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Hardoi News: किताब खरीदना है तो लेना होगा कवर और नेम स्लिप तक, जानिए नए सेशन में कैसे लूटा जा रहा पैरेंट्स को
Hardoi News: नवीन शिक्षा सत्र शुरू होने के साथ-साथ अभिभावकों की जेब पर डाका पड़ना शुरू हो गया है। तमाम निजी विद्यालयों के संचालक मनमाफिक कोर्स व किताबें चलाकर अभिभावकों की जेब काटने में लगे हैं।
Hardoi News: नवीन शिक्षा सत्र शुरू होने के साथ-साथ अभिभावकों की जेब पर डाका पड़ना शुरू हो गया है। तमाम निजी विद्यालयों के संचालक मनमाफिक कोर्स व किताबें चलाकर अभिभावकों की जेब काटने में लगे हैं। यही नहीं, विद्यालय संचालक यूनीफार्म से लेकर टाई-बेल्ट तक अपने पास से दे रहे हैं। विद्यालय द्वारा दी जाने वाली सामग्री पर वास्तविक मूल्य से अधिक वसूला जा रहा है।
हर साल बदल देते हैं किताबें
कई बार अभिभावकों ने शासन-प्रशासन से इसकी शिकायत की। प्रशासन द्वारा पूर्व में औपचारिकता के लिए कुछ विद्यालय और विक्रेताओं के यहां छापेमारी की गई, मगर नतीजा सिफर रहा। विद्यालय संचालक धड़ल्ले से अपनी दुकानें चलाने में लगे हुए है। बदलते समय में जहां लोग अपने बच्चों को सरकारी विद्यालय की बजाए निजी विद्यालयों में पढ़ाना अपनी शान समझते हैं, वहीं विद्यालय संचालक भी इसका जमकर फायदा उठाते हैं। यह विद्यालय संचालक प्रतिवर्ष विद्यालयों में चलने वाला पाठ्यक्रम बदल देते हैं, ताकि कोई पिछले सत्र की किताबों से पढ़ाई न कर सके।
ऐसे पब्लिशर्स की किताबें, जो स्कूल पर ही मिलेंगी
विद्यालयों द्वारा जिन प्रकाशकों की पाठ्य पुस्तकें दी जाती हैं। वह पाठ्य पुस्तकें उनके सिवाय और कहीं नहीं मिलती हैं। अथवा उनकी बताई गई दुकान पर ही मिलेंगी। नतीजतन अभिभावकों को अपनी जेब ढीली करनी पड़ती है। बताते चलें कि तीन वर्ष पूर्व तत्कालीन जिलाधिकारी ने इस गोरखधंधे पर लगाम लगाने का प्रयास किया था, तब नगर मजिस्ट्रेट ने कई पुस्तक विक्रेताओं के यहां छापेमारी कर भारी अनियमितता पाई थी। लेकिन वर्तमान जिम्मेदार अभिभावकों की इस समस्या से अनजान बने हुए हैं। जिसका नतीजा यह है कि पुस्तक विक्रेताओं की मनमानी से अभिभावकों का शोषण लगातार जारी है।
किताब के साथ कवर, नेम स्लिप तक लेना अनिवार्य
बहती गंगा में हाथ धोने में स्टेशनरी विक्रेता पीछे नहीं हैं। मौके का फायदा उठाते हुए अधिकांश स्टेशनरी विक्रेताओं के विभिन्न विद्यालयों से गुप्त समझौते हैं। इस समझौते के तहत निर्धारित विद्यालय का पाठ्यक्रम निश्चित दुकान पर ही मिलता है। पुस्तक विक्रेताओं व विद्यालय संचालकों का गठजोड़ अभिभावकों की जेब पर कैंची चलाने में लगा हुआ है। इन स्टेशनरी विक्रेताओं के यहां पाठ्य पुस्तकों के अलावा इनके ऊपर चढ़ाए जाने वाले कवर, नेम स्लिप, जॉमेंटरी बाक्स, कलर बाक्स लेना भी अनिवार्य है।
अभिभावक संघ रहता है निष्क्रिय
जिले में अभिभावकों की समस्याओं का निदान करने के लिए कागजों पर एक अभिभावक संघ भी बना है, लेकिन यह संघ सिर्फ नाम के लिए रह गया है। नवीन सत्र में जब अभिभावकों का जमकर शोषण हो रहा है। तब यह संघ कहां है, इसकी चर्चा जोरों पर है। चर्चा यह भी है कि संघ के कुछ पदाधिकारी स्वयं के लाभ के चलते कुंडली मारकर संघ पर बैठे हुए हैं।