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5 साल संविदा पर कामः सालों से काम कर रहे लोग हुए बेचैन, क्या होगा भविष्य

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार का इधर जबसे एक आदेश चर्चा में आया है कि सरकारी नौकरी पाने से पूर्व 5 साल तक अनिवार्य संविदा की नौकरी करनी होगी।

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Published on: 14 Sep 2020 8:46 AM GMT
5 साल संविदा पर कामः सालों से काम कर रहे लोग हुए बेचैन, क्या होगा भविष्य
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बाराबंकी: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार एक ऐसा नियम लागू करने वाली है जिसमें युवाओं को सरकारी नौकरी करने से पूर्व 5 साल तक संविदा पर रहकर नौकरी करनी होगी। युवाओं को इससे सरकारी नौकरी पाने की आस जरूर बढ़ी होगी साथ ही उनकी आशाओं को और बल मिला होगा जो पिछले 20 - 25 सालों से संविदा की ही नौकरी में जीवन खपा रहे हैं।

आज बाराबंकी में ऐसे उन लोगों से बात की गयी जो पिछले काफी समय से ऐसी ही नौकरी कर रहे हैं। इसीलिए हम कह रहे हैं कि अगर 5 साल संविदा पर काम करने वालों को सरकारी नौकरी तो 25 सालों से काम कर रहे लोगों सरकारी नौकरी क्यों नहीं।

20-25 साल से संविदा पर नौकरी कर रहे लोग सरकारी नौकरी के अधिकारी !

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार का इधर जबसे एक आदेश चर्चा में आया है कि सरकारी नौकरी पाने से पूर्व 5 साल तक अनिवार्य संविदा की नौकरी करनी होगी। यह आदेश सोशल मीडिया पर खूब चटखारे लेकर पढ़ा भी जा रहा है। इसको लोग अपने-अपने तरीके से ले भी रहे हैं।

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Mali 20 सालों से संविदा पर काम कर रहे माली (फाइल फोटो)

जहां प्रदेश के युवाओं में सरकारी नौकरी पाने की महत्वाकांक्षा ने और बल दिया है। वहीं उन लोगों को भी खुशी दे रहा है जो जीवन का एक बड़ा हिस्सा संविदाकर्मी के रूप में ही दे चुके हैं। सवाल भी सही है कि अगर पांच सालों तक संविदा पर काम करना सरकारी नौकरी का मानक है तो वह तो इस मानक को कई बार पूरा कर चुके हैं।

कई सालों से संविदा पर नौकरी कर रहे माली

Mali 20 सालों से संविदा पर काम कर रहे माली (फाइल फोटो)

हम बात कर रहे हैं उद्यान विभाग में संविदा पर काम करने वाले मालियों की। यह माली पिछले 20 से 25 सालों से जिले के उद्यान और पार्कों को चमकाने , संवारने का काम करते आ रहे हैं। यह लोग बताते हैं कि उनकी मजदूरी का हिसाब लगाया जाए तो 200 रुपया प्रतिदिन ही आता है। वेतन आने की जहाँ तक बात है तो तीसरे , चौथे महीने ही आ पाता है।

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जनवरी से अब तक सिर्फ तीन माह का वेतन ही उन्हें मिल पाया है। उनसे पहले से भी काम करने वाले लोग अभी दैनिक वेतन या संविदा पर ही काम कर रहे है तो उनका क्या होगा। उन्हीं के सामने कुछ लोगों को स्थायी नौकरी दी भी गयी है। लेकिन उन्हें नहीं मिली है। इसके लिए वह अदालत का दरवाजा भी खटखटा चुके हैं। अब तो केवल उम्मीद ही बची है उसी के सहारे जीवन चल रहा है।

रिपोर्ट- सरफराज़ वारसी

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