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मिटा 28 साल का दाग: अयोध्या ने बदल दिया इतिहास, भाजपा को मिली बुलंदी

सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने 28 साल पुराने बाबरी विध्वंस केस में सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि बाबरी मस्जिद को किसी साजिश के तहत नहीं गिराया गया था बल्कि यह घटना अचानक हुई थी।

Newstrack
Published on: 30 Sept 2020 4:45 PM IST
मिटा 28 साल का दाग: अयोध्या ने बदल दिया इतिहास, भाजपा को मिली बुलंदी
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मिटा 28 साल का दाग: अयोध्या ने बदल दिया इतिहास, भाजपा को मिली बुलंदी (social media)

नई दिल्ली: सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने 28 साल पुराने बाबरी विध्वंस केस में सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि बाबरी मस्जिद को किसी साजिश के तहत नहीं गिराया गया था बल्कि यह घटना अचानक हुई थी। अदालत की ओर से बरी होने वाले 32 आरोपियों में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, डॉ मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती के साथ ही महंत नृत्य गोपाल दास, विनय कटियार, चंपत राय और साक्षी महाराज आदि शामिल है।

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अयोध्या ऐसा मुद्दा है जिसने पिछले साढ़े तीन दशक के दौरान देश की सियासत को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। सही बात तो यह है कि इस अकेले मुद्दे ने देश की राजनीति और राजनीतिक दलों की ताकत में बड़ा अंतर पैदा कर दिया। कोर्ट के फैसले के बाद अब भाजपा, संघ और विहिप पर से बाबरी विध्वंस की साजिश का दाग भी मिट गया है।

भाजपा को मिली संजीवनी बूटी

इस मुद्दे ने देश की सियासत को किस हद तक प्रभावित किया है, इसे इसी से समझा जा सकता है कि भाजपा शून्य से शिखर पर पहुंच गई है जबकि उसकी विरोधी पार्टियों कांग्रेस और कम्युनिस्ट की ताकत लगातार कमजोर होती जा रही है। भाजपा को अयोध्या के मुद्दे ने ऐसी संजीवनी बूटी दी कि वह देश की सबसे बड़ी सियासी ताकत बन चुकी है। अटल और आडवाणी के दौर में यह मुद्दा भाजपा के लिए अपनी ताकत बढ़ाने का बड़ा सहारा बना और भाजपा ने इसे भुनाने में कोई कोताही नहीं की।

1984 में दो सीटों पर सिमट गई थी भाजपा

राम मंदिर का मुद्दा गरम होने से पहले 1984 का आम चुनाव कई मायने में महत्वपूर्ण था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पैदा हुई सहानुभूति लहर का फायदा उठाते हुए कांग्रेस ने अपने विरोधी दलों को जमीन सुंघा दी थी। राजीव गांधी विशाल बहुमत के साथ देश की सत्ता पर काबिज हो गए थे।

भाजपा की हालत तो इतनी खराब हो गई थी कि लोकसभा में उसकी ताकत दो सदस्यों पर सिमट गई थी। ऐसे माहौल में विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में राम मंदिर का ताना-बाना बुनना शुरू किया और दिल्ली में इसके लिए रूपरेखा तैयार की गई।

भाजपा के एजेंडे में अयोध्या आंदोलन

1989 में देश की सियासत में फिर नया मोड़ आया और भाजपा ने अपने पालमपुर अधिवेशन में अयोध्या आंदोलन को अपने एजेंडे में शामिल कर इसे नई धार देने की सियासी जमीन तैयार कर दी।

विश्व हिंदू परिषद ने अशोक सिंघल की अगुवाई में अयोध्या मामले को गरमाने के लिए देश भर में अभियान शुरू कर दिया। माहौल गरमाता देखकर तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार ने 1989 में अयोध्या में शिलान्यास करने की अनुमति दे दी।

मंडल का जवाब कमंडल से दिया

1989 में राजीव गांधी के सत्ता से बेदखल होने के साथ ही देश का सियासी माहौल भी पूरी तरह बदल गया। बोफोर्स के मुद्दे पर वीपी सिंह ने कांग्रेस से बगावत कर दी थी। उन्हें भ्रष्टाचार के मुद्दे पर काफी जनसमर्थन हासिल हुआ और वे भाजपा और वामपंथी दलों के समर्थन से देश के प्रधानमंत्री बन गए। लेकिन कांग्रेस के खिलाफ किया गया यह प्रयोग लंबे समय तक नहीं चल सका।

वीपी सिंह ने जब मंडल मुद्दे का कार्ड चला तो भाजपा ने उसका जवाब देने के लिए कमंडल मुद्दे को गरमा दिया। भाजपा की रणनीति ने काफी असर दिखाया और राम मंदिर का मुद्दा घर-घर चर्चा का विषय बन गया।

