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बीएसएनएल : इतना सन्नाटा क्यों है भाई.......
' भारत संचार निगम लिमिटेड जो कभी देश को जोडऩे की बात करती थी आज वो खुद ही बैसाखी का सहारा खोजती फिर रही है। किसी जमाने में टेलीफोन का मतलब बीएसएनएल होता था। कनेक्शन लेने के लिए लंबी कतार व ऊंची सिफारिश की जरूरत पड़ती थी। फिर मोबाइल का जमाना आया तो देश में फैले उसके विशाल नेटवर्क के कारण हर कोई उसके सिम के लिए कतारों में खड़ा दिखता था और निजी कंपनियां होड़ में हांफती नजर आती थीं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ऐसा कुछ हुआ कि बीएसएनएल जैसा विशाल हाथी भी दम तोडऩे लगा। हालात यह हैं कि 15 साल पहले तक लंबी-लंबी लाइनों और ग्राहकों की भीड़ से खचाखच भरा रहने वाले बीएसएनएल के आफिस की रौनक बेनूर हो गई है। बीएसएनएल में सबसे ज्यादा नुकसान लैंडलाइन टेलीफोन के ग्राहकों की संख्या में हुआ है। इस पूरी स्थिति से उबरने के लिए सरकार को वीआरएस का विकल्प देना पड़ा। पेश है एक रिपोर्ट।'
सुशील कुमार
मेरठ। जनवरी माह के अंतिम दिन मेरठ में बीएसएनएल के 2270 अधिकारियों- कर्मचारियों ने भारी मन से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) ले ली। बीएसएनएल यूपी पश्चिम परिमंडल के महाप्रबंधक ने वीआरएस लेने वाले कर्मचारियों- अधिकारियों को फूल माला पहनाकर सम्मानित किया और उनकी सेवाओं के लिए धन्यवाद दिया। अधिकरियों व कर्मचारियों की आंखें नम थीं। कुछ कर्मचारियों ने कहा कि अगर वक्त पर रिटायर होते तो उसकी बात अलग होती।
भारत दूरसंचार निगम लिमिटेड के यूपी पश्चिमी परिमंडल में छब्बीस जिलों में कार्यरत अफसरों व कर्मचारियों की संख्या 4459 हैं। इनमें से 2270 ने वीआरएस लिया है। इनमें आगरा से 345, मेरठ में 247, सहानपुर में 110 कर्मी भी शामिल हैं। वीआरएस लेने वालों की बड़ी संख्या के कारण सम्मान समारोह यूनिवर्सिटी के एक हॉल में आयोजित किया गया। 50 की उम्र पार कर चुके कर्मचारियों- अधिकारियों को एक पैकेज दिया गया है कि अगर वो वीआरएस का ऑप्शन लेते हैं तो उन्हें लाभ होगा।
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बीएसएनएल यूपी पश्चिम परिमंडल के महाप्रबंधक ए.के. वाजपेयी कहते हैं कि 50 साल की उम्र वालों ने वीआरएस का ऑप्शन लिया है और बीएसएनल ने खर्च को कम करने के लिए अपने स्टाफ स्ट्रेंथ को कम किया है। ऐसा निर्णय इसलिए लेना पड़ा कि क्योंकि मार्केट बदल चुका है। अब लैंडलाइन का जमाना धीरे-धीरे समाप्ति की कगार पर है। मार्केट के हालात से मुकाबला करने के लिए बीएसएनएल को ऐसा कठिन निर्णय लेना पड़ा है। वैसे, कर्मचारी यूनियन इसे घाटे का सौदा बता रही हैं। बीएसएनएल एंप्लाइज यूनियन के जिला सचिव नरेश पाल कहते हैं कि बहुत से कर्मचारियों की सात से आठ साल की सेवाएं शेष हैं, लेकिन शोषण के डर से कर्मचारी वीआरएस लेने के लिए मजबूर हैं। एक तरफ पैसा मिलने का प्रलोभन दिया जा रहा है। वहीं, अगर कर्मचारी नौकरी करते तो उन्हें इंक्रीमेंट, प्रमोशन और अन्य सुविधाएं प्राप्त होंगी। यह स्कीम 50 साल से अधिक उम्र वाले कर्मचारियों के लिए है। नरेश पाल कहते हैं कि यह बीएसएनएल में आउट सोर्सिंग को बढ़ाने का प्रयास मात्र है। राजभाषा अधिकारी सतेंद्र रावत की मानें तो कर्मचारी वीआरएस के पक्ष में नहीं हैं। कंपनी क्यों पिछड़ती गई, इस पर विभाग के एक अफसर कहते हैं, 'इसे समझने के लिए 19 साल पहले जाना पड़ेगा। 