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विधान परिषद में BJP-SP के प्रत्याशियों का निर्विरोध चयन तय, तेरहवां नामांकन खारिज

सूत्रों के मुताबिक़ भाजपा हमेशा अपने विधायकों की संख्या से अधिक उम्मीदवार राज्यसभा और विधान परिषद के चुनावों में उतारती रही है। उसके कुशल रणनीति के चलते उसके सभी उम्मीदवार जीतते भी रहे हैं।

Roshni Khan
Published on: 19 Jan 2021 9:13 AM IST
विधान परिषद में BJP-SP के प्रत्याशियों का निर्विरोध चयन तय, तेरहवां नामांकन खारिज
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अखिलेश तिवारी

लखनऊ: विधान परिषद के चुनाव में भाजपा को अपने चौसर पर जीत हार का खेल खेलने के लिए सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश ने मजबूर कर दिया। तभी तो ग्यारह सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार कर निर्विरोध चुनाव के मार्फ़त एक और सीट जीत कर एक नया संदेश देने की भाजपाई रणनीति को पलीता लग गया। भाजपा को अपने रणनीति में व्यापक रद्दोबदल करने पड़े। इसके मद्देनज़र भाजपा उम्मीदवारों का नामांकन शनिवार की जगह सोमवार को हुआ। ग्यारह उम्मीदवार उतारने की अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए दस ही उम्मीदवार उतारें। मायावती को भी अखिलेश यादव की चतुर चाल से नुक़सान हुआ। नामांकन का पर्चा ख़रीदने के बाद भी बसपा की ओर से नामांकन किसी ने नहीं किया।

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वह दोनों सीट जितना भी चाहते हैं

सूत्रों के मुताबिक़ भाजपा हमेशा अपने विधायकों की संख्या से अधिक उम्मीदवार राज्यसभा और विधान परिषद के चुनावों में उतारती रही है। उसके कुशल रणनीति के चलते उसके सभी उम्मीदवार जीतते भी रहे हैं। पिछले राज्य सभा के चुनाव में सपा समर्थित उम्मीदवार का पर्चा ख़ारिज होने के चलते बिना चुनाव के सभी भाजपाई उम्मीदवार जीत गये। हद तो यह हुई कि एक राज्य सभा उम्मीदवार जिताने की हैसियत भर के विधायक न रखने वाली बसपा का भी एक सदस्य राज्य सभा में पहुँचने में कामयाब हो गया। लेकिन इस बार विधान परिषद के चुनाव मे अखिलेश यादव में अपने दो बड़े नेताओं को मैदान में उतार कर यह संदेहास्पद दे दिया कि वह गंभीर हैं। वह दोनों सीट जितना भी चाहते हैं।

मायावती के छह विधायक पहले से उनके पास हैं

जिसके लिए उन्होंने दिल्ली सीमा से सटे एक राज्य के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री के मार्फ़त सोनिया गांधी से जहां कांग्रेस का समर्थन हासिल कर लिया था। वहीं ओम प्रकाश राजभर को भी पटा लिया था। मायावती के छह विधायक पहले से उनके पास हैं। इस तरह उन्होंने अपने दूसरे उम्मीदवार को जिताने के लिए कील काँटे दुरुस्त कर लिया था। कहा जाता है कि भाजपा को अखिलेश की रणनीति का अंदाज चल गया तभी तो उसने ग्यारह की जगह दस उम्मीदवार उतार कर किसी तरह चुनाव न हो अपनी इस मंशा को फलीभूत करने में जुट गयी।

निर्विरोध चुनाव होना सुनिश्चित हो गया है

विधान परिषद की 12 सीटों के लिए निर्विरोध चुनाव होना सुनिश्चित हो गया है भारतीय जनता पार्टी के 10 और समाजवादी पार्टी के 2 सदस्य विधान परिषद आसानी से पहुंच जाएंगे। तेरहवें प्रत्याशी महेश चंद्र शर्मा का नामांकन खारिज होना तय है क्योंकि उन्होंने अपने नामांकन पत्र में किसी भी प्रस्तावक का उल्लेख नहीं किया है।

letter letter (PC: social media)

भाजपा की आंतरिक कलह की पटकथा में लिखा जा चुका है

विधान परिषद की 12 सीटों पर हो रहे चुनाव में आखिरकार वही होने जा रहा है जो भाजपा की आंतरिक कलह की पटकथा में लिखा जा चुका है। विधान परिषद चुनाव में भारतीय जनता पार्टी किसी भी हालत में मतदान की नौबत नहीं आने देना चाहती है। यही वजह है कि बहुजन समाज पार्टी ने नामांकन के लिए पहले 2 पर्चे खरीदे थे लेकिन इन टाइम पर उसकी ओर से कोई भी दावेदार सामने नहीं आया। आखिरी वक्त में महेश चंद्र शर्मा ने तेरहवें उम्मीदवार के तौर पर पर्चा दाखिल किया है लेकिन उनका पर्चा खारिज होना तय माना जा रहा है।