Babri-verdict Babri-verdict (social media)

आडवाणी की रथयात्रा से गरमाई सियासत

1990 में तो हालत यह हो गई कि देश का सियासी माहौल पूरी तरह राम मय हो गया और भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथयात्रा पर निकल पड़े। हालांकि बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव उनकी इस यात्रा की राह में दीवार बनकर खड़े हो गए।

आडवाणी को बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया मगर भाजपा इस रथयात्रा के जरिए मंदिर मुद्दे को देशभर में गरमाने में कामयाब रही। 1992 दिल्ली में प्रधानमंत्री के रूप में पी वी नरसिंह राव थे तो उत्तर प्रदेश की सत्ता कल्याण सिंह के हाथ में थी।

बाबरी विध्वंस की बड़ी घटना

इसी साल 6 दिसंबर को ऐसी घटना हुई जिसमें देश की सियासत में आमूलचूल बदलाव ला दिया। कारसेवकों की अनियंत्रित भीड़ ने अयोध्या में विवादित ढांचे को ढहा दिया। यह मामला देश ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी चर्चा का विषय बन गया। केंद्र सरकार की ओर से बड़ा कदम उठाते हुए उत्तर प्रदेश की कल्याण सरकार को बर्खास्त कर दिया गया।

कारसेवकों पर फायरिंग से कल्याण का इनकार

उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने कारसेवकों के उग्र तेवर के बावजूद अयोध्या में गोली चलाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। उन्होंने इस बाबत फैजाबाद जिला प्रशासन के अनुरोध को ठुकरा दिया था। बाद में कल्याण सिंह ने कहा भी था कि मैं राम भक्त हूं और मैं अपने हाथ राम भक्तों के खून से नहीं रंग सकता था। उनका यह भी कहना था कि गुलामी की निशानी, जनता को नहीं भायी। मैं कैसे कह सकता हूं कि कारसेवकों ने गलत कदम उठाया। इसका फैसला तो इतिहास करेगा।

विपक्षी हुए कमजोर,भाजपा हुई मजबूत

इस मुद्दे के गरमाने के साथ ही भाजपा की ताकत भी लगातार बढ़ती रही और अटल बिहारी बाजपेयी की अगुवाई में केंद्र में राजग की सरकार बन गई। बाजपेयी सरकार के कार्यकाल में तो यह मामला ज्यादा तूल नहीं पकड़ सका मगर मोदी सरकार के आने के बाद सुप्रीम कोर्ट में तेजी से सुनवाई हुई और आखिरकार फैसला रामलला विराजमान के हक में गया।

इस पूरे प्रकरण के दौरान भाजपा अपनी सियासी जमीन को और मजबूत करने में कामयाब हुई जबकि विपक्ष की राजनीतिक धार लगातार कुंद होती चली गई।

देश के जनमानस में राम की गहरी पैठ

भारतीय जनमानस राम की ताकत का एहसास अब कांग्रेस को भी होने लगा है। यही कारण है कि अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन के मौके पर कांग्रेस के नेता भी राममय में होते दिखे। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने राम की महत्ता बताते हुए राम मंदिर के पक्ष में बयान जारी किया तो मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ हनुमान चालीसा पढ़ने को मजबूर हो गए। अयोध्या में भूमि पूजन के मौके पर कोरोना संकट काल में भी पूरे देश में उल्लास का माहौल दिखना इस बात का पक्का सबूत है कि भारतीय जनमानस में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की कितनी गहरी पैठ है। अब हर किसी को ध्यान में भव्य राम मंदिर के निर्माण का इंतजार है।

बाबरी विध्वंस की साजिश का दाग भी मिटा

अब बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सीबीआई की विशेष अदालत का भी फैसला आ गया है। अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि बाबरी विध्वंस की घटना पूर्व नियोजित नहीं थी बल्कि अचानक हुई थी। कोर्ट का यह भी कहना है कि आरोपियों के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले और आरोपियों ने उन्मादी भीड़ को रोकने की कोशिश की थी। कोर्ट के मुताबिक सिर्फ तस्वीरों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

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अदालत के मुताबिक सच्चाई तो यह है कि इस मामले में जिन्हें आरोपी बनाया गया उन्होंने बाबरी ढांचे को बचाने की कोशिश की थी। विशेष सीबीआई जज सुरेंद्र कुमार यादव ने कहा कि बाबरी विध्वंस की इस घटना में साजिश के साक्ष्य नहीं मिले हैं। कोर्ट के फैसले के बाद भाजपा, संघ, विहिप और साधु-संतों पर बाबरी विध्वंस का लगा दाग भी अब मिट गया है।

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