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जिले में 14वें वित्त आयोग से प्राप्त धनराशि के तकनीकी एवं प्रशासनिक मद में सामने आए लाखों के घोटाले के बाद जिलाधिकारी के निर्देश पर टांडा एवं जहांगीरगंज विकासखंड को छोड़कर शेष सभी सात विकास खंडों में 2016 के बाद कार्यरत रहे सहायक विकास अधिकारी, पंचायत के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करा दी गई है
अम्बेडकर नगर (यूपी): जिले में 14वें वित्त आयोग से प्राप्त धनराशि के तकनीकी एवं प्रशासनिक मद में सामने आए लाखों के घोटाले के बाद जिलाधिकारी के निर्देश पर टांडा एवं जहांगीरगंज विकासखंड को छोड़कर शेष सभी सात विकास खंडों में 2016 के बाद कार्यरत रहे सहायक विकास अधिकारी, पंचायत के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करा दी गई है लेकिन इस घोटाले की अहम कड़ी माने जाने वाले खंड विकास अधिकारियों पर जिला प्रशासन द्वारा अभी भी कृपा बरसाए जाने के कारण एक देहाती कहावत पूरी तरह चरितार्थ हो रही है जिसमें कहा गया है कि "गुड़ खाओ लेकिन गुलगुला से परहेज करो"। इस कहावत का आशय यह है कि गुड़ तो खाये जाओ और कहा करो कि हम गुलगुला नही खाते।
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विकास खंडों में तैनात खण्ड विकास अधिकारी इस मलाईदार खाते के संचालन के प्रति अनजान कैसे रहे,यह बात किसी भी तरह से हजम नही होती। सूत्रों की माने तो खण्ड विकास अधिकारियो को इस खाते के संचालन की स्थिति की पूरी जानकारी थी लेकिन वे जान बूझकर इससे दूरी बनाए रहे जिससे कभी मामला फंसने पर वह बचे रह सकें। खण्ड विकास अधिकारी जानते हुए भी सहायक विकास अधिकारियो को मोहरा बनाकर खाते का संचालन करते रहे और खुद वजीर बनकर मौज करते रहे। बताया जाता है कि 14 वे वित्त आयोग से प्राप्त होने वाली धनराशि पर सबकी नजर होती है। क्योंकि मनरेगा से कच्चा काम होता है और 14 वे वित्त आयोग की धनराशि से पक्का काम होता है।इसी पक्के काम के सहारे कच्चे काम को हजम कर लिया जाता है। ऐसे में इस खाते के संचालन के बारे में खंड विकास अधिकारियों को जानकारी ना रही हो, यह संभव ही नहीं है ।
अब जिला विकास अधिकारी वीरेंद्र सिंह को ही लें। टांडा में खण्ड विकास अधिकारी के रूप में तैनाती के दौरान इन्होंने इस खाते का संचालन संयुक्त रूप से तो किया लेकिन अकबरपुर विकासखंड में कार्यभार ग्रहण करने के बाद वह इसे करना भूल गए। जो अधिकारी एक विकासखंड में खाते का संचालन संयुक्त रूप से कर रहा हो, वह दूसरे विकास खंड में जाने पर उससे अनजान बना रहे ,यह संभव ही नहीं है। जाहिर है कि खंड विकास अधिकारी चुप्पी मार कर मौज लेते रहे और सहायक विकास अधिकारी अपनी गर्दन कटवाते रहे। मामला फंस जाने के बाद अब खंड विकास अधिकारियों ने इन्हीं सहायक विकास अधिकारियों को आरोपी बनाते हुए प्राथमिकी दर्ज करा दी है लेकिन प्रश्न यह है कि क्या वह अपनी जिम्मेदारी से बच सकेंगे। खंड विकास अधिकारियों की नाक के नीचे ही कथित रूप से लूटपाट होती रही और वह इसके प्रति अनजान बने रहे, क्या यह संभव है।
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सूत्रों की माने तो कटेहरी विकासखंड में घोटाले का मामला सामने सामने आने के बाद 2016 के बाद से तैनात रहे खण्ड विकास अधिकारियों के नाम भी तहरीर में डाले गए थे लेकिन विकास भवन के एक जिम्मेदार अधिकारी के हस्तक्षेप पर उनके नाम निकाल कर खाते का संचालन करने वाले सहायक विकास अधिकारियों को ही आरोपी बना दिया गया । प्रश्न यह उठता है कि क्या खंड विकास अधिकारियों ने अपनी जिम्मेदारी का ईमानदारी के साथ निर्वहन किया ? क्या शासन की योजनाओं के संचालन में उन्होंने अपनी भूमिका सही तरीके से संपादित की ? इसका जवाब फिलहाल न में आ रहा है। अब देखना यह है कि जिला प्रशासन पिछले दरवाजे से खेल खेलने वाले खंड विकास अधिकारियों की प्रति क्या रुख अपनाता है।
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