×

मामला अयोध्या का जानिए अब तक क्या हुआ

असल में इलाहाबाद हाईकोर्ट 30 सितंबर 2010 को अयोध्या टाइटल विवाद में फैसला दे चुका है। इस फैसले में कहा गया है कि विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटा जाए। जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे ‘रामलला विराजमान’ को दिया जाए।

Shivakant Shukla
Published on: 9 Nov 2019 11:52 AM IST
मामला अयोध्या का जानिए अब तक क्या हुआ
X

अयोध्या: अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में ‘बाबरी मस्जिद’ को गिरा दिया गया था। इस मामले में क्रिमिनल केस के साथ-साथ सिविल मुकदमा भी चला। मंदिर या मस्जिद का मालिकाना हक़ किसके पास है इसी से सम्बंधित एक केस सुप्रीम कोर्ट में 6 साल से चल रहा है।

असल में इलाहाबाद हाईकोर्ट 30 सितंबर 2010 को अयोध्या टाइटल विवाद में फैसला दे चुका है। इस फैसले में कहा गया है कि विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटा जाए। जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे ‘रामलला विराजमान’ को दिया जाए। ‘सीता रसोई’ और ‘राम चबूतरा’ निर्मोही अखाड़े को दिया जाए जबकि बाकी का एक तिहाई लैंड सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी जाए। हाईकोर्ट के फैसले के बाद ‘रामलला विराजमान’ और हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।

वहीं सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी सुप्रीमकोर्ट में अर्जी दाखिल कर दी। इसके बाद इस मामले में सुब्रमण्यम स्वामी समेत कई और पक्षकारों ने याचिकाएं लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले की सुनवाई करने की बात कही थी। सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट में इसके बाद से यह मामला पेंडिंग था।

क्या है बाबरी मस्जिद?

उत्तर प्रदेश के फ़ैज़ाबाद ज़िले के अयोध्या शहर में रामकोट पहाड़ी (राम का किला) पर एक मस्जिद थी। जिसे बाबरी मस्जिद कहा जाता था। बताया जाता है कि भारत के पहले मुग़ल सम्राट बाबर के आदेश पर 1527 में इस मस्जिद का निर्माण किया गया था।पुजारियों से हिन्दू ढांचे या निर्माण को छीनने के बाद बाबर के सिपहसलार मीर बकी ने इसका नाम बाबरी मस्जिद रखा। 1940 के दशक से पहले, मस्जिद को ‘मस्जिद-ए-जन्म अस्थान’ कहा जाता था। हिन्दुओं की मान्यता है कि ये भगवान राम चन्द्र जी का जन्म स्थान है। बाबरी मस्जिद इस क्षेत्र की सबसे बड़ी मस्जिद कही जाती थी लेकिन स्थानीय मुस्लिम समुदाय द्वारा मस्जिद का उपयोग कम ही हुआ करता था।

अयोध्या विवाद भारत के हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच तनाव का एक प्रमुख मुद्दा रहा है और देश की राजनीति को एक लंबे अरसे से प्रभावित करता रहा है। भारतीय जनता पार्टी और विश्वहिंदू परिषद सहित कई हिंदू संगठनों का दावा है कि बाबरी मस्जिद दरअसल एक मंदिर को तोड़कर बनवाई गई थी और इसी दावे के चलते छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा दी गई|

ये भी पढ़ें—हो गया फैसला: अब अयोध्या में वहीं बनेगा भव्य राम मंदिर

चलता चला आ रहा है मामला

1528: बाबर ने यहां एक मस्जिद का निर्माण कराया जिसे बाबरी मस्जिद कहते हैं। हिंदू मान्यता के अनुसार इसी जगह पर भगवान राम का जन्म हुआ था।

1853: इस पर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच पहली हिंसा हुई।

1859: ब्रिटिश सरकार ने तारों की एक बाड़ खड़ी करके विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिदुओं को अलग-अलग प्रार्थनाओं की इजाजत दे दी।

1885: मामला पहली बार अदालत में पहुंचा। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की।

1949: करीब 50 हिंदुओं ने मस्जिद के केंद्रीय स्थल पर कथित तौर पर भगवान राम की मूर्ति रख दी। इसके बाद उस स्थान पर हिंदू नियमित रूप से पूजा करने लगे। मुसलमानों ने नमाज पढ़ना बंद कर दिया।

16 जनवरी 1950: गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत मांगी।

5 दिसंबर 1950: महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी मस्जिद में राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया। मस्जिद को ‘ढांचा’नाम दिया गया।

17 दिसंबर 1959: निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया।

18 दिसंबर 1961: उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया।

1984: विश्व हिंदू परिषद ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया।

1 फरवरी 1986: फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिदुओं को पूजा की इजाजत दी। ताले दोबारा खोले गए। नाराज मुस्लिमों ने विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।

1 जुलाई 1989: भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया।

9 नवंबर 1989: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक शिलान्यास की इजाजत दी।

