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‘लॉकडाउन बढ़ता ही जा रहा, घर वाले बुला रहे, इसलिए आना पड़ा’

गुजरात से इत्रनगरी आई स्पेशल श्रमिक टे्रन से रोडवेज बस के इंतजार में जौनपुर के निवासी अरविंद का परिवार जीटी रोड किनारे बैठा था। पत्नी बोतल की ढक्कन में पानी निकालकर छोटे-छोटे बच्चों को पिला रहीं थीं।

Dharmendra kumar
Published on: 15 May 2020 12:14 AM IST
‘लॉकडाउन बढ़ता ही जा रहा, घर वाले बुला रहे, इसलिए आना पड़ा’
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कन्नौज: गुजरात से इत्रनगरी आई स्पेशल श्रमिक टे्रन से रोडवेज बस के इंतजार में जौनपुर के निवासी अरविंद का परिवार जीटी रोड किनारे बैठा था। पत्नी बोतल की ढक्कन में पानी निकालकर छोटे-छोटे बच्चों को पिला रहीं थीं। अरविंद ने बताया कि शाक-भाजी का धंधा करते थे। करीब एक से डेढ महीने से बंद है। जहां खुला भी है, वह स्थान किराए के मकान से काफी दूर है।

लॉकडाउन बढ़ता ही जा रहा है। घर वाले बुला रहे थे। आने का दवाब बना रहे थे, इसलिए आना पड़ा। सभी पब्लिक घर जा रही है। अरविंद का कहना है कि जब तक लॉकडाउन खत्म नहीं होगा, घर पर ही रहेंगे। आगे जब जाना होगा, तब देखा जाएगा। परिवार के पांच लोग थे। सीजन-सीजन में धंधा करने चला जाता था। ट्रेन का सफर अच्छा रहा। नाश्ता, खाना व पानी मिला। 540 रुपए की टिकट मिली थी।

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अपनी तीन बेटियों व इकलौते बेटे के साथ बड़ोदरा में रहती थीं मीना

जौनपुर के लाइन बाजार निवासी करीब 55 साल की मीना 20 वर्षों से गुजरात के बड़ोदरा में रह रही थीं। उनका परिवार भी वहां रहता था, लेकिन लॉकडाउन में काम छिन गया तो घर के लिए निकल पड़ीं। अपनी परेशानी बयां करते हुए उनके आंसू छलक आए।

मीना की बेटी आरती ने बताया कि वह डोरी बनाकर 11 हजार रुपए महीना कमाती रहीं, लेकिन वहां सामान छोड़कर घर जा रहे हैं। वहां का मकान मालिक उनसे किराया नहीं लेता था। आरती ने बताया कि आठ साल पहले शादी हुई थी, तीन साल पहले पति का कैंसर से निधन हो गया। आरती का कहना है कि पिता भी 10 साल पहले कैंसर की वजह से चल बसे थे। आरती की बहन दुर्गा ने बताया कि साड़ी में डिजाइन बनाने वाली फैक्ट्री में काम करती थी, लॉकडाउन में सब बंद है। अब घर जा रही हूं।

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मीना की तीसरी बेटी संध्या ने बताया कि घर पर खेती भी नहीं है जो काम कर सकेगी। सरकार को कुछ सोचना चाहिए। मीना का कहना है कि वह तीन बेटियों व पुत्र मनीष के साथ वहां रहती थीं। लेकिन ऐसा कभी माहौल नहीं देखा। अपनी परेशानी बयां करते हुए उनकी आंखों में आंसू आ गए।

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आगे बताया कि ट्रेन से सभी लोग 560-560 रुपए का टिकट लेकर आए हैं। सफर तो अच्छा रहा है। भविष्य में वापस जाना पड़ेगा, क्योंकि परिवार में कमाने वाला कोई नहीं है। रोल पॉलिस, कढ़ाई आदि का काम भी करते थे। अभी तनख्वाह भी पूरी नहीं मिली हैं। आते समय पैसा नहीं बचा, लॉकडाउन में सब खर्च हो गया।

रिपोर्ट: अजय मिश्रा



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Dharmendra kumar

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