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राम मंदिर: आंदोलन का मुख्य शिल्पी नहीं देख पाएगा भूमि पूजन

अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन होने जा रहा है लेकिन पूरा जीवन इस पल की प्रतीक्षा और संघर्ष में खपाने वाला राम मंदिर का मुख्य शिल्पी अब इसको देखने के लिए जीवित नहीं है।

Newstrack
Published on: 3 Aug 2020 7:34 AM GMT
राम मंदिर: आंदोलन का मुख्य शिल्पी नहीं देख पाएगा भूमि पूजन
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लखनऊ: अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन होने जा रहा है लेकिन पूरा जीवन इस पल की प्रतीक्षा और संघर्ष में खपाने वाला राम मंदिर का मुख्य शिल्पी अब इसको देखने के लिए जीवित नहीं है। अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन के नायक रहे विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) संरक्षक और मंदिर आंदोलन के मुख्य रणनीतिकार अशोक सिंघल चाहते थे कि उनके ही जीवनकाल में यहां राम का भव्य मंदिर बन जाए, लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हुई।

14 नवम्बर 2018 को सांस की बीमारी के कारण अस्पताल में भर्ती 89 वर्षीय सिंघल ने 17 नवंबर 2018 को दो बजकर 24 मिनट पर अंतिम सांस ली। उनके निधन से महज दो दिन पहले उनका हालचाल लेने पहुंचे गृहमंत्री राजनाथ सिंह और विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया से मुलाकात के बाद सिंघल ने कहा था, मैं अभी ठीक हूं, मुझे कुछ नहीं हुआ है। अभी तो अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाना है।

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20 वर्षों तक विश्व हिन्दू परिषद के कार्यवाहक अध्यक्ष रहे

वर्ष 1926 में उत्तर प्रदेश के आगरा में जन्मे सिंघल 20 वर्षों तक विश्व हिन्दू परिषद के कार्यवाहक अध्यक्ष रहे। अस्वस्थ रहने की वजह से उन्होंने दिसम्बर 2011 में यह पद छोड़ दिया था। उनके स्थान पर प्रवीण भाई तोगड़िया को विहिप का कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया था। वर्ष 1950 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से इंजीनियरिंग में स्नातक करने से पहले ही वे 1942 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए थे लेकिन स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह पूर्णकालिक प्रचारक बने। उन्होंने उत्तर प्रदेश में कई स्थानों पर काम किया और दिल्ली तथा हरियाणा के प्रांत प्रचारक बने। वर्ष 1980 में उन्हें विश्व हिंदू परिषद का संयुक्त महासचिव बनाया गया।

दलितों के लिए 200 मंदिर बनवाए

वर्ष 1981 में तमिलनाडु में मीनाक्षीपुरम धर्मांतरण के बाद विहिप ने खास तौर पर दलितों के लिए 200 मंदिर बनवाए और इसमे सिंघल का बहुत योगदान है। इसके बाद वर्ष 1984 में वह विहिप के महासचिव बने और बाद में उन्हे विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष का पद सौंपा गया। इस पद पर वह दिसंबर 2011 तक रहे। वर्ष 1984 में उन्होंने विहिप की पहली धर्मसंसद के प्रमुख आयोजन की जिम्मेदारी संभाली जिसमें हिन्दू धर्म मजबूत करने पर चर्चा में सैकड़ों साधुओं और हिन्दू संतों ने भाग लिया। इसी धर्म संसद में अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर पर दावा फिर से हासिल करने के आंदोलन का जन्म हुआ और जल्द ही सिंघल राम जन्मभूमि आंदोलन के मुख्य सदस्य के रूप में उभरे।

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मंदिर आंदोलन के दौरान नवम्बर 1990 में वह प्रशासन की तमाम कोशिशों के बावजूद अयोध्या पहुंचने में सफल रहे और उनके नेतृत्व में कारसेवकों ने विवादित ढ़ाचें पर भगवा फहरा दिया। इसके बाद हुए लाठीचार्ज में वह घायल और गिरफ्तार हुए। वह जीवन पर्यन्त मंदिर आंदोलन के लिए संघर्ष करते रहे और आंदोलन की धार को कभी भी कम नहीं होने दिया। उन्होंने आक्रामक शैली अपनाते हुए राम जन्मभूमि और राम सेतु आंदोलनों के लिए लोगों को एकजुट करने में प्रमुख भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व में विहिप ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थकों को जोड़ा और विदेश में कार्यालय स्थापित किए। बताया जाता है कि अयोध्या में कारसेवा अभियान करने में भी सिंघल महत्वपूर्ण योगदान था।

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