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'रेपिस्ट' निकला बेगुनाह: 20 साल बाद हुआ साबित, अब यूपी पुलिस को देना होगा जवाब
बता दें कि 16 दिसंबर 2000 को एक महिला ने विष्णु तिवारी पर बलात्कार का झूठा आरोप लगाया था। 28 जनवरी को कोर्ट की डिवीजन बेंच ने उसे दोषी घोषित कर दिया।
आगरा। बलात्कार के एक झूठे मामले बीस साल की सजा काटने के बाद रिहा हुए विष्णु तिवारी के दशकों पुराने जख्म पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने हमदर्दी का मरहम लगाया है। आयोग ने यूपी के डीजीपी और मुख्य सचिव से पीड़ित के पुनर्वास की व्यवस्था कर दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्यवाही करने को कहा है।
लोक सेवकों के खिलाफ कार्रवाई
आयोग ने यूपी को भेजे नोटिस में कहा है कि इस मामले में जिम्मेदार लोक सेवकों के खिलाफ की गई कार्रवाई और पीड़ित को राहत और पुनर्वास के लिए उठाए गए कदमों को शामिल करना चाहिए. यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इन 20 साल के दौरान पीड़ित ने जो आघात, मानसिक पीड़ा और सामाजिक कलंक झेला है. 6 सप्ताह के अंदर इस नोटिस पर यूपी से प्रतिक्रिया मांगी गई है.
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क्या था मामला
बता दें कि 16 दिसंबर 2000 को एक महिला ने विष्णु तिवारी पर बलात्कार का झूठा आरोप लगाया था। 28 जनवरी को कोर्ट की डिवीजन बेंच ने उसे दोषी घोषित कर दिया। अदालत ने माना कि इस मामले में मुकदमा तीन दिन देर से दर्ज किया गया था महिला के निजी अंगों पर चोट के निशान नहीं थे। इसके बाद भी विष्णु को बीस साल की सजा हो गई। उसे आगरा के सेंट्रल जेल में रखा गया। इस दौरान उसके माता पिता और दो भाइयों की भी मृत्यु हो गई। इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई के बाद उसे बाइज्जत बरी किया गया है।
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