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बूढ़े हो चुके पुलों के दम तोड़ने का इंतजार, हो सकता है बड़ा हादसा

raghvendra
Published on: 27 Dec 2019 11:27 AM IST
बूढ़े हो चुके पुलों के दम तोड़ने का इंतजार, हो सकता है बड़ा हादसा
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सुशील कुमार

मेरठ: उत्तराखंड के पुरकाजी से मुरादनगर तक अंग्रेजों ने सिंचाई के लिए 1842 से 1854 के बीच गंग नहर का निर्माण कराया था। इन पर एक दर्जन से अधिक पुलों का निर्माण कराया गया। अब इन पुलों की स्थिति जर्जर हो गई है। बावजूद इसके, इन पुलों के ऊपर से कार,बस समेत बड़े हैवी ट्रक लगातार आ-जा रहे हैं। गंगनहर के निर्माण के साथ लगभग 170 वर्ष पहले निर्मित गंगनहर के पुलों की बेहाली किसी भी समय बड़े हादसे का सबब बन सकती है। लेकिन शायद हुक्मरानों के साथ ही छोटे से छोटे मुद्दों को लेकर भी सडक़ों पर उतरने वाले राजनैतिक दलों के नेताओं को भी किसी बड़े हादसे का इंतजार है। यही वजह है कि क्षेत्र की बड़ी एवं गंभीर समस्या होने के बावजूद गंगनहर के पुलों की बेहाली शासन या राजनैतिक दलों के मुद्दों की फेहरिस्त में शामिल नहीं हो सकी है।

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मेरठ जनपद में नेशनल हाईवे मेरठ-करनाल मार्ग पर बने १६० साल पुराने नानू पुल की हालत खस्ता है। पुल की मियाद पूरी हो चुकी है, लेकिन जर्जर हालत में पहुंच चुके इस पुल से अभी भी भारी व छोटे वाहनों का धड़ल्ले से आवागमन हो रहा है। गंग नहर पुल से गुजरना किसी खतरे से कम नहीं, पर बावजूद इसके लोग जान हथेली पर लेकर इस पुल से सफर तय कर रहे हैं तो इसलिए क्योंकि संबंधित विभागीय अफसरों व प्रशासन द्वारा विकल्प मार्ग की कोई व्यवस्था अभी तक नहीं की गई है। मेरठ - करनाल हाईवे का यह अति महत्वपूर्ण पुल है। इसी पुल से वो भी वाहन गुजरते हैं जो मेरठ - देहरादून के एनएच 58 पर बने टोल टैक्स की बचत करते हैं। इस पुल से रोजाना कई गांवों के किसान ट्रैक्टर ट्राली व बुग्गी आदि लेकर निकलते हैं। हालांकि जब मेरठ - करनाल मार्ग बना उस समय पुल के निर्माण की भी चर्चा रही, लेकिन बाद में मामला खटाई में चला गया। गंग नहर पर बना नानू पुल कभी भी भरभरा कर गिर सकता है। इस आंशका से संबधित विभागीय अफसर और स्थानीय प्रशासन अच्छी तरह वाकिफ भी दिखते हैं। यही वजह है कि सिंचाई विभाग ने अपनी बला टालने के लिए बोर्ड लगा दिया है कि ‘इस पुल पर वाहन प्रतिबंधित है।’

सिंचाई विभाग ने भेजी थी रिपोर्ट

सिंचाई विभाग ने 12 जुलाई को नानू पुल पर चेतावनी का बोर्ड लगाने के साथ ही वाहन प्रतिबंधित करने संबंधी एक रिपोर्ट डीएम, एनएचएआई और पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर आदि को भेजी गई थी। इस रिपोर्ट के अनुसार 1850 में इस पुल को हल्के वाहनों के उपयोग के लिए ही बनाया गया था। अब इस पुल के यातायात को जिला व पुलिस प्रशासन के सहयोग से बंद कराना आवश्यक है।

आवागमन सुचारु रखने के लिए पुल के बराबर में एनएचएआई या पीडब्ल्यूडी की ओर से अस्थाई तौर पर लोहे का पुल बनाया जाए। सूत्रों के अनुसार अक्टूबर 2018 में भी पीडब्ल्यूडी के एसई अशोक कुमार अग्रवाल ने निरीक्षण कर एक रिपोर्ट प्रशासन को भेजी थी जिसमें बताया गया था कि पुल के ज्वाइंट खुले हुए हैं, सीलिंग की दशा संतोषजनक नहीं है। इस पुल की अवधि खत्म हो चुकी है।

कई और पुल भी जर्जर

वैसे, सिर्फ नानू पुल की ही ऐसी हालत नहीं है,बल्कि आसपास के कई अन्य पुलों की भी यही कहानी है। मसलन, मेरठ के ही जानी क्षेत्र का टीकरी और सिवाल गंग नहर पुल अंग्रेजों के जमाने का है। कई दशक की मियाद पूरी हो गई है और दोनों पुल जर्जर हालत में पहुंच गए हैं। इसी तरह अटेरना गंगनहर पुल की मियाद भी पूरी हो चुकी है। 1853 में इस पुल का निर्माण हुआ था। इसका निचला हिस्सा पूरी तरह जर्जर हो चुका है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस पुल की मरम्मत हुए भी कई साल बीत चुके हैं। इसी तरह सरधना, भलसौना और सलावा पुल भी जर्जर अवस्था में हैं। स्थानीय लोग कई बार अफसरों को पत्र लिखकर पुल की मरम्मत की मांग कर चुके हैं। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई है।

