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फिर गरमाएगी अयोध्या, शिवसेना सांसदों के साथ ठाकरे की यात्रा से बदलेगा माहौल
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: यूपी में मौसम के बढ़ते तापमान के साथ ही अयोध्या का मुद्दा फिर धीरे-धीरे गरमाने लगा है। पिछले छह महीने से ठंडी पड़ी अयोध्या की पावनभूमि पर फिर से संतों और राजनेताओं के बीच कहीं तारतम्य तो कहीं आक्रोश के सेतु टूटते-बनते दिखने लगे हैं। कई दशकों से लाचार अयोध्या एक बार फिर वही सबकुछ देखने का तैयार है। अयोध्या की भूमि और यहां के रहने वालों के लिए यह कोई नई बात नही है। शिवसेना भी इस मुद्दे को गरमाने में जुट गयी है। शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे की प्रस्तावित अयोध्या यात्रा को इसी की कड़ी माना जा रहा है।
अयोध्या में मंदिर निर्माण को लेकर 19 व 20 जून को हरिद्वार में होने वाली बैठक में साधु-संत इसके लिए अगली रणनीति पर विचार करेंगे। इस दो दिवसीय बैठक में 200-250 साधु संत इस बात पर मंथन करेंगे कि जब देश जनता ने नरेन्द्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनाया है और प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बहुमत की सरकार चल रही है तो फिर मंदिर निर्माण में आने वाली बाधाओं को दूर करने में आखिर क्या दिक्कत है। उधर विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार भी साफ कह चुके हैं कि राममंदिर को लेकर अनिश्चितकाल तक इंतजार नहीं किया जा सकता। मंदिर निर्माण को लेकर उत्साहित आलोक कुमार कह चुके हैं कि हिन्दुओं को भगवान राम के मंदिर को छोड़कर और कुछ भी स्वीकार नहीं है।
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इसके पहले 16 जून को शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे भी अपने सांसदों के साथ अयोध्या पहुंच रहे हैं जहां पर वह रामलला के दर्शन कर मंदिर निर्माण के संबंध में शिवसेना की भावनाओं से केन्द्र व राज्य सरकार को अवगत कराएंगे। शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत बार-बार कह रहे हैं कि मंदिर निर्माण न हुआ तो जनता हमें जूतों से पीटेगी क्योंकि जनता ने हमें दूसरी बार सत्ता में बैठाया है। हमें किसी भी हाल में मंदिर निर्माण चाहिए।
शंकराचार्य ने याद दिलाया वादा
हाल ही में वृंदावन आए शारदापीठ एवं ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नरेंद्र मोदी की दोबारा सरकार बनने के बाद पिछला वादा याद दिलाते हुए कह चुके हैं कि अब इस सरकार को अयोध्या में भव्य एवं दिव्य राम मंदिर की स्थापना करने का अपना वादा जरूर पूरा करना चाहिए। भाजपा बरसों से अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की बात करती आई है किंतु उसने कभी इस मुद्दे को गम्भीरता से नहीं लिया।
संघ मंदिर मुद्दा गरमाने की कोशिश में
राम मंदिर पर भले ही सर्वोच्च न्यायालय में तारीख पर तारीख पड़ती जा रही हो, पर पर्दे के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए जमीन तैयार करने का काम करता रहता है। संघ के आनुषांगिक संगठनों से कहा गया है कि 90 के दशक की तरह मंदिर मुद्दे पर जमीन तैयार करने का काम किया जाए। संघ की बराबर इस बात की कोशिश रहती है कि मंदिर पर आंदोलन सियासी खेमेबाजी में न उलझे। इसलिए उसकी रणनीति 1990 की तरह प्रत्यक्ष तौर पर मंदिर आंदोलन की कमान संतों और हिंदुओं के हाथों में रहने का संदेश बनाए रखने की रहती है। इसीलिए बैठकों में सभी को आगाह किया जाता है कि संघ से जुड़े किसी संगठन या भाजपा का नाम कहीं आगे नहीं आना चाहिेए।