25 सितंबर 1990: बीजेपी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली, जिसके बाद साम्प्रदायिक दंगे हुए।

अक्टूबर 1991: उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया।

6 दिसंबर 1992: हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढाह दिया। इसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए। जल्दबाजी में एक अस्थायी राम मंदिर बनाया गया।

16 दिसंबर 1992: मस्जिद की तोड़-फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन हुआ।

अप्रैल 2002: अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की।

मार्च-अगस्त 2003: इलाहबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं। मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे।

जुलाई 2009: लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी।

28 सितंबर 2010: सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया।

30 सितंबर 2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा जिसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े में जमीन बंटी।

9 मई 2011: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।

21 मार्च 2017: सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की बात कही।

19 अप्रैल 2017: सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं के खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया।

5 दिसंबर 2017: इस विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुयी

ये भी पढ़ें—अयोध्या समेत देश में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था, रामलला के दर्शन पर पाबंदी नहीं

सुलह की नाकाम कोशिशें

रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के मुद्दे का हल सुलह समझौते से करने की कोशिशें कर मर्तबा हुयी हैं लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका। ताजा तरीन कोशिश श्रीश्री रवि शंकर ने की। इसके पहले की दस कोशिशों में कई बार सरकारों की भी भागीदारी रही है। पर नतीजा ढाक के तीन पात।

• 1985

सुलह की पहली कोशिश 1985 में हुयी ‘बाबरी मस्जिद रामजन्मभूमि समस्या समाधान समिति’ बनाकरI इस कोशिश का फोकस था कि मस्जिद को उस जगह से हटाकर परिक्रमा मार्ग पर स्थापित किया जाए। इसके लिये देश भर के मुस्लिम विद्वानों की सहमति भी हासिल हो गयी थी। कई इस्लामी देशों के उलेमाओं की रजामंदी भी मिल गयी दोनों पक्षों और आम लोगों ने इसे नकार दिया।

• 1986

इस वर्ष एक कोशिश फिर स्थानीय स्तर पर हुयी ‘अयोध्या गौरव समिति’ नाम के ट्रस्ट के बैनर तले। ट्रस्ट के अध्यक्ष थे महंत नृत्य गोपाल दास। समिति को तत्कालीन सीएम वीर बहादुर सिंह का वरद हस्त था। अयोध्या के सभी बड़े साधुओं को इसका सदस्य बनाया गया। भाईचारे से समस्या का हल निकालने के लिये इस ट्रस्ट ने कोशिश की। कई प्रमुख मुस्लिम नेताओं से बातचीत के बाद विहिप के बडे नेताओं की सहमति ली गयी। तय किया गया कि विवादित मस्जिद को दीवार से घेर दिया जायेगा और राममंदिर की शुरुआत रामचबूतरे से की जायेगी। एक प्रतिनिधिमंडल तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से भी मिला। लेकिन अनजान वजहों से ये कोशिश ठन्डे बसते में दफ़न हो गयी।

ये भी पढ़ें—अयोध्या समेत देश में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था, रामलला के दर्शन पर पाबंदी नहीं

• 1990

20 अक्टूबर 1990 को हिंदू पक्ष और मु्स्लिम पक्ष के विद्वानों की बैठक हुयी। इसके बाद आठ लोगों की एक समिति बनायी गयीI इस समझौते में कुछ हल तो निकल कर नहीं आया पर इतना अवश्य हुआ कि केंद्र सरकार ने इसी साल रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद क्षेत्र का अध्यादेश जारी कर दिया। इस समिति की कोशिश थी कि वार्ता जारी रहे और कोर्ट के फैसले का इंतजार कर यथास्थिति बनायी जाए। बाद में तीस अक्टूबर और दो नवंबर 1990 की घटना ने इस वार्ता पर भी ब्रेक लगा दिये।

• एक कोशिश 01 दिसंबर 1990 को की गयी। जब विहिप और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने सीधी बातचीत की कोशिश की। इस बैठक में विहिप के विष्णु हरि डालमिया आचार्य गिरिराज किशोर, श्रीशचंद्र दीक्षित समेत कई प्रमुख नेता शामिल हुए। दोनों पक्ष फिर 14 दिसंबर 1990 को मिले। एक समिति भी बने जिसने अपनी राय सुनायी कि बाबरी मस्जिद का निर्माण किसी मंदिर को गिराकर हुआ इसका साक्ष्य नहीं है। ये निष्कर्ष दोनों पक्षों को मंजूर नहीं हुआI

• 1991

12 जनवरी 1991 को शिया कांफ्रेंस ने दिल्ली में एक सम्मेलन किया जिसमें 10 बड़े मुस्लिम नेताओं और नौ हिंदू नेताओं ने हिस्सा लिया। इस सम्मेलन के माध्यम से हल तो कुछ नहीं निकला पर केंद्र सरकार से दोनों पक्षों ने दो मुद्दों पर अपील की। पहला ये कि सरकार जल्द से जल्द इस बात का पता लगाया जाय कि बाबरी मस्जिद की जगह पर कोई मंदिर था। दूसरा ये कि मुकदमे की जल्द से जल्द सुनवाई खत्म की जाए।

