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सड़क से सदन तक आरक्षण विरोधी प्रावधान के खिलाफ लड़ा जाएगाः कांग्रेस

वर्ष 1992 में ’इंदिरा साहनी जजमेंट’ में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय लिया था कि यदि आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थी से ज्यादा अंक प्राप्त किए तो उसका अंतिम चयन अनारक्षित वर्ग में कर दिया जाएगा।

SK Gautam
Published on: 10 Feb 2020 4:41 PM IST
सड़क से सदन तक आरक्षण विरोधी प्रावधान के खिलाफ लड़ा जाएगाः कांग्रेस
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लखनऊ: उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग यूपीपीएससी द्वारा पीसीएस समेत अन्य परीक्षाओं की भर्ती में आरक्षण के प्राविधान में किये गये बदलावों पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि इस बदलाव से प्रदेश के लाखों की संख्या मे अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और जनजाति के अभ्यर्थी प्रभावित होंगे। उन्होंने कहा कि बाबा साहब डा. आम्बेडकर द्वारा निर्मित संविधान को खत्म करने की साजिश रची जा रही है, इसके खिलाफ सड़क से लेकर सदन तक लड़ा जाएगा।

"सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय’’ का खुला उल्लंघन

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने सोमवार को कहा कि यूपीपीएससी के द्वारा आरक्षण के प्रावधान में बदलाव करना संविधान में वर्णित न्याय की संकल्पना यानी ‘‘सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय’’ का खुला उल्लंघन है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में राज्य के सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों तो उचित अवसर प्रदान करने के लिए राज्य को निर्देशित करता है। इसी के तहत अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को आरक्षण मिला हुआ है।

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उन्होंने बताया कि वर्ष 1992 में ’इंदिरा साहनी जजमेंट’ में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय लिया था कि यदि आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थी से ज्यादा अंक प्राप्त किए तो उसका अंतिम चयन अनारक्षित वर्ग में कर दिया जाएगा। इंदिरा साहनी के फैसले के आधार पर बीते साल 17 सितंबर को जस्टिस नागेश्वर राव और हेमंत गुप्ता की पीठ ने यह निर्णय दिया था कि हर प्रतिभागी सामान्य वर्ग का होता है चाहे वह कैंडिडेट पिछड़ा वर्ग अनुसूचित जाति और जनजाति का भी क्यों ना हो।

आरक्षित वर्ग को उनके अधिकारों से वंचित करने का षडयंत्र

आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी द्वारा अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थी द्वारा ज्यादा अंक लाने पर उसका चयन सामान्य वर्ग में हो जायेगा। अजय कुमार ने कहा कि उप्र. लोक सेवा आयोग का निर्णय पूरी तरह से संविधान के खिलाफ है। यह आरक्षित वर्ग को उनके अधिकारों से वंचित करने का षडयंत्र है। सरकार या आयोग यह तर्क देकर नहीं बच सकते कि हाईकोर्ट के किसी आदेश के तहत ऐसा किया जा रहा है। यदि कोई न्यायिक अड़चन है तो यह सरकार की जिम्मेदारी है कि उसे दूर कर संविधान के तहत आरक्षण की व्यवस्था को लागू करायें जिससे लाखों पिछड़ों दलित वर्ग के छात्रों के अधिकारों का हनन न हो पायें।

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आरक्षण प्राविधान में यूपीपीएससी द्वारा किया बदलाव संविधान विरोधी: अजय कुमार लल्लू

बताते चलें कि यूपीपीएससी ने निर्णय लिया है किसी परीक्षा में जिनमे प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा, साक्षात्कार और स्क्रीनिंग परीक्षा शामिल है। उसमें किसी भी स्तर पर अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के आरक्षण का लाभ लेने की स्थिति के संबंध में अभ्यर्थी को उसी की श्रेणी में चयनित किया जाएगा भले ही अंतिम चयन परिणाम में उसका कटऑफ अनारक्षित वर्ग के बराबर या अधिक हो।

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