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चौरी-चौरा कांड: स्वतंत्रता आंदोलन की वो घटना, जब दो धड़ों में बंट गए थे क्रांतिकारी
गोरखपुर जनपद के चौरीचौरा में 4 फरवरी,1922 को आजादी के दीवानों द्वारा परिस्थितिजन्य कारणवश थाना फूंके जाने की घटना स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में वह मील का पत्थर है, जिसने स्वतंत्रता आन्दोलन में शामिल क्रान्तिकारियों को दो धड़े में बाँट दिया - एक नरम दल तो दूसरा गरम दल ।
कानपुर देहात: गोरखपुर जनपद के चौरीचौरा में 4 फरवरी,1922 को आजादी के दीवानों द्वारा परिस्थितिजन्य कारणवश थाना फूंके जाने की घटना स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में वह मील का पत्थर है, जिसने स्वतंत्रता आन्दोलन में शामिल क्रान्तिकारियों को दो धड़े में बाँट दिया - एक नरम दल तो दूसरा गरम दल । लक्ष्य एक, मंत्र एक, साधना एक पर तरीके अलग-अलग।
'क्रान्ति' को 'कांड' का नाम दे दिया गया
सबसे बड़ी विडम्बना यह है की इस घटना को स्वतंत्र भारत में आज भी 'क्रान्ति' नहीं बल्कि 'कांड' नाम से सम्बोधित किया जाता है । 'कांड' का शाब्दिक भाव होता है 'आपराधिक गतिविधि'। यह तो हमारा सौभाग्य है कि देश तथा प्रदेश में आज ऐसी सरकारें सत्तासीन हैं जिन्होंने देश के इतिहास को सही रूप में प्रतिष्ठित करने तथा दबा-छिपा दी गई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं और तथ्यों को उजागर करने का बीड़ा उठाया है ।
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इसी क्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ महाराज चौरीचौरा क्रान्ति की 100वीं बरसी पर वर्षपर्यन्त चलने वाले शताब्दी समारोह मनाए जाने की घोषणा तथा उक्त की शुरुआत देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा कराए जाने का कार्य निश्चित रूप से स्तुत्य है, प्रशंसनीय है तथा देश की आजादी के लिए मर-मिटने वालों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है ।
उस समय गोरखपुर जनपद में चौरीचौरा ब्रिटिश कपड़ों तथा अन्य वस्तुओं की एक प्रमुख मण्डी हुआ करती थी । अंग्रेजी दासता से देश को मुक्त कराने के लिए गांधी जी द्वारा चलाए गए 'असहयोग आन्दोलन' में स्थानीय लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया । उक्त के अंतर्गत स्थानीय नागरिकों तथा व्यापारियों ने विदेशी वस्त्रों तथा वस्तुओं का बहिष्कार प्रारम्भ कर दिया था । व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस मण्डी में हो रहे इस विरोध को रोकने के लिए पुलिस ने 2 फरवरी,1922 को आन्दोलनकारियों की अगुवाई कर रहे 2 नेताओं को गिरफ्तार कर लिया ।
अपने नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में 4 फरवरी,1922 को करीब 3 हजार आन्दोलनकारियों ने चौरीचौरा थाने के सामने प्रदर्शन कर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ नारेबाजी प्रारम्भ कर दी । पुलिस ने पहले हवाई फायरिंग कर जन-प्रदर्शन को दबाने की कोशिश की, किन्तु फिर भी आन्दोलनकारियों के न हटने पर सीधी फायरिंग कर दी जिसमें 3 प्रदर्शनकारी मारे गए तथा 50 से ज्यादा घायल हुए । पुलिस की इस कार्रवाई के प्रतिरोध में प्रदर्शनकारी उग्र हो गए और उन्होंने चौरीचौरा थाने पर हमला कर उसमें आग लगा दी, जिसमें थानेदार गुप्तेश्वर सिंह सहित कुल 22 पुलिसकर्मी मारे गए ।
चौरीचौरा में घटी इस घटना की जानकारी जंगल की आग की तरह सारे देश में फैल गई । हिंसा के सख्त विरोधी महात्मा गांधी ने इस पर गहरी नाराजगी जताई तथा घटना से आहत होकर 'असहयोग आन्दोलन' वापस ले लिया । गांधी जी को इसके पहले इतना नाराज शायद कभी नहीं देखा गया था । गांधी जी द्वारा इस प्रकार अचानक 'असहयोग आन्दोलन' वापस उठा लिए जाने का निर्णय अधिकांश लोगों, खासकर क्रान्तिकारियों, को अच्छा नहीं लगा और 1922 की गया कांग्रेस में प्रेमकृष्ण खन्ना व उनके साथियों ने पं राम प्रसाद बिस्मिल के साथ कंधे से कंधा मिलाते हुए गांधी जी का विरोध किया । स्वतंत्रता आन्दोलन में शामिल क्रान्तिकारी दो भाग में बँट गए - एक नरम दल तो दूसरा गरम दल । सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, पं राम प्रसाद बिस्मिल तथा चन्द्र शेखर आजाद जैसे क्रान्तिकारी गरम दल के नायक बने ।
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चौरीचौरा की इस घटना में 222 लोगों को आरोपी बनाया गया था जिसमें से 19 लोगों को फांसी हुई । आरोपी बनाए गए लोगों की तरफ से मुकदमे की पैरवी महामना पं मदन मोहन मालवीय जी ने की थी । चौरीचौरा क्रान्ति के 19 सत्याग्रहियों को प्रदेश की विभिन्न जेलों में 2 से 11 जुलाई,1922 के बीच विभिन्न तिथियों में फांसी दी गई थी जिसका विवरण इस प्रकार है -
2 जुलाई,1922 को जिनकी फांसी हुई
रघुबीर सोनार - कानपुर जेल
रामलगन - कानपुर जेल
सम्पत अहीर - इटावा जेल
श्याम सुन्दर मिश्र - इटावा जेल
सीताराम - इटावा जेल
3 जुलाई,1922 को जिनकी फांसी हुई
अब्दुल्ला - बाराबंकी जेल
लाल मुहम्मद - रायबरेली जेल
लवटू कोंहार - रायबरेली जेल
4 जुलाई,1922 को जिनकी फांसी हुई
मेघू उर्फ लालबिहारी - आगरा जेल
नजर अली - फतेहगढ़ जेल
भगवान अहीर - अलीगढ़ जेल
रामरूप बरई - उन्नाव जेल
महादेव - बरेली जेल
कालीचरन - गाजीपुर जेल
5 जुलाई,1922 को जिनकी फांसी हुई
विक्रम अहीर - मेरठ जेल
रुदली केवट - प्रतापगढ़ जेल
9 जुलाई,1922 को जिनकी फांसी हुई
सम्पत - झांसी जेल
सहदेव - झांसी जेल
11 जुलाई,1922 को जिनकी फांसी हुई
दुधई भर - जौनपुर जेल
फांसी के बाद इन शहीदों के शव इनके परिजनों को उपलब्ध तक नहीं कराए गए।
आज 'चौरीचौरा क्रान्ति' की 100वीं बरसी पर तथा 'शताब्दी वर्ष' की शुरुआत पर शहीद क्रान्तिवीरों को शत-शत नमन है !!
-मनोज सिंह