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अयोध्या: राम जन्मभूमि न्यास को मिलेगी विवादित जमीन, जानें इसके बारे में सबकुछ
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा है कि केंद्र सरकार तीन महीने में स्कीम लाए और ट्रस्ट बनाए। यह ट्रस्ट राम मंदिर का निर्माण करेगा।
लखनऊ: अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। सबसे पहले चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया(सीजेआई) रंजन गोगोई ने शिया वक्फ बोर्ड की याचिका खारिज करने की बात बताई थी।
इसके बाद निर्मोही अखाड़े का भी दावा खारिज कर दिया। कोर्ट ने एएसआई की रिपोर्ट के आधार पर कहा कि मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनाई गई थी।
मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने की भी पुख्ता जानकारी नहीं है। आस्था के आधार पर जमीन का मालिकाना हक नहीं दिया जा सकता। फैसला कानून के आधार पर ही दिया जाएगा।
मुस्लिम पक्ष जमीन पर दावा साबित करने में नाकाम रहा है। मुस्लिमों(सुन्नी वक्फ बोर्ड) को दूसरी जगह 5 एकड़ जमीन दी जाए। विवादित जमीन रामलला की है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा है कि केंद्र सरकार तीन महीने में स्कीम लाए और ट्रस्ट बनाए। यह ट्रस्ट राम मंदिर का निर्माण करेगा।
इस फैसले में विवादित जमीन रामजन्मभूमि न्यास को देने का फैसला किया गया है। पांच जजों की बेंच ने यह फैसला सर्वसम्मति से दिया।
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यहां जानें रामजन्मभूमि न्यास के बारे में सबकुछ
राम जन्मभूमि न्यास की स्थापना विश्व हिंदू परिषद के सदस्यों के द्वारा 25 जनवरी 1993 को एक स्वतंत्र ट्रस्ट के तहत की गई थी।
राम जन्मभूमि न्यास अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण को बढ़ावा देने और उसकी देखरेख करने के लिए एक ट्रस्ट के रूप में गठित किया गया एक संगठन है।
रामचंद्र दास परमहंस (1913-2003) रामजन्मभूमि न्यास के मुखिया थे। कारसेवकपुरम में मंदिर निर्माण के लिए चलने वाली वर्कशॉप का संचालन इसी के देखरेख में होता रहा है।
हाई कोर्ट ने विवादित स्थल को राम जन्मभूमि का बताया था
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 30 सितंबर, 2010 को अयोध्या के विवादित स्थल को राम जन्मभूमि का बताया था। कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्माही अखाड़ा और रामलला के बीच जमीन बराबर बांटने का आदेश दिया था।
हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन का बंटवारा कर दिया गया था।
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1989 में भगवान को बताया गया था संपत्ति का मालिक
1989 के आम चुनाव से पहले विश्व हिंदू परिषद के एक नेता और रिटायर्ड जज देवकी नंदन अग्रवाल ने 1 जुलाई को भगवान राम के मित्र के रूप में पांचवां दावा फैजाबाद की अदालत में दायर किया था।
इस दावे में स्वीकार किया गया था कि 23 दिसंबर 1949 को राम चबूतरे की मूर्तियां मस्जिद के अंदर रखी गई थीं। इसके साथ ही यह स्पष्ट दावा किया गया कि जन्म स्थान और भगवान राम दोनों पूज्य हैं और वही इस संपत्ति के मालिक भी हैं।
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