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अखिलेश यादव का 46 वां जन्मदिन आज, सपा कार्यकर्ताओं ने काटा केक
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का आज 46 वां जन्मदिन है। टीपू से उत्तर प्रदेश के 'सुल्तान' बन चुके अखिलेश यादव का जन्म 1 जुलाई, 1973 को इटावा के सैफई में हुआ और इस तरह से जिदंगी के 46 साल का सफर उन्होंने आज तय कर लिया है।
नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का आज 46 वां जन्मदिन है। टीपू से उत्तर प्रदेश के 'सुल्तान' बन चुके अखिलेश यादव का जन्म 1 जुलाई, 1973 को इटावा के सैफई में हुआ और इस तरह से जिदंगी के 46 साल का सफर उन्होंने आज तय कर लिया है।
सबसे कम उम्र के बने मुख्यमंत्री
मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत को संभाल रहे अखिलेश यादव 27 साल की उम्र में सांसद बने और 38 साल में देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बनने का इतिहास रचा।
हालांकि पिता की सियासी विरासत को अखिलेश लगातार खोते जा रहे हैं। यही वजह है कि सपा अपने इतिहास के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है, ऐसे में सवाल है कि अखिलेश पार्टी को दोबारा से वापसी करा पाएंगे?
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सियासी माहौल में पले-बढ़े अखिलेश ने साल 2000 में कन्नौज लोकसभा उप चुनाव को जीतकर राजनीतिक पारी का आगाज किया। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी बसपा के अकबर अहमद डम्पी को करीब 58 हजार वोटों से हराया। इसके बाद अखिलेश 2004 और 2009 में लगातार इस सीट पर विजयी हुए, लेकिन 2009 में कन्नौज के अलावा फिरोजाबाद संसदीय सीट से भी जीत दर्ज की थी। इसके बाद उन्होंने फिरोजाबाद संसदीय सीट से इस्तीफा दे दिया है।
यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव
2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने पूरे प्रदेश की यात्रा की। इसका नतीजा था कि सपा ने पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की। जिसके बाद मुलायम सिंह यादव ने बड़ा फैसला लेते हुए अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया।
इस तरह महज 38 साल की उम्र में अखिलेश यूपी के 33वें मुख्यमंत्री बने। सूबे में सबसे कम उम्र में मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड उनके नाम दर्ज है। हालांकि इसी के बाद से सपा का ग्राफ डॉउन होता चला गया।
यूपी में किया मेट्रो परियोजनाएं संचालन
अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री रहते हुए यूपी में मेट्रो परियोजनाएं संचालन करने, लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे जैसी इंफ्रास्ट्रक्चर आधारित प्रोजेक्ट के साथ-साथ युवाओं को लैपटॉप व गरीब महिलाओं को पेंशन दिए जाने की योजनाएं शुरू कीं। उन्होंने 'फोर लेन रोड' के साथ-साथ पूर्वांचल एक्सप्रेस वे परियोजना की नींव रखी, लेकिन सरकार चली जाने से पूरा नहीं हो सका।
अखिलेश यादव खुद को देश का समाजवादी नेता के साथ किसान, इंजीनियर, पर्यावरणविद व सामाजिक कार्यकर्ता भी बताते हैं। सपा की कमान जब से अखिलेश यादव को मिली है, पार्टी को लगातार हार का मुंह देखना पड़ रहा है। अखिलेश ने जितने भी राजनीतिक प्रयोग किए, सभी फेल रहे हैं।
सपा को सबसे पहले करारी हार 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली। मोदी लहर में सपा के सभी दिग्गज हार गए. महज 'मुलायम कुनबे' के सदस्य को छोड़कर कोई और नहीं जीत सका था। सपा को सिर्फ पांच सीटें मिली।
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सपा को मिली करारी हार
2017 के विधानसभा चुनाव से ऐन पहले मुलायम राजनीतिक विरासत को लेकर शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के बीच वर्चस्व की जंग हुई। इसमें अखिलेश सब पर भारी पड़े और पार्टी की कमान अपने हाथों में ले ली। इसके बाद अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन यह प्रयोग सफल नहीं हो सका और सपा को करारी हार मिली।
सपा को महज 46 सीटें मिली। इसके बाद अखिलेश यादव ने 2019 के लोकसभा चुनाव में मुलायम की मर्जी के बिना ही मायावती की पार्टी बसपा से गठबंधन का फैसला कर लिया। अखिलेश यादव ने मायावती के साथ सूबे भर में संयुक्त रैलियां की, लेकिन इस प्रयोग में भी सपा को वह जिता नहीं सके।
सपा को 2019 के लोकसभा चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा और पार्टी को महज पांच सीटें मिली। यही नहीं अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को कन्नौज, भाई धर्मेंद्र यादव को बदायूं और अक्षय यादव को फिरोजाबाद में हार का मुंह देखना पड़ा है।
मायावती ने हार का श्रेय दिया अखिलेश को
इस हार ने अखिलेश यादव और उनकी पार्टी दोनों को अंदर तक हिलाकर रख दिया है। दूसरी ओर, मायावती ने हार का सारा ठीकरा अखिलेश यादव और उनके वोट बैंक यादव समुदाय पर फोड़ते हुए गठबंधन तोड़ दिया।
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