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शबनम की फांसी टली: ये है बड़ी वजह, कातिल की सजा-ए-मौत का विरोध क्यों?
अमरोहा में बावनखेड़ी हत्याकांड की दोषी शबनम की फांसी मंगलवार कोई एक बार फिर टल गई। शबनम के वकील ने राज्यपाल के समक्ष दया याचिका दाखिल की है।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की अमरोहा की हत्यारिन (Amroha Murder Case) शबनम (Shabnam) इन दिनों काफी चर्चा में हैं। साल 2008 में अपने ही परिवार के 8 लोगों की कुल्हाड़ी से निर्मम हत्या के अमले में दोषी शबनम को फांसी दी जानी है। आजाद भारत के इतिहास में पहली बार किसी महिला को फांसी दी जाएगी लेकिन उसके पहले ही शबनम की फांसी के बार फिर टाल दी गयी।
शबनम की फांसी टली, वकील ने राज्यपाल से मांगा दया याचिका
अमरोहा में बावनखेड़ी हत्याकांड की दोषी शबनम की फांसी मंगलवार कोई एक बार फिर टल गई। दरअसल, अमरोहा में जिला न्यायालय ने अभियोजन से कातिल शबनम का ब्यौरा मांगा था, हालांकि शबनम के वकील ने राज्यपाल के समक्ष दया याचिका दाखिल की है। ऐसे दया याचिका दाखिल होने के कारण फांसी की तारीख तय नहीं हो सकी।
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क्या है बावनखेड़ी हत्याकांड, शबनम का अपराध
बता दें कि बीती 15 अप्रैल 2008 को शबनम और उसके प्रेमी ने मिलकर पूरे परिवार को मौत के घाट उतार दिया था। शबनम का परिवार दोनो शादी के खिलाफ था। जिसके बाद शबनम ने अपने ही परिवार के सात लोगों की कु्ल्हाड़ी से काट कर हत्या कर दी थी। शबनम ने प्रेमी सलीम संग मिलकर अपने पिता शौकत अली (55), मां हाशमी (50), बड़े भाई अनीस (35), अनीस की पत्नी अंजुम (25), छोटे भाई राशिद (22), चचेरे भाई राबिया (14) और अर्श, अनीस का 10 महीने के बच्चा की नृशंस हत्या कर दी। दोष साबित होने के बाद शबनम के लिए फांसी की सजा तय हो गई है।
शबनम को फांसी दी जानी चाहिए या नहीं?
हालांकि सजा के बाद से उसकी बहस छिड़ गई कि शबनम को फांसी दी जानी चाहिए या नहीं। जेल में जन्म लेने वाले शबनम के 12 साल के बेटे ने एक बार फिर से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल से अपनी मां को क्षमादान देने की अपील की है। जबकि पहले ही ये अपीलें खारिज हो चुकी हैं।
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एक बड़ा तबका जहां अदालत के फैसले पर खुशी जता रहा है। और कह रहा है कि हमारे न्यायिक तंत्र के लिए गर्व की बात है कि शबनम के संबंध में एक दृढ़ निर्णय लिया गया, जो एक बेटी और एक बहन होने के नाते, महिलाओं के लिए एक काला धब्बा साबित हुई है।