ये भी पढ़ें—अयोध्या विवाद पर उद्धव का वार! फैसले का श्रेय नहीं ले सकती भाजपा

अयोध्या फैसला: BJP और RSS की नई नीति, मुस्लिम नेताओं संग बैठक

• 1993

3 जनवरी 1993 को केंद्र सरकार ने विवादित स्थल और उसके आसपास की 67 एकड़ भूमि को अधिग्रहीत करने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव ने रामालय ट्रस्ट बनाकर इस भूमि में मंदिर मस्जिद पुस्ताकालय संग्रहालय बनाने की घोषणा की। साथ ही मस्जिद ट्रस्ट भी बनाने की घोषणा की गयी। इसमें दिल्ली वक्फ बोर्ड के तत्कालीन सभापति मौलाना जमील इलयासी ने राय दी कि मुस्लिमों को मस्जिद का दावा खुद ही छोड़ देना चाहिये। इस बात से मुस्लिम समुदाय खासा नाराज हुआ और दोनो ही ट्रस्ट अस्तित्व में नहीं आ सके।

• 2002-03

आठ मार्च 2002 और 16 जून 2003 को कांची कामकोटि के शंकराचार्य के पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बीत दो बार बातचीत हुई। दोनो बार मामला कोर्ट से सुलझाने की बात पर सहमति बन पायी। शंकराचार्य ने एक अपील भी की लेकिन उसे मुस्लिम पक्ष ने अस्वीकार कर दिया। इस अपील के मुताबिक विवादित परिसर और गैरविवादित भूमि को अलग कर रामजन्मभूमि न्यास को गैरविवादित भूमि पर मंदिर बनाने की बात थी। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के वादी हाशिम अंसारी समेत आधा दर्जन से ज्यादा मुस्लिम नेताओं ने प्रधानमंत्री को ये चिट्ठी लिखी कि उन्हें ये मंजूर नहीं कि किसी समझौते के तहत उन्हें विवादित परिसर को खाली कराया जाए।

ये भी पढ़ें—यूपी: कई शहरों में रोकी गई इंटरनेट सेवाएं, कंट्रोल रूम से सैकड़ों लोग कर रहे मॉनीटरिंग

• इसके बाद 2003 में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक सम्मेलन बुलाकर जामा मस्जिद ट्रस्ट बनाने और समझौता करने की कोशिश की पर ये कामयाब नहीं हो सकी।

पुराने पक्षकार भी अब नहीं रहे

अयोध्या के मोहम्मद हाशिम अंसारी अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनका नाम दुनिया भर में मशहूर है। हाशिम अंसारी बाबरी मस्जिद विवाद के मुकदमे के सबसे पुराने पक्षकार थे। इस मामले के दूसरे पक्षकार निर्मोही अखाड़ा के राम केवल दास, दिगंबर अखाड़ा के रामचंद्र परमहंस और भगवान सिंह विशारद जैसे लोग भी अब नहीं रहे। हाशिम अंसारी दिसंबर 1949 से इस मामले से जुड़े रहे जब बाबरी मस्जिद के अंदर भगवान राम की मूर्तियां रख दी गई थीं। हाशिम को वर्ष 1954 में प्रतिबंध के बावजूद बाबरी मस्जिद में अजान देने के आरोप में फैजाबाद की अदालत ने दो साल की सजा सुनाई थी।

ये भी पढ़ें—अयोध्या पर फैसला आज ही क्यों, जानिए इसके बारे में

ये विवादित हिस्सा: अयोध्या पर सालों से इसी जमीन पर चल रहा विवाद

वर्ष 1961 में हाशिम और छह अन्य लोगों ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की तरफ से फैजाबाद दीवानी अदालत में दायर मुकदमे में बाबरी मस्जिद पर मुसलमानों का दावा किया था। 1975 में इमरजेंसी के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था और आठ महीने तक बरेली सेंट्रल जेल में रखा गया। हाशिम का परिवार कई पीढ़ियों से अयोध्या में है, वे 1921 में पैदा हुए थे। हाशिम कहते थे कि मुझे बस इज्जत कमानी थी। अयोध्या का हर शख्स चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान मेरी इज्जत करता है और यही मेरे जीवन की सबसे बड़ी कमाई रही है।

हाशिम के ही शब्दों में-

मंदिर-मस्जिद की बात करनी हो तो जाकर बड़े लोगों से करो जो इस मसले का समाधान नहीं चाहते हैं। हम बहुत छोटे लोग हैं। हम अयोध्या में रहने वाले लोग इस मसले से ऊब चुके हैं और इसका समाधान चाहते हैं लेकिन कुछ बड़े लोगों का इसमें राजनीतिक स्वार्थ है जो नहीं चाहते हैं कि मामला हल हो,और आखिर कार सुप्रीम कोर्ट ने आज एतिहासिक फैसला सुना ही दिया।

Shivakant Shukla

Shivakant Shukla

Next Story