30 सितंबर 2000 को अधूरी तैयारियों के साथ बीएसएनएल का गठन कर दिया गया। उस समय डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम, डिपॉर्टमेंट ऑफ टेलीकॉम सर्विसेज और डिपॉर्टमेंट ऑफ ऑपरेशंस हुआ करते थे। फैसला यह हुआ था कि ऑपरेशंस और सर्विसेज विभाग को मिलाकर बीएसएनएल का गठन किया जाएगा। तब यह नहीं देखा गया कि अगर नई कंपनी का गठन किया जा रहा है तो उसकी जरूरतें क्या होंगी, उसे कैसा इन्फ्रास्ट्रक्चर चाहिए? दूरसंचार विभाग के तहत आने वाले चार लाख से ज्यादा कर्मचारी बीएसएनएल के जिम्मे डाल दिए गए। यह अध्ययन तक नहीं किया गया कि वास्तव में बीएसएनएल को कितने कर्मचारियों की जरूरत है। जब आप कंपनी बना रहे हैं और उसकी टक्कर निजी कंपनियों से है, तो आपको प्रोफेशनल रवैया अपनाना होगा। लेकिन बीएसएनएल में इंडियन टेलीकॉम सर्विसेज के अधिकारियों, ज्वाइंट टेलीकॉम अफसर और उसके नीचे के कर्मचारियों में तालमेल ही नहीं बन पाया। इसे शुरू से ही कई बीमारियां लग गईं। जब तक कमाई हो रही थी तब तक सारी खामियां छिपी हुई थीं। लेकिन जैसे ही कमाई पर संकट आया, खामियां सामने आने लगीं।
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बीएसएनएल यूपी पश्चिम परिमंडल की बात करें तो साल 2015 से अब तक बीएसएनएल के मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ी ही है लेकिन यह दूसरे सर्विस प्रोवाइडर्स की तुलना में कम है। हां, लैंडलाइन कनेक्शन में गिरावट उल्लेखनीय है। अब मार्केट के तीन बड़े ब्रांडों का मेरठ में बीएसएनएल से काफी मजबूत प्रदर्शन है। इन तीनों के पास लगभग 25 लाख उपभोक्ता हैं जबकि बीएसएनएल के 3.62 लाख उपभोक्ता ही जोड़े रखने में सफल है। इनमें भी पोस्टपेड उपभोक्ता तो सात हजार से भी कम हैं।
मेरठ में दिसंबर 1996 में पहली बार मोबाइल आया। एस्कोटेल नाम से कंपनी ने व्हीलर्स क्लब में मोबाइल सेवा की आधिकारिक लांचिंग की। तब एस्कोटेल से एस्कोटेल पर ही बात होती थी। इसके कुछ महीने बाद ही ऊषा कंपनी भी मोबाइल सेवा के क्षेत्र में उतरी। एस्कोटेल तो बाद में आइडिया के नाम से सेवा देती रही लेकिन ऊषा की सेवाएं बाद में बंद हो गईं। मोबाइल उपभोक्ताओं की संभावनाओं को तलाशते हुए दूसरी कंपनियां भी तेजी से मेरठ की ओर बढ़ीं। एयरटेल की आधिकारिक लांचिंग करने तो स्वयं सुनील भारती मित्तल जून, 2002 को मेरठ के आबू प्लाजा पहुंचे थे। जिला मेरठ टेलीकॉम एसोसिएशन के अध्यक्ष राजवीरसिंह कहते हैं कि शुरुआती दौर में गांव-देहात में एकमात्र बीएसएनएल का ही टावर काम करता था। इसके बाद हच ने गांव की तरफ अपने पैर पसारे। उन दिनों बीएसएनएल के टावर के शाम के समय काम न करने की शिकायतें भी आम हो गई थीं। वही ब्रेकडाउन था। बीएसएनएल की लोकप्रियता एक बार जो टूटी, फिर नहीं सुधार हुआ।
