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मस्जिदों से माइक पर होने वाली अजान पर, क्या कहते हैं मौलाना और क्या है आदेश

इस संबंध में जब शिया धर्म गुरु आगा रूही से बात की गई तो उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत रूप से वह इस मत के हैं कि अदालत का जो भी फैसला हो उसका पालन होना चाहिए। लेकिन इस मामले पर वह कोई कमेंट नहीं करना चाहते।

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Published on: 17 March 2021 8:53 AM GMT
मस्जिदों से माइक पर होने वाली अजान पर, क्या कहते हैं मौलाना और क्या है आदेश
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मस्जिदों से माइक पर होने वाली अजान पर, क्या कहते हैं मौलाना और क्या है आदेश

रामकृष्ण वाजपेयी

प्रयागराज: इलाहाबाद विश्व विद्यालय की कुलपति संगीता श्रीवास्तव ने शिकायत की है कि मस्जिद में होने वाली अजान से उनकी नींद में खलल पड़ता है। कुलपति के पत्र का संज्ञान लेकर जिलाधिकारी प्रयागराज भानुचंद्र गोस्वामी ने कहा है कि नियमानुसार आवश्यक कार्रवाई की जाएगी। कुलपति ने यह पत्र तीन मार्च को लिखा था लेकिन यह पत्र वायरल तब हुआ है जब कुलपति 15 मार्च से लंबी छुट्टी पर चली गई हैं।

गौरतलब यह है कि जब यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट ने करीब एक साल पहले दिया था उस समय फैसले पर प्रयागराज के शहर काजी, जामा मस्जिद चौक शफीक अहमद शरीफी (मुफ्ती) ने कहा था कि रात 10 बजे से सुबह छह बजे तक लाउडस्पीकर के उपयोग पर पहले से पाबंदी लगी है। हम उसका पालन कर रहे हैं। यही इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी कहा है, अजान पर कोई रोक नहीं है।

अदालत का जो भी फैसला हो उसका पालन होना चाहिए-आगा रूही

इस संबंध में जब शिया धर्म गुरु आगा रूही से बात की गई तो उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत रूप से वह इस मत के हैं कि अदालत का जो भी फैसला हो उसका पालन होना चाहिए। लेकिन इस मामले पर वह कोई कमेंट नहीं करना चाहते। मौलाना अलमदार हुसैन का कहना है कि अजान पर कोई पाबंदी नहीं है। अजान दो ढाई मिनट की होती है। जो कुछ भी हो रहा है वह नियमों और कायदे कानूनों के तहत हो रहा है।

ajan in mosque

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कुलपति ने जिलाधिकारी को अपने शिकायती पत्र में लिखा है कि 5.30 बजे सुबह होने वाली अजान से उनकी नींद खराब हो जाती है। हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि वह किसी धर्म जाति या संप्रदाय के खिलाफ नहीं हैं। उनका तर्क है अजान बिना माइक के भी हो सकती है। यदि ऐसा होता है तो लोगों को परेशानी भी नहीं होगी।

इलाहाबाद कोर्ट ने मई 2020 में अपने एक आदेश में कहा था कि लाउडस्पीकर से अजान देना इस्लाम का धार्मिक हिस्सा नहीं है। लेकिन अजान देने को अदालत ने इस्लाम का धार्मिक भाग माना था। इसलिए अदालत ने कहा था कि मस्जिदों से मोइज्जिन बिना लाउडस्पीकर अजान दे सकते हैं।

ध्वनि प्रदूषण मुक्त नींद का अधिकार

इसके अलावा हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि ध्वनि प्रदूषण मुक्त नींद का अधिकार व्यक्ति के जीवन के मूल अधिकारों का हिस्सा है। किसी को भी अपने मूल अधिकारों के लिए दूसरे के मूल अधिकारों का उल्लंघन करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने मुख्य सचिव को आदेश दिया था कि जिलाधिकारियों से इसका अनुपालन कराएं।

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ये मामला नया नहीं

किसी धर्म संप्रदाय द्वारा अपने इबादतगाह में ध्वनिविस्तारक यंत्र के इस्तेमाल का ये मामला नया नहीं है इससे पहले भी ‘चर्च ऑफ गॉड (फुल गास्पेल) इन इंडिया वर्सेस केकेआर मैजेस्टिक कालोनी वेलफेयर एसोसिएशन एण्ड अदर्स, 1999, नामक मामले में दक्षिण के पेण्टकोस्टल चर्च का यह मुकदमा चर्चित रहा था। वैसे चर्च के अन्दर लाउडस्पीकर लगाने की परम्परा नहीं है, मगर जब दक्षिण के उपरोक्त चर्च ने इसका इस्तेमाल शुरू किया तो पड़ोसी ने अदालत की शरण ली। निचली अदालत में हार मिलने के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और वहां पर भी चर्च को मात खानी पड़ी थी। शायद यही वजह रही इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने की बात करने वाले मौलानाओं ने बाद में इस मामले पर आगे कानूनी लड़ाई नहीं लड़ी।

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