राज्यसभा में भाजपा का बहुमत न होने से मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने की राह में खड़ी बाधा से भी संघ के लोग परिचित हैं। वे चाहते हैं कि यह संदेश भी बना रहे कि संघ ही नहीं बल्कि भाजपा की सरकारें भी मंदिर निर्माण के पक्ष में हैं। इससे सरकार यदि मंदिर निर्माण को लेकर कोई पहल करे तो उसके पास यह कहने का आधार रहे कि जनमत की अनदेखी कहां तक की जाए। साथ ही किसी तकनीकी दिक्कत से यदि यह काम अभी न हो पाए तो भी ऐसा माहौल रहे जिससे भाजपा की केन्द्र व प्रदेश सरकार के खिलाफ कोई माहौल न बनने पाए। संघ का यह भी प्रयास रहता है कि हिंदुओं को एकजुट कर जातीय गणित को कमजोर किया जाए जिससे हिन्दुत्व की राह में कोई बाधा न खडी होने पाए।
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मंदिर निर्माण की प्रक्रिया तेज करने पर जोर
उधर, कानपुर में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने राम मंदिर निर्माण को लेकर चल रही प्रक्रिया को तेज करने पर जोर दिया। पूर्वी यूपी के प्रशिक्षण वर्ग में उन्होंने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का समय आ गया है। इसके लिए हिंदू संगठनों की तरफ से काम भी किया जा रहा है। इसके लिए अपने-अपने क्षेत्र में धार्मिक कार्यक्रम कराए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण राजनीति का विषय नहीं है। सभी धर्मों के लोगों के विचार और समन्वय के आधार पर मंदिर निर्माण का प्रयास किया जा रहा है। इस प्रयास को अब और तेज करने की जरूरत है।
राम की प्रतिमा लगाने का मकसद
हाल ही में अयोध्या में भगवान राम की आदमकद प्रतिमा लगाए जाने के पीछे भी मकसद हिन्दू जनमानस को इस बात का अहसास कराने का था कि केन्द्र और प्रदेश में जो भी सरकार है वह अपने हिन्दुत्वादी एजेण्डे से पीछे हटने वाली नहीं है। इसलिए अयोध्या में सरदार पटेल से ऊंची भगवान राम की प्रतिमा स्थापित करने और फैजाबाद का नाम अयोध्या करने की घोषणा की जा चुकी है। इसलिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत कई मुंत्री और भाजपा नेता बार-बार यह अहसास कराते रहते हैं कि अयोध्या में श्रीराम का मंदिर था, मंदिर है और मंदिर ही रहेगा। साथ ही जल्द ही मंदिर निर्माण कराए जाने को लेकर आश्वस्त भी करते रहते हैं।
विहिप अध्यादेश लाने के पक्ष में
विश्व हिंदू परिषद की इच्छा है कि अध्यादेश लाकर मंदिर बनाया जाए। इसलिए वह हर बार अपनी सरकार पर दबाव बनाने का काम करती है। सरकार पर लोकसभा चुनाव के पहले से राम मंदिर निर्माण का दवाब है। संघ के साथ-साथ साधु-संत भी मोदी सरकार पर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए लगातार दवाब बढ़ाने का काम करते रहते है। भाजपा की मजबूरी है कि जिस मंदिर निर्माण के सहारे उसे केन्द्र और प्रदेश में सत्ता हासिल हुई उसकी जवाबदेही जनता के बीच है। यही कारण है कि दोराहे पर खड़ी भाजपा यह संदेश देने की कोशिश करती रहती है कि उसे मंदिर निर्माण में जरूर बाधाओं का सामना करना पड़ रहा हो परन्तु वह अपने हिन्दुत्व के एजेंडे पर अब भी कायम है।
धर्माचार्यों को मोदी-योगी से उम्मीदें
सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या में विवादित ढांचा के मामले में सुनवाई का मामला लगातार टलता ही रहा है। संतों का कहना है कि केंद्र में मोदी और राज्य में योगी सरकार होने के बाद भी राम मंदिर अब नहीं बनेगा तो कब बनेगा। धर्माचार्यों का विश्वास है कि मोदी और योगी के काल में ही राम मंदिर का निर्माण होगा। कोर्ट अपना काम करेगा और मान्यताएं अपना काम करेंगी।
लोकसभा चुनाव के पहले तीन दशक पहले हुए अयोध्या आंदोलन की झलक साधु-संत दिखा चुके हैं। आंदोलन का परिणाम बाबरी ढांचे का विध्वंस था तो इस बार राममंदिर के निर्माण को लेकर फिर से बन रहे माहौल से परिणाम की उम्मीद पूरा देश कर रहा है। अब इसके पीछे कोई रणनीति हो अथवा कुछ और पर इतना तो साफ है कि संतों और जनमानस के दबाव के चलते शीर्ष पर विराजमान जिम्मेदार लोगों को अब अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने को मजबूर होना पड़ेगा।