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उत्तर प्रदेश में सपा और रालोद गठबंधन पर मंडराते संशय के बादल
बुलंदशहर सदर विधानसभा उपचुनाव में हुई रालोद उम्मीदवार की शर्मनाक हार के बाद दोंनो दलों के बीच दूरी बढ़ने लगी है। बुलन्दशहर उप चुनाव पश्चिम में दोबारा पांव जमाने की कोशिशों में जुटी रालोद की राजनैतिक पकड़ का इम्तिहान माना जा रहा था,
मेरठ: सपा और रालोद गठबंधन २०२२ चुनाव तक कायम रहेगा। इसको लेकर संशय के बादल मंडराने लगे हैं। घोषित तौर पर चुनावी गठबंधन में बंधे सपा और रालोद के स्थानीय नेताओं का भारत बंद का अलग-अलग समर्थन करना यह चुगली करता है कि दोंनो दलों के नेताओं के बीच हालिया उप-चुनाव के परिणामों के बाद जो आपस में खटास पैदा हुई थी वह खत्म नही हुई है।
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सपा के स्थानीय नेताओं का सपा नेतृत्व पर रालोद से अलग होने का दबाव बढ़ने लगा
दरअसल, बुलंदशहर सदर विधानसभा उपचुनाव में हुई रालोद उम्मीदवार की शर्मनाक हार के बाद दोंनो दलों के बीच दूरी बढ़ने लगी है। बुलन्दशहर उप चुनाव पश्चिम में दोबारा पांव जमाने की कोशिशों में जुटी रालोद की राजनैतिक पकड़ का इम्तिहान माना जा रहा था, जिसमें रालोद के बुरी तरह फेल होने के बाद सपा के स्थानीय नेताओं का सपा नेतृत्व पर रालोद से अलग होने का दबाव बढ़ने लगा है।
बता दें कि जयंत के साथ रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजित सिंह ने बुलंदशहर में रैली की थी। चुनाव नतीजों ने अजित सिंह और जयंत चौधरी की जोड़ी की दरकती जमीन को एक बार फिर जाहिर कर दिया। सपा के समर्थन से बुलंदशहर सदर विधानसभा उपचुनाव लड़े रालोद उम्मीदवार सात हजार से कुछ अधिक वोट पाकर अपनी जमानत जब्त करा बैठे।
मेरठ कालेज में अर्थशास्त्र विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर मनोज सिवाच बताते हैं
रालोद-सपा गठबंधन के लिए सबसे शर्मनाक बात तो यह रही कि भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी (आसपा) ने बुलंदशहर के उपचुनाव में सपा-रालोद गठबंधन और कांग्रेस से अधिक वोट पाए। मेरठ कालेज में अर्थशास्त्र विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर मनोज सिवाच बताते हैं, ''अजित सिंह ने जिस तरह से रालोद को सपा की पिछलग्गू पार्टी बना दिया है उससे जाट मतदाता नाराज हैं. पश्चिम में रालोद और सपा के संगठन के बीच तालमेल नहीं है।''
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वहीं सपा के सथानीय एक वरिष्ठ नेता नाम ना छापने की शर्त पर कहते हैं,बुलन्दशहर सीचट पर यदि सपा उम्मीदवार लड़ा होता तो समीकरण कुछ और होते। इस नेता की मानें तो अजित सिंह अब एक चूके हुए कारतूस के अलावा कुछ नही हैं। उधर वेस्ट यूपी पर नजर गढ़ाए बैठे शिवपाल यादव ने २१ दिसम्बर को मेरठ के सिवालखास में महारैली कर चुनावी बिगुल फूंक दिया है। सूत्रों की मानें तो रैली के बहाने भतीजे को वेस्ट में अपनी ताकत दिखा कर शिवपाल सपा पर अपनी पार्टी से सीटों में भागीदारी का दबाव बनाएंगे।
रिपोर्ट- सुशील कुमार
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