकल स्टोर्स एवं डॉक्टरों के नाम उजागर नहीं किए हैं। ड्रग विभाग ने गाबा एक्सएनटी नामक औषधि के 16 बोरे बरामद किए हैं। एसपी सिटी रोहन बोत्रे ने बताया कि तीनों पर मुकदमा दर्ज किया जा रहा है। सहायक आयुक्त औषिधि अखिलेश जैन का कहना है कि दोनों भाई नामी कंपनियों में डे साल से एमआर थे, वहीं से दवाओं के अवैध धंधा शुरू किया। इनके यहां से करीब 10 कंपनियों की दवाएं जब्त हुई हैं। मशीनों के उपकरणों और दवाओ के समेत एक करोड़ का जखीरा बरामद हुआ है।

चंदीगढ़ में करता था एमआर का काम

धीरज राजौरा के बारे में मिली सूचनाओं के अनुसार वह कुछ वर्ष पूर्व चंदीगढ़ में एक कंपनी में एमआर का काम करता था। उसे उसके मामा ने नौकरी पर लगवाया था। इसके पिता एक फल के आढ़तिए के रुप में काम करते थे। जल्द पैसा कमाने के लालच में उसने काला कारोबार शुरू कर दिया है। हालांकि राजौरा बंधुओं ने काली कमाई से करोड़ों की संपत्ति अर्जित कर ली है।

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लालच में आकर डॉक्टर लिखते हैं मोनोपॉली की दवा

अच्छी कमाई के लालच में आकर डॉक्टर मोनोपॉली की दवाओं का परामर्श कर देते हैं। इन दवाओं से मरीजों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ तो ही है साथ ही उन्हें आर्थिक हानि भी होती है। इन दवाओं के सॉल्ट और मैन्यूफैक्चरिंग के बारे में भी जानकारी करना डॉक्टर साहब उचित नहीं समझते हैं। लालच में आकर वे तो अमीर बन रहे हैं, लेकिन नकली दवाओं के कारोबारियों का साम्राज्य भी बुलंदियों पर पहुंच रहा है।

औषधि निरीक्षक नरेश मोहन दीपक ने बताया कि धीरज राजौरा, प्रदीप राजौरा और सौरभ शर्मा तीनों मिलकर गाबा एक्सएनटी नामक टैबलेट बनाते हैं। इसकी स्ट्रिप पर जो फर्म की नाम अंकित है वह फर्जी है। तीनों आरोपियों के खिलाफ औषधि एवं प्रशासन अधिनियम के तहत कार्रवाई की गई। मौके पर मिले दवाओं के 12 नमूने संकलित किए गए हैं। जांच रिपोर्ट आने के बाद न्यायालय में प्रस्तुत की जाएगी।

रिपोर्ट: प्रवीण शर्मा



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