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शादीशुदा बेटियां भी मृतक आश्रित: कोर्ट का बड़ा आदेश, मिलेगा नियुक्ति का अधिकार
जानकारी के मुताबिक, जस्टिस जेजे मुनीर ने एक महिला द्वारा याचिका दायर पर सुनवाई करने के बाद 5 जनवरी को यह आदेश दिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अविवाहित शब्द को असंवैधानिक करार देने के बाद नियमावली में पुत्री शब्द बचा है।
प्रयागराज: अधिकतर ऐसा होता है कि शादी के बाद बेटियों को उनके परिवार से अलग कर पारिवारिक अधिकारों से वंक्षित कर दिया जाता है। एक ऐसा ही मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट में सामने आया, जिसके बाद कोर्ट ने एक बड़े फैसले का ऐलान किया है। बता दें कि कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले सुनाते हुए कहा है कि अनुकंपा के आधार पर सरकारी सेवा में नियुक्ति के लिए एक बेटी को मृतक सरकारी कर्मचारी के परिवार का सदस्य माना जाएगा, भले ही उस बेटी की वैवाहिक हो या फिर अविवाहित।
अविवाहित शब्द असंवैधानिक
जानकारी के मुताबिक, जस्टिस जेजे मुनीर ने एक महिला द्वारा याचिका दायर पर सुनवाई करने के बाद 5 जनवरी को यह आदेश दिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अविवाहित शब्द को असंवैधानिक करार देने के बाद नियमावली में पुत्री शब्द बचा है। तो बीएसए विवाहित पुत्री को नियम न बदले जाने के आधार पर नियुक्ति देने से इनकार नहीं कर सकता है। शब्द हटने से नियम बदलने की जरूरत ही नहीं है। वही याचिका पर पर बहस करने वाले अधिवक्ता घनश्याम मौर्य का कहना था कि विमला श्रीवास्तव केस में कोर्ट ने नियमावली में अविवाहित शब्द को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है इसलिए विवाहित पुत्री को आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने का अधिकार है। बीएसए ने कोर्ट के फैसले के विपरीत आदेश दिया है, जो अवैध है।
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यह था मामला
सरकार की तरफ से कहा गया कि असंवैधानिक है, लेकिन नियम सरकार ने अभी बदला नहीं है। इसलिए विवाहित पुत्री को नियुक्ति पाने का अधिकार नहीं है। जानकारी के मुताबिक, याची की मां प्राइमरी स्कूल चाका में प्रधानाध्यापिका थीं। सेवा काल में उनका निधन हो गया। उसके पिता बेरोजगार हैं। मां की मौत के बाद जीवनयापन का संकट उत्पन्न हो गया है। उनकी तीन बेटियां हैं। सबकी शादी हो चुकी है। याची ने आश्रित कोटे में नियुक्ति की मांग की, जिसे अस्वीकार कर दिया गया।
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