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अरे! अब इस मामले पर भड़क गए इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील और कर दी हड़ताल ?

हाईकोर्ट बार एसोसिएशन हाॅल में हुई लायर्स वेलफेयर एसोसिएशन उत्तर प्रदेश के पदाधिकारियों की में सरकार के प्रस्ताव का खुला विरोध किया गया। अधिवक्ताओं ने एक स्वर से कहा कि शैक्षिक न्यायाधिकरण की स्थापना प्रयागराज के बजाए किसी अन्य जनपद में किया जाना गलत है।

SK Gautam
Published on: 14 Aug 2019 4:32 PM GMT
अरे! अब इस मामले पर भड़क गए इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील और कर दी हड़ताल ?
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प्रयागराज: शैक्षिक न्यायाधिकरण की पीठ प्रयागराज के बजाए लखनऊ में स्थापित करने के सरकारी प्रस्ताव के विरोध में आज उच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं ने न्यायिक कार्य नहीं किया। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के आह्वान पर तमाम अधिवक्ता संगठनों ने बार के समर्थन में न्यायिक कार्य न कर विरोध दर्ज कराया।

हाईकोर्ट बार एसोसिएशन हाॅल में हुई लायर्स वेलफेयर एसोसिएशन उत्तर प्रदेश के पदाधिकारियों की में सरकार के प्रस्ताव का खुला विरोध किया गया। अधिवक्ताओं ने एक स्वर से कहा कि शैक्षिक न्यायाधिकरण की स्थापना प्रयागराज के बजाए किसी अन्य जनपद में किया जाना गलत है।

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सेंटर फार सोशल एवं कांस्टीट्यूशनल रिफार्म के अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता ए एन त्रिपाठी ने कहा कि जहां हाईकोर्ट हो वहीं पर अधिकरण स्थापित किया जाना चाहिए। उन्होंने शिक्षा सेवा अधिकरण के गठन को असंवैधानिक बताया और कहा कि 42वें संविधान संशोधन से अधिकरण के गठन के उपबन्धों को संविधान में जोड़ा गया।

एक केस में सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा अधिकरण के गठन को लेकर टिप्पणी की है

अनुच्छेद 323 ए में प्रशासनिक अधिकरण गठित करने का अधिकार संसद के जरिये केंद्र सरकार का है और अनुच्छेद 323 बी के तहत अन्य मामलों में अधिकरण गठित करने का अधिकार राज्य सरकार को दिया गया है। इस अनुच्छेद में शिक्षा को शामिल नहीं किया गया है। एक केस में सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा अधिकरण के गठन को लेकर टिप्पणी की है।

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अनुच्छेद 21 ए में शिक्षा को मूल अधिकार में शामिल किया गया है। अध्यापक सरकारी सेवक नहीं है किंतु लोक कार्य करते हैं। शिक्षा का दायित्व राज्य का है। ऐसे में अध्यापकों को सिविल वाद या अधिकरण में उलझाने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए। अध्यापकों के मामले में याचिका ही उपचार होना चाहिए।

यह हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार में कटौती का प्रयास है

बार एसोसिएशन ने इलाहाबाद से सरकारी कार्यालयों को लखनऊ ले जाने को साजिश करार दिया है और कहा है कि यह हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार में कटौती का प्रयास है। जो कि सुप्रीम कोर्ट के नसीरुद्दीन केस का उल्लंघन है। इसी केस से लखनऊ पीठ के क्षेत्राधिकार में केवल दो कमिश्नरी को शामिल किया गया है। शेष प्रदेश के जिले इलाहाबाद की प्रधानपीठ के क्षत्राधिकार में शामिल किया गया है।

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