×

शबनम को सजा ए मौतः महिला को फांसी देना जिन्हें मंजूर नहीं, पढ़ें ये कड़वी सचाई

जेल में जन्म लेने वाले शबनम के 12 साल के बेटे ने एक बार फिर से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल से अपनी मां को क्षमादान देने की अपील की है। जबकि पहले ही ये अपीलें खारिज हो चुकी हैं।

Vidushi Mishra
Published on: 23 Feb 2021 1:53 PM IST
शबनम को सजा ए मौतः महिला को फांसी देना जिन्हें मंजूर नहीं, पढ़ें ये कड़वी सचाई
X
शबनम कोई अनपढ़ जाहिल नहीं थी। शबनम अपने माता पिता के परिवार के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अमरोहा की हसनपुर तहसील के एक गाँव बावनखेड़ी में रहती थी।

रामकृष्ण वाजपेयी

नई दिल्ली। 15 अप्रैल 2008 को शबनम और उसके प्रेमी ने मिलकर पूरे परिवार को मौत के घाट उतार दिया था। क्योंकि दोनो शादी करना चाहते थे और घर वाले उनका विरोध कर रहे थे। अब जबकि सात लोगों की हत्या के इस दोषी को फांसी की सजा तय हो गई है ये सवाल उठ रहे हैं कि आजाद भारत में पहली बार किसी महिला को फांसी दी जा रही है। एक बहस छिड़ गई है कि फांसी दी जानी चाहिए या नहीं। जबकि शबनम और उसका प्रेमी सलीम सात लोगों – शबनम के पिता शौकत अली (55), मां हाशमी (50), बड़े भाई अनीस (35), अनीस की पत्नी अंजुम (25), छोटे भाई राशिद (22), चचेरे भाई राबिया (14) और अर्श, अनीस का 10 महीने का बच्चा बेटा की नृशंस हत्या के दोषी हैं।

ये भी पढ़ें...अकेलापन दूर करेंगे मंत्री: सरकार का बड़ा कदम, Minister of Loneliness की नियुक्त

मां को क्षमादान देने की अपील

जेल में जन्म लेने वाले शबनम के 12 साल के बेटे ने एक बार फिर से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल से अपनी मां को क्षमादान देने की अपील की है। जबकि पहले ही ये अपीलें खारिज हो चुकी हैं।

sabnam chacha फोटो-सोशल मीडिया

परिवार के सभी सदस्यों की हत्या

गौरतलब यह है कि शबनम कोई अनपढ़ जाहिल नहीं थी। वह सैफी मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखती है। शबनम अपने माता पिता के परिवार के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अमरोहा की हसनपुर तहसील के एक गाँव बावनखेड़ी में रहती थी।

वह दो विषयों, अंग्रेजी और भूगोल में स्नातकोत्तर थी। उसने शिक्षा मित्र (सरकारी स्कूल शिक्षक) के रूप में काम किया। वह सलीम को प्यार करती थी लेकिन उसका परिवार सलीम के साथ उसके रिश्ते का विरोध कर रहा था। जो छठी पास था और अपने घर के बाहर लकड़ी के कारखाने में काम करता था। वह पठान समुदाय से था।

शबनम अब फिर से खुद को निर्दोष बता रही है। उसने अपने बेटे की सुरक्षा को लेकर भी चिंता जताई है उसका कहना है जिन लोगों ने उसके परिवार की रंजिश में हत्या की है वह उसके बेटे को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।

परिवार की जघन्य हत्या के मामले में भी शबनम ने ही अपने परिवार की हत्या किये जाने का शोर मचाया था। उसने शुरू में दावा किया था कि अज्ञात हमलावरों ने उसके घर में घुसकर सभी को मार डाला था।

ये भी पढ़ें...पीएम मोदी पश्चिम बंगाल के IIT खड़गपुर के 66 वें दीक्षांत समारोह में शामिल हुए

हालांकि, बाद में ये युगल एक दूसरे के खिलाफ हो गए। 2015 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि शबनम ने अपने सेक्शन 313 के बयान में कहा कि सलीम ने छत से चाकू लेकर घर में प्रवेश किया था और उसके परिवार के सभी सदस्यों की हत्या कर दी थी, जब वह सो रही थी।

दूसरी ओर, सलीम ने कहा कि वह "केवल शबनम के कहने पर" उसके घर गया था और जब वह वहां पहुंचा, तो शबनम ने परिवार के लोगों को मारने की बात कबूल की थी।

फोटो-सोशल मीडिया

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में

अपराध के सात साल बाद, जब उसके बेटे को पालक की देखभाल के लिए जब भेजा जा रहा था, उस समय शबनम ने दावा किया कि उसे बच्चे के जीवन के लिए डर है, क्योंकि "जिन लोगों ने संपत्ति के विवाद में उसके परिवार को मार डाला था, वे उसे भी नुकसान पहुंचा सकते हैं"।

वर्तमान में यह मामला एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में है।

एक बड़ा तबका जहां अदालत के फैसले पर खुशी जता रहा है। और कह रहा है कि हमारे न्यायिक तंत्र के लिए गर्व की बात है कि शबनम के संबंध में एक दृढ़ निर्णय लिया गया, जो एक बेटी और एक बहन होने के नाते, महिलाओं के लिए एक काला धब्बा साबित हुई है।

यह सच है कि 'प्यार अंधा होता है', लेकिन हमारे माता-पिता से परे नहीं। इस्लाम सिखाता है कि माता के पैरों के नीचे स्वर्ग है, और पृथ्वी पर सबसे बड़ा रिश्ता एक पिता और एक बेटी का है। और शबनम ने एक बेहूदा तरीके से इसे पलट दिया जो कि अमानवीय है।

ये भी पढ़ें...फिल्मी थाना इंचार्जः गाना सुनाकर दहेज पीड़िता से किया ऐसा सवाल, पुलिस हुई बदनाम

मानवाधिकार का सवाल

वहीं किसी को भी फांसी देने का विरोध करने वाला तबका यह कह रहा है कि महिला को फांसी देने का फैसला दुखद है। खासकर भारत जैसे देश में एक महिला को कभी भी फांसी नहीं दी जानी चाहिए। हमारी परंपरा नारी को देवी के रूप में पूजती है। याद रखें कि वह एक बच्चे की माँ है और हमारे समाज में उसके कुछ अधिकार हैं जिन्हें हम छोड़ नहीं सकते हैं। ये लोग मानवाधिकार का सवाल भी उठा रहे हैं।

हालांकि भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी के रूपों के रूप में पूजा जाता है, लेकिन इन धर्मग्रंथों में राक्षसी भी हैं जो देवताओं और उनके अवतारों द्वारा मारी गई हैं। उन्हें सजा दी गई है जैसे सूपनखा, महिषी, ताड़का, पूतना, लंकिनी, सिंघिका, सुरसा आदि। इसे लिंग-पक्षपाती मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए।

दूसरी बात शबनम मौत की सजा पाने वाली पहली महिला नहीं है। रेणुका शिंदे और सीमा मोहन गावित, 1990 से 1996 के बीच पांच बच्चों की हत्या और 13 अन्य के अपहरण की दोषी हैं। ये दोनो भी फांसी पर लटकाए जाने का इंतजार कर रही हैं।

ये भी पढ़ें...हिंदी सिनेमा की टॉप एक्ट्रेस महुबाला, ऐसे हुई थी अभिनेत्री की मौत

Vidushi Mishra

Vidushi Mishra

Next Story