Babri Masjid Demolition History: बाबरी मस्जिद ध्वंस की वो खौफनाक सुबह, 6 दिसंबर को उड़ गई थी सबकी नींद

Babri Masjid Demolition History: इसके बाद रह गई सिर्फ राजनीति, प्राथमिकी और गिरफ्तारियां। जो समय के साथ अदालत की तारीखों में दर्ज होती रहीं और आज बाबरी ध्वंस के 32 आरोपियों के बरी होने के साथ इस अध्याय का पटाक्षेप हो गया। क्योंकि राम जन्मभूमि पर अब मंदिर निर्माण बनने का कार्य अग्रसर हो चुका है।

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Published on: 6 Dec 2022 3:58 AM GMT (Updated on: 6 Dec 2022 4:16 AM GMT)
Babri Masjid Demolition History: बाबरी मस्जिद ध्वंस की वो खौफनाक सुबह, 6 दिसंबर को उड़ गई थी सबकी नींद
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Supreme court commented on the demolition of Babri Masjid

Babri Masjid Demolition History: छह दिसंबर 1992 की सुबह। बाबरी मस्जिद विवादित ढांचा ध्वंस की सुबह। कुछ अलग थी रात भर लोग ये सोचकर जगे थे कि कल क्या होगा। सबके मन में एक ही हौल था छह दिसंबर को क्या होगा। इसलिए सोने की तो बात ही न पूछें। सब जगे ही थे कि सुबह हो गई।

लोग फोन के जरिये लगातार अयोध्या का अपडेट ले रहे थे। उस समय मोबाइल फोन नहीं था इसलिए लैंड लाइन फोन ही एकमात्र अपडेट का सहारा था। अयोध्या पर पूरे विश्व की निगाहें थीं जहां पूरा भारत सिमट आया था।

जिसका जय घोष लखनऊ से लेकर दिल्ली तक सुनाई दे रहा था। कल्याण को केंद्र सरकार की ओर से गोली चलाने के स्पष्ट निर्देश थे बावजूद इसके कल्याण सिंह ने कारसेवकों पर गोली चलवाने से साफ इनकार कर दिया था।

और शुरू हो गई कारसेवा

शुरुआत में कारसेवक रामजन्मभूमि पर बने बाबरी ढांचे से काफी दूरी पर थे। कारसेवकों का हुजूम रह रहकर हुंकार रहा था। नेताओं का आश्वासन था कि प्रतीकात्मक कारसेवा होगी।

लेकिन कारसेवक कुछ और ही ठाने से बैठे थे। अभी नहीं तो कभी नहीं, एक धक्का और दो बाबरी मस्जिद विवादित ढाँचा तोड़ दो। रामलला हम आएं हैं मंदिर बनाके जाएंगे। कारसेवकों की लहर समुद्र के ज्वार भाटे का अहसास करा रही थी।

ram mandir karsewa

लखनऊ में अखबारों के दफ्तरों में हर दो घंटे में बुलेटिन छप कर मार्केट में आ रहे थे। दैनिक जागरण में मेरे साथी उपेंद्र पांडे की ड्यूटी डेस्क पर थी लेकिन राम जन्मभूमि कारसेवा देखने के लिए वह भी अयोध्या भाग गए।

adwani joshi

देश भर के सारे पत्रकार अयोध्या में जमा थे। अयोध्या के गली कूचे मकानों की छतें तक कारसेवकों से पटी पड़ी थीं। सब को देखना था आज क्या होगा।

ढह गया पहला गुम्बद

निर्धारित समय पर कारसेवा शुरू हुई। अचानक एक गुबार सा उठा। कारसेवकों का सैलाब सारे बंधन तोड़ चुका था। दस बजकर कुछ मिनट पर फोन की घंटी बजी पहला गुम्बद धराशायी हो गया है। कुछ ही मिनटों में राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद के बंधन से आजाद हो गई थी।

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नेताओं का समूह कहीं पीछे छूट चुका था। सिर्फ कारसेवकों का सैलाब एक एक ईंट उठाकर ले जा रहा था। शाम तक सिर्फ मलबे का ढेर था और उस पर टेंट लगाकर रामलला की पूजा अर्चना शुरू हो चुकी थी।

विश्व की इस सबसे बड़ी घटना के बाद कल्याण सिंह की सरकार जा चुकी थी। नरसिंह राव बयान दे चुके थे। हर गया था एक गुबार जो धीरे धीरे ठंडा हो रहा था।

ashok singhal

जनता के बीच भय आतंक और कलंक का दाग मिटने की खुशी जैसी मिली जुली प्रतिक्रियाएं थीं।

इसके बाद रह गई सिर्फ राजनीति, प्राथमिकी और गिरफ्तारियां। जो समय के साथ अदालत की तारीखों में दर्ज होती रहीं और आज बाबरी ध्वंस के 32 आरोपियों के बरी होने के साथ इस अध्याय का पटाक्षेप हो गया। क्योंकि राम जन्मभूमि पर अब मंदिर निर्माण बनने का कार्य अग्रसर हो चुका है।

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लेकिन इसी के साथ मथुरा काशी बाकी है की हुंकार एक नए अध्याय की शुरुआत का संकेत दे रही है जिसका फैसला भविष्य के गर्भ में है।

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