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लागत कम फायदा ज्यादा, ये है रामसजीवन के मोबाईल स्प्रिंकलर का वादा
खेत में डीजल पंपसेट से सिंचाई के दौरान बोरिंग से तेज रफ्तार से निकलने वाले पानी को देखकर रामसजीवन के दिमाग में कुछ नया करने का किड़ा रेंगने लगा। उन्होंने बारिश की बूंदों की तरह फसलों की सिंचाई करने का यंत्र तैयार करने के लिए नए आविष्कार का सृजन करने की ठानी।
बांदा : खेत में डीजल पंपसेट से सिंचाई के दौरान बोरिंग से तेज रफ्तार से निकलने वाले पानी को देखकर रामसजीवन के दिमाग में कुछ नया करने का किड़ा रेंगने लगा। उन्होंने बारिश की बूंदों की तरह फसलों की सिंचाई करने का यंत्र तैयार करने के लिए नए आविष्कार का सृजन करने की ठानी। एक साधारण वेल्डर का काम करने वाले रामसजीवन ने गरीबी और मुफलिसी के थपेड़े भी झेले हैं। लेकिन जरूरतों नें रामसजीवन को एक मकसद दिया। काफी प्रयास करने के बाद आखिरकार उनको कामयाबी हासिल हो ही गई। खेतों की सिंचाई के लिए उन्होंने बहुत ही कम लागत से तैयार होने वाला मोबाइल स्प्रिंकलर बनाया।
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कबाड़ से किया जुगाड़
हुनर जब निखरता है तो सफलता कदम चूमती है, और जब काम सामाजिक सरोकार से जुड़ा हो तो समाज और सरकार दोनों की ही सराहना मिलती है। रामसजीवन की इस खोज को प्रशासन ने हाथों हाथ लिया। खेतों की सिंचाई के लिए उन्होंने जो मोबाइल स्प्रिंकलर बनाया उसमें अधिकतर सामान कबाड़ से जुटाया है।
हाल ही में बुंदेलखंड के बांदा में हुए इनोवेटर्स समिट में जब इस मॉडल को प्रदर्शित किया गया तो यह खूब सराहा गया। बांदा प्रशासन ने न सिर्फ रामसजीवन को सम्मानित किया, बल्कि फसली खेतो और घास के मैदानों की प्यास बुझाने के लिए उद्यान विभाग के माध्यम से 100 मोबाइल स्प्रिंकलर लगाने को कहा। इस समय रामसजीवन बुंदेलखंड के लिए स्प्रिंकलर तैयार करने में जुटे हुए हैं।
बभनजोत के पिपरा अदाई गांव के निवासी रामसजीवन बताया कि 20 वर्ष पहले पिता का साया सिर से उठ गया। पिता के बाद सबसे बड़े होने के नाते, परिवार की जिम्मेदारियां उनके कांधों पर आईं। आजीविका चलाने के लिए गौरा चौकी कस्बे में वेल्डिंग की दुकान पर नौकरी कर ली। दुकान पर रखे अनुपयोगी सामानों का प्रयोग कर सिंचाई यंत्र तैयार करने में जुट गए। अप्रैल 2013 में मोबाइल स्प्रिंकलर नामक यंत्र तैयार कर लिया। इसे तैयार करने में करीब आठ हजार रुपये का खर्च आया।
ईंधन की बचत, भूगर्भ जल दोहन कम करने के साथ ही जल संरक्षण में मोबाइल स्प्रिंकलर मददगार है। वर्षा की तरह पानी ऊपर से फसलों पर गिरता है, इससे पानी की बूंदें जड़ों तक आसानी से पहुंच जाती हैं। कम पानी में अधिक क्षेत्रफल में लगी फसलों की सिंचाई की जा सकती है।
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इच्छा थी कि अपने प्रदेश का नाम हो, इसलिए ठुकराया प्रस्ताव
सबसे पहले 30 अप्रैल 2013 को विज्ञान प्रौद्योगिकी परिषद लखनऊ में आयोजित नव प्रवर्तन प्रदर्शनी में रामसजीवन की प्रतिभा को सराहना के साथ—साथ प्रस्ताव भी मिले। 10 मई 2013 को डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में सफल परीक्षण के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सराहना की थी। उसके बाद जून 2014 में मध्य प्रदेश के भोपाल में नव प्रदर्शनी लगी जिसमें, वहां की सरकार ने रामसजीवन से यह कहा कि यहां आकर काम कीजिए तो सहायता मिलेगी, लेकिन उन्होंने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया था।
उनका कहना है, मेरी मंशा है कि मॉडल का देश के प्रत्येक किसान को फायदा मिले, लेकिन मॉडल उत्तर प्रदेश के नाम से ही जाना जाए। इसलिए मध्य प्रदेश नहीं गया।
बांदा के डीएम ने नव प्रवर्तन के लिए रामसजीवन को बधाई देने के साथ ही उद्यान विभाग के माध्यम से बांदा में 100 मोबाइल स्प्रिंलकर लगाने के लिए कहा है। जल्द ही परिषद के माध्यम से कार्यवाही बढ़ाई जाएगी।