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अयोध्या: जानिए उस जमीन के बारे में जिस पर था विवाद

हिंदू धर्म में प्रार्थना के लिए जरूरी नहीं है कि वहां पर मूर्तियां हो। परासरन ने स्कंद पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों का जिक्र करते हुए बताया कि वहां पर काफी बड़ा मंदिर का ढांचा था और वहां पिलर भी मिले हैं।

Shivakant Shukla
Published on: 9 Nov 2019 7:00 AM GMT
अयोध्या: जानिए उस जमीन के बारे में जिस पर था विवाद
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अयोध्या: वर्तमान टाइटल सूट मामले में राम लला विराजमान 1989 में पहली बार लीगल पार्टी बने थे। राम लला राम को शिशु के तौर पर पेश कर रही है और कह रही है कि वो कोर्ट जाने को लेकर योग्य नहीं है। इसलिए इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज देउकी नंदन अग्रवाल इस मामले को हाईकोर्ट ले गए। इसी मामले में जन्मभूमि को लेकर भी विवाद है।

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अखाड़ा की तरफ से सभी दलीलें खत्म होने के बाद राम लला विराजमान और सभी हिंदू संगठनों (जिसे सुप्रीम कोर्ट ने एक ही ईकाई माना है) ने दावा किया कि भव्य राम मंदिर बाबरी मस्जिद की जगह पर ही बना हुआ था। जिसपर बाबर ने 16वीं सदी में मस्जिद का निर्माण करवाया था। उनका दावा है कि ने केवल विवादित भूमि बल्कि पूरी अयोध्या (जो कि राम की जन्मभूमि है) एक न्यायिक ईकाई है।

वरिष्ठ वकील और पूर्व अटार्नी जनरल के परासरन राम लला का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। हिंदू लोगों का भूमि पर अधिकार के बारे में दलीलें पेश करते हुए उन्होंने आजादी से पहले आए इस मामले के फैसले का जिक्र किया। मस्जिद शाहिद गंज मामले में कहा गया था कि मस्जिद स्थान केवल प्रार्थना के लिए है और इसे हिंदू प्रार्थना स्थल से तुलना नहीं कर सकते हैं जो कि एक लीगल ईकाई है।

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हिंदू धर्म में प्रार्थना के लिए जरूरी नहीं है कि वहां पर मूर्तियां हो

उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म में प्रार्थना के लिए जरूरी नहीं है कि वहां पर मूर्तियां हो। परासरन ने स्कंद पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों का जिक्र करते हुए बताया कि वहां पर काफी बड़ा मंदिर का ढांचा था और वहां पिलर भी मिले हैं।

उन्होंने 2003 में एएसआई के सर्वे का जिक्र भी किया जिसमें उस जगह पर ढ़ांचा मिलने की बात कही गई थी। उन्होंने दलील दी कि मस्जिद की जगह पर मंदिर के अवशेष मिले हैं। जो साबित करता है मुस्लिम लोग इस जगह पर प्रार्थना नहीं करते थे और ये इस्लामिक मान्यताओं के खिलाफ है। 6 दिसंबर 1992 को जब बाबरी मस्जिद को गिराया गया था उससे पहले इस जगह पर मूर्तियों की फोटो मिली थी।

1950 में फैजाबाद के कमिश्नर ने एक रिपोर्ट तैयार की थी जिसमें इस जगह पर 14 पिलर होने की बात कही थी। इन पिलर का हिंदू धर्म से संबंध था। दावा किया गया कि एक पिलर पर गरुड़ की तस्वीर बनी हुई है जिसे हिंदू मान्यताओं में माना जाता है। राम लला ने दलील दी कि मुस्लिम मस्जिदों में इंसानों और जानवरों की तस्वीरें नहीं होती हैं।

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अंग्रेस मर्चेंट विलियम फिंच, इतालियन मिशनरी जोसेफ ताइफेनथेलर और आइरिश लेखक मार्टिन के 17वीं, 18वीं और 19वीं सदी में लिखे यात्रावृत्तांत भी राम लला के दलीलों को सही ठहराते हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इन मूर्तियों के कोर्ट में प्रस्तुतिकरण पर एतराज जताया है और कहा है कि इस मामले के शुरुआती समय में ऐसे सबूत पेश नहीं किए गए थे। रामलला ने अपनी दलीलों में कहा कि यह भूमि भगवान राम से संबंध रखती है और कोई इस पर दावा नहीं कर सकता है, और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने आज इस मामले पर एतिहासिक फैसला सुना दिया है।

Shivakant Shukla

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