बीएसएनएल अपने गठन के समय मुनाफा कमाने वाली कंपनी थी। उसे 2001-02 में 6,312 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ हुआ था। उस वक्त वह सबसे ज्यादा मुनाफेवाली सरकारी कंपनी बन गई थी। 2004-05 में कंपनी को 10,183 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था। यह कंपनी का अब तक का सबसे अधिक मुनाफा था। लेकिन जैसे-जैसे बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ती गई, कंपनी का मुनाफा घटता गया। इसे 2009-10 में पहली बार 1840.7 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। उसके बाद से यह लगातार घाटे में चल रही है। बीएसएनएल के स्थानीय एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, सरकारी नीतियां ऐसी रहीं जिनकी वजह से बीएसएनएल कभी कंपनी के रूप में काम ही नहीं कर पाई। आज भी कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के पास स्वतंत्र अधिकार नहीं है। उसे कई अहम फैसलों के लिए दूरसंचार विभाग पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसे दौर में जब फटाफट फैसले लिए जाते हैं, वहां एक उपकरण खरीदने की प्रक्रिया को भी लालफीताशाही से गुजरना पड़ता है। निजी कंपनियों से मुकाबला करने के लिए तकनीकी स्तर पर हम पिछड़ गए हैं। आज भी बीएसएनएल को 4जी सेवाएं देने का लाइसेंस नहीं मिला है।
बीएसएनएल की स्थापना के समय कर्मचारियों का वेतन कंपनी की कुल कमाई का करीब 22 फीसदी हिस्सा हुआ करता था। यह अब बढ़कर 75 फीसदी तक पहुंच गया है। इसकी प्रमुख वजह वेतन में बढ़ोतरी के साथ-साथ कंपनी की लगातार गिरती कमाई है। कंपनी को पहले साल में ही 25,893 करोड़ रुपये की आय हुई थी, जो 2005-06 में बढ़कर 40,177 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। 2018-19 आते-आते आय 19,308 करोड़ रुपये रह गई, जो अब तक का न्यूनतम है।
पुराने दौर को याद करते हुए मेरठ के विकासपुरी निवासी ठाकुर लियाकत अली कहते हैं, '1995 में मैंने 'ओन योर टेलीफोन स्कीम' के तहत 15,000 रुपये देकर लैंडलाइन कनेक्शन लिया था। उस दौर में तुरंत फोन लेने के लिए यही विकल्प था, वरना कनेक्शन मिलने में वर्षों लग जाते थे। निजी कंपनियों के आने के बाद कंपनी अपनी विरासत को नहीं संभाल पाई।'
पीएल शर्मा रोड निवासी सीए नवीन जैन कहते हैं, 'बीएसएनएल ने जब अपनी मोबाइल सर्विस शुरू की, तो देश भर में नेटवर्क होने का उसे भारी लाभ था। कंपनी उसका फायदा उठाने में नाकाम रही। निजी कंपनियों के मुकाबले सर्विस देने में वह काफी पीछे है। आज 5जी की बात हो रही है जबकि बीएसएनएल अभी तक 4जी सर्विस भी लॉन्च नहीं कर पाई है। ऐसे में कोई कस्टमर क्यों उसकी सेवाएं लेगा?'
एक नजर
उतर प्रदेश के पश्चिम दूरसंचार परिमण्डल मे सहारनपुर से आगरा तक 27 राजस्व जिले हैं। इस परिमण्डल में लगभग 6.5 करोड़ की जनसंख्या तथा क्षेत्रफल 69748 वर्ग किलोमीटर है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश (मेरठ सर्किल) के 26 जनपदों के बीएसएनएल उपभोक्ता
वर्ष प्रीपेड पोस्टपेड लैंडलाइन
2015 - 23,63,020 41,422 3,09,970
2016 - 31,75,880 42689 2,64,703
2017 - 44,25,050 44,829 2,39,112
2018 - 43,81,300 37,032 2,05,190
2019 - 44,20,930 36,403 1,73,070
मेरठ में बीएसएनएल उपभोक्ता
वर्ष प्रीपेड पोस्टपेड लैंडलाइन
2015 - 1,42,112 9123 39,463
2016 - 2,12,526 9264 34,173
2017 - 2,80,644 9247 32,411
2018 - 3,06,990 7912 26,913
2019 - 3,55,743 6985 23,506
मेरठ में अन्य मोबाइल कंपनियों के ग्राहक
कंपनी का नाम प्रीपेड पोस्टपेड
एयरटेल 9 लाख 50 हजार
वोडा-आइडिया 8.50 लाख 75 हजार
जियो 6 लाख