महेश चंद शर्मा वैसे भी कभी गंभीर उम्मीदवार नहीं रहे हैं

महेश चंद शर्मा वैसे भी कभी गंभीर उम्मीदवार नहीं रहे हैं ।उन्होंने चुनाव प्रक्रिया में सभी नागरिकों के हिस्सा लेने के अधिकार के तहत बार-बार दावेदारी पेश की है वह अटल बिहारी बाजपेई से लेकर विभिन्न मौकों पर इसी तरह से नामांकन करते रहे हैं। सोमवार को भी उन्होंने जो नामांकन पत्र दाखिल किया है उसमें किसी भी प्रस्तावक का कोई जिक्र नहीं है । नामांकन के नियमों के अनुसार प्रस्तावक होना आवश्यक है और निर्दलीय की स्थिति में 10 मतदाताओं का प्रस्तावक होना जरूरी है । विधान परिषद के चुनाव में क्योंकि उत्तर प्रदेश के सभी विधायक ही मतदाता होते हैं ऐसे में उन्हें विधानसभा के 10 सदस्यों का समर्थन जुटाना था जो कि उनके लिए संभव नहीं था इसलिए उन्होंने प्रस्तावक वाले कॉलम में लिखा है कि कोर्ट के आदेश के अनुसार प्रस्तावक का उल्लेख किया जाना आवश्यक नहीं है।

प्रस्तावक के अभाव में उनका पर्चा खारिज होना तय है

संविधान के जानकारों के अनुसार प्रस्तावक के अभाव में उनका पर्चा खारिज होना तय है। पिछले साल दिसंबर में राज्य सभा सदस्यों के चुनाव में समाजवादी पार्टी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार प्रकाश बजाज का पर्चा इसलिए खारिज किया गया था कि उनके 10 प्रस्तावकों में एक प्रस्तावक का नाम मतदाता सूची में दर्ज नाम के अनुरूप नहीं था। विधानसभा सचिवालय से तब यह बताया गया था कि निर्दलीय उम्मीदवार प्रकाश बजाज के प्रस्तावक का नाम गलत होने के आधार पर उनका पर्चा खारिज किया गया है।

योगी सरकार से नाराज हैं भाजपा विधायक

विधान परिषद की केवल 10 सीटों पर ही भाजपा की ओर से प्रत्याशी उतारे जाने की मजबूरी की वजह अपने ही विधायकों के बगावती तेवर हैं । पार्टी के रणनीतिकार इस बात से भलीभांति वाकिफ हैं कि योगी सरकार के कामकाज से भाजपा के असंतुष्ट विधायकों की कतार लंबी होती जा रही है। भाजपा विधायकों की ओर से कई बार इस बात की शिकायत की गई है कि जिलों में अधिकारी उनकी कोई बात नहीं सुनते हैं। अधिकारी खुलेआम भ्रष्टाचार कर रहे हैं लेकिन शासन में बैठे लोग विधायकों को भ्रष्टाचारी बता कर जनहित के कामों की भी अनदेखी कर रहे हैं।

विधायकों को अपेक्षित सम्मान भी नहीं मिल रहा है

विधायकों को अपेक्षित सम्मान भी नहीं मिल रहा है पिछले दिनों एक भाजपा विधायक का वीडियो वायरल कराया गया जिसमें वह विकास खंड अधिकारी पर इस वजह से नाराज हो रहे हैं कि विकास कार्यों के शिलान्यास पत्थर में विधायक का नाम तक दर्ज नहीं किया गया है। विधायकों का कहना है कि जब उनके क्षेत्र में होने वाले सरकारी कामकाज का श्रेय उन्हें नहीं मिलेगा तो वह मतदाताओं को क्या मुंह दिखाएंगे।

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इस घटना के बाद भी सरकार की ओर से संबंधित अधिकारी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई । उल्टे विधायक को ही संयमित व्यवहार की शिक्षा दी गई है। ऐसे अनेक मामले हैं जिनकी वजह से विधायकों की नाराजगी योगी सरकार से बढ़ रही है समाजवादी पार्टी भी भाजपा विधायकों की इस नाराजगी को समझ रही है । चुनाव होने की स्थिति में भाजपा को अपने विधायकों की नाराजगी का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है । यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी ने विधान परिषद की केवल 10 सीटों पर ही अपने प्रत्याशी उतारे हैं । भाजपा खुद नहीं चाहती है कि चुनाव की नौबत आए और समाजवादी पार्टी को उसके विधायकों के असंतोष को हवा देने का मौका मिले।

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