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भोपा क्षेत्र में गंगनहर पर पांच पुल हैं, जो बेहद जर्जर हो चुके हैं। इनमें जौली, बेलड़ा, भोपा, निरगाजनी व नंगला बुजुर्ग के पुल शामिल हैं। इनमें में से भोपा पुल की हालत कुछ ठीक है, अन्य चार पुलों को जर्जर घोषित किया जा चुका है। इन पर वाहनों का आवागमन प्रतिबंधित किया जा चुका है। लेकिन ओवरलोड वाहनों की आवाजाही लगातार जारी है।

टीम ने किया था निरीक्षण

सिंचाई विभाग, ब्रिज कारपोरेशन व लोक निर्माण विभाग के अफसरों की एक टीम ने गंगनहर के सभी जर्जर पुलों का दस जुलाई 2019 को निरीक्षण किया था। टीम ने सभी पुलों को जर्जर बताते हुए इन पर ओवरलोड वाहनों के आवागमन को प्रतिबंधित कर दिया था। चेतावनी भी सभी पुलों पर लिखवाई गई थी, लेकिन इसके बाद अफसर चुप्पी साधकर बैठ गए। नतीतजन अब भी भारी भरकम वाहनों का इन पुलों से आवागमन लगातार जारी है, जिससे कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। सिंचाई विभाग के अधीक्षण अभियंता विनोद कुमार मिश्रा का कहना है कि नए पुलों के निर्माण की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। क्षतिग्रस्त पुलों पर वाहनों की आवाजाही खतरनाक है, जिसे रोकने के लिए शासन-प्रशासन को कड़े कदम उठाने चाहिए।

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गंगनहर के पुलों के संबंध में संबंधित विभागीय अफसर कितने गंभीर हैं इसका पता पिछले दिनों तब लगा जब मेरठ मंडल की कमिश्नर अनीता सी मेश्राम ने गंगनहर पर मुजफ्फरनगर, मेरठ और गाजियाबाद क्षेत्र में बने 31 पुलों की हालत की जानकारी के लिए सिंचाई अफसरों को तलब किया। कोई भी अधिकारी संतोषजनक जवाब नहीं दे सका। कमिश्नर यह जानकार दंग रह गई कि एई से लेकर चीफ इंजीनियर तक सभी इन बातों से अनजान मिले। इस पर कमिश्नर ने अफसरों को जमकर फटकार लगाते हुए पूछा कि अगर पुल पर कोई हादसा होता है तो यह बता दीजिए कि फांसी पर आप सभी में से कौन लटकेगा? इस मामले में पूछे जाने पर कमिश्नर अनीता सी मेश्राम कहती हैं, हमने मुख्य अभियंता का जवाब तलब किया है। साथ ही प्रमुख सचिव सिंचाई को भी पत्र भेजकर कार्रवाई की मांग की गई है। बहरहाल, नाराज कमिश्नर की फटकार का असर सिंचाई विभाग के अफसरों पर कुछ हुआ है अभी तक तो ऐसा दिखता नहीं है।

चेतावनी का बोर्ड लगा कर हो गई ड्यूटी पूरी

इसी 12 जुलाई को सिंचाई विभाग ने पुल के पास एक बोर्ड लगा दिया, जिस पर लिखा है- ‘चेतावनी 160 वर्ष पुराना है यह पुल अपनी आयु पूर्ण कर चुका है, इस पर वाहनों का प्रवेश वर्जित है’। इसके बावजूद कार, बस समेत माल लदे बड़े ट्रक बदस्तूर पुल पर आते-जाते रहते हैं। होना तो यह चाहिए था कि प्रतिबंध का बोर्ड लगाने से पहले कोई दूसरा पुल बनाने की व्यवस्था की जाती अथवा आसपास किसी पुल से इसका डायवर्जन करते। वाहन चालकों को नानू पुल पर आकर इस बोर्ड के बारे में पता चलता है तो वे वापस होने के बजाय जोखिम लेने को ज्यादा अच्छा विकल्प मानते हैं। अगर यह पुल हल्के वाहनों के लिए अभी मुफीद है और बड़े वाहन के लिए नहीं तो हाइट गेज लगाकर बड़े वाहन वैकल्पिक मार्ग से गुजारे जा सकते थे।

स्थानीय जनता मजबूर

स्थानीय लोग इस मुद्दे को लेकर गंभीर तो हैं लेकिन उनकी दिक्कत यह है कि उन्हें इस मुद्दे पर स्थानीय नेताओं का अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है। नानू गंगनहर पुल के निकट चाय की दुकान करने वाले बिजेन्द्र बताते हैं कि कुछ दिन पहले क्षेत्रीय निवासी मास्टर शरणवीर नए पुल की निर्माण की मांग पर आमरण अनशन पर बैठे थे। उन्हें समर्थन देने के नाम पर कई स्थानीय नेता भी पहुंचे। लंबे चौड़े भाषण हुए, फोटो खिंचवाए गए। करीब एक सप्ताह बाद मास्टर शरणवीर यह कहते हुए गंग नहर में कूद गए कि जब तक उनकी मांग पूरी नहीं होगी वह बाहर नहीं निकलेंगे। मौके पर पहुंची पुलिस ने उन्हें हिरासत में लेकर हवालात में डाल दिया। उन्हें अगली सुबह इस शर्त पर छोड़ा कि वो दोबारा आमरण अनशन पर नहीं बैठेंगे। क्षेत्रीय निवासी कल्लू कहते हैं कि नानू पुल पर आए दिन जाम लगा रहता है। अगर किसी दिन जाम के दौरान ही पुल भरभरा कर ढह गया तो ना जाने कितने लोग मरेंगे।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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