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मिनी चम्बल का वो दुर्दांत बीहड़ जहां रोशनी भी है प्रकृति की गुलाम
ये स्थान चित्रकूट जिला मुख्यालय से 60 किमी की दूरी पर पाठा की विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं से घिरे दुर्गम एवं कठिन रास्तों के बीच स्थित है। इस जंगल मे हनुमान जी का एक प्राचीन मंदिर है । कहा जाता है कि जिसके दर्शन मात्र से हर मनोकामना पूरी होती है। यहां एक प्राकृतिक झरना भी है और शैलचित्र भी।
अनुज हनुमत
चित्रकूट: प्राकृतिक सुंदरता समेटे अदभुत और अद्वितीय स्थान है बेधक घाटी। ये स्थान चित्रकूट जिला मुख्यालय से 60 किमी की दूरी पर पाठा की विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं से घिरे दुर्गम एवं कठिन रास्तों के बीच स्थित है। इस जंगल मे हनुमान जी का एक प्राचीन मंदिर है । कहा जाता है कि जिसके दर्शन मात्र से हर मनोकामना पूरी होती है। यहां एक प्राकृतिक झरना भी है और शैलचित्र भी।
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खास बात ये है कि इस जंगल के साथ किवदंती भी होती थी कि जो भी इस जंगल मे जाता है वो लौटककर नही आता ,इतना घना है ये जंगल। यहां हमेशा डकैतो का गढ़ रहा है जिस कारण ये आम लोगो की पहुंच से अब तक दूर है । साल में एकबार स्थानीय लोग भण्डारा वगैरह करते हैं । समूचे बुन्देलखण्ड के लिए ये पर्यटन का एक प्रमुख केंद्र बन सकता है लेकिन इसके लिए शासन ,प्रशासन को ठोस पहल करनी होगी । अगर इस जंगल के विषय मे विस्तार से बात करें तक यह कई मायनों में खास है । सर्वप्रथम तो इस जंगल मे जहां झरना गिरता है और गुफाएं बनी हुई हैं वह पूरा स्थान अंधेरे में डूबा रहता है यानी कि सूरज की रोशनी दिन में भी उस भाग में उजाला नही कर पाती है ।
कोई भी व्यक्ति रात में उस जंगल मे नही रुक सकता
बेधक के जंगल के विषय मे एक और कहानी आम लोगो के बीच चर्चा का विषय है। कहा जाता है कि कोई भी व्यक्ति रात में उस जंगल मे नही रुक सकता । क्योंकि वहां अप्सराओं का वास है । ऐसा कहा जाता है कि यहां इन्ही अप्सराओं के घुंघुरू की आवाज रातभर सुनाई देती है । बताया तो यहां तक जाता है कि बेधक का जंगल पुरातन समय मे ऋषि मुनियों की तपस्या का प्रमुख केंद्र था। बेधक में जो हनुमान भगवान की मूर्ति स्थापित है उसके विषय मे यह मान्यता है कि अगर आप वहां जाकर हृदय से कोई भी मन्नत मांगते है तो वह पूरी जरूर होती है।
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इस जंगल मे मनुष्य का प्रवेश न के बराबर होता है
फिलहाल यह मंदिर सुनसान ही पड़ा रहता है लेकिन यदा कदा मन्दिर की सफाई हो जाती है और भगवान की पूजा भी। बाकी वर्ष भर इस जंगल मे मनुष्य का प्रवेश न के बराबर होता है । इस जंगल के खतरनाक होने का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं की आम लोगो का मानना है कि यहां जाना मतलब जान जोखिम में डालना । अगर इस जंगल मे पहुचने वाले रास्ते की बात करें तो वैसे तो कई रास्ते हैं । लेकिन यहां अंदर जाने के लिए निहि गांव से होकर रास्ता जाता है । काफी पथरीला रास्ता और झाड़ियों से घिरा ये जंगल काफी सन्नाटे भरा है।
बहरहाल बेधक जाने का रास्ता आज भी दुर्गम और कठिन है। इसलिए आप वहां अकेले न जाएं तो बेहतर होगा क्योंकि जंगल मे इस समय हर तरह के खूंखार जानवर हैं । वैसे यहां जाने के दो रास्ते हैं। पहला रास्ता निहि गांव से होकर अंदर जाता है । जंगल ही जंगल लगभग 10-15 किमी दूर पड़ती है बेधक घाटी और दूसरा मध्यप्रदेश सीमा से जाता है जहां आप प्रतापपुर से जा सकते हैं। कुलमिलाकर बेधक का जंगल आज भी बहुत घना और प्राकृतिक सुंदरता को खुद में समेटे हैं। रानीपुर वन्य जीव अभ्यारण्य के अंतर्गत आने वाले जंगल मे पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। कुछ ही दिनों में जब ये अभ्यारण्य टाइगर रिजर्व पार्क बनेगा तो ऐसे स्थलों में पर्यटकों की पहुंच निःसन्देह बढ़ेगी