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गायों की मौत जारी, अफसरों में आरोप-प्रत्यारोप

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Published on: 25 Oct 2019 6:38 AM GMT
गायों की मौत जारी, अफसरों में आरोप-प्रत्यारोप
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गायों की मौत जारी, अफसरों में आरोप-प्रत्यारोप

पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर। महराजगंज के मधवलिया गो-सदन में अपर आयुक्त गोरखपुर की जांच में गाय घोटाला उजागर होने के बाद जिलाधिकारी अमरनाथ उपाध्याय समेत छह अफसरों के खिलाफ हुई निलंबन की कार्रवाई से प्रदेश भर के गो-सदन संचालकों समेत प्रशासनिक अफसरों में हड़कंप की स्थिति है। बड़ी कार्रवाई के बाद योगी सरकार भले ही कड़ा संदेश देने में कामयाब हुई हो, लेकिन गो सदनों में गोवंश की मौतों का सिलसिला नहीं थम रहा है। महराजगंज में गायों के मौतों पर अफसरों की सेंसरशिप हटने के बाद से मधवलिया के गो-सदन में रोज 8 से 10 पशुओं की मौत का आंकड़ा सामने आ रहा है। गोरखपुर के कान्हा उपवन में भी गायों की मौतें लगातार हो रहीं हैं। अफसर पशु और लाचार सिस्टम का इलाज करने के बजाय सिर्फ कागजी कोरमपूर्ति में जुटे हुए हैं। अपनी कमियों को छुपाने के लिए आरोप-प्रत्यारोप में उलझे हुए हैं।

महराजगंज के मधवलिया गो-सदन की बदहाली को लेकर बीते 14 अक्टूबर को अपर आयुक्त गोरखपुर की जांच रिपोर्ट के आधार पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कड़ी कार्रवाई के बाद अफसर गायों की मौतों का ठीकरा एक-दूसरे पर फोडऩे में जुटे हैं। महराजगंज से लेकर गोरखपुर तक गोवंश की मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा है। मधवलिया गो-सदन में अफसरों पर कार्रवाई के बाद सप्ताह भर में 50 से अधिक गायों की मौतें हो चुकी हैं। वहीं गोरखपुर नगर निगम में भी पशुओं की मौत पर खामोशी का कफन डालने की कोशिशें हो रही हैं।

अपर आयुक्त की जांच में खुद महराजगंज के मधवलिया गो-सदन के जिम्मेदारों ने स्वीकारा था कि अप्रैल से अक्टूबर के बीच करीब 900 गायों की मौत हुई है। वहीं गिनती में कम मिले 800 गायों को लेकर जिम्मेदार संतोषजनक जवाब नहीं दे सके थे। अब पशुपालन विभाग पूरे प्रकरण को कानूनी पचड़े में फंसाने पर तुला हुआ है। पशुपालन विभाग ने मधवलिया में गायब पशुओं को लेकर यूपी पुलिस के ऑनलाइन पोर्टल पर तहरीर अपलोड की थी। पर महराजगंज एसपी से लेकर ठूठीबारी थाना प्रभारी तक ने इसे संज्ञान में नहीं लिया।

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इस तरह मामले ने तूल पकड़ा

मामला तब तूल पकड़ता दिखा जब महाराजगंज के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी अवध बिहारी 19 अक्तूबर को मुकदमा दर्ज कराने कोतवाली ठूठीबारी पहुंच गए। एसएचओ छोटेलाल ने कार्रवाई किये जाने का भरोसा देकर सीवीओ को लौटा दिया। इसके बाद भी मुकदमा दर्ज नहीं हुआ तो मामला जांच अधिकारी बनाए गए अपर आयुक्त तक पहुंच गया। महराजगंज एसपी रोहित सिंह सजवान ने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि गायों के गायब होने की जांच पहले से चल रही है। शासन से मुकदमा दर्ज करने को लेकर कोई निर्देश नहीं मिला है। हालांकि मामले ने तूल पकड़ा तो निलंबित डिप्टी सीवीओ डा.वीके मौर्य की तहरीर की नए सिरे से जांच शुरू की गई। जाहिर है, शासन स्तर से हुई कार्रवाई के बाद खुद को निर्दोष साबित करने के लिए निलंबित अधिकारी की ओर से ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराई गई है। नवागत जिलाधिकारी डा.उज्जवल कुमार कार्यभार संभालने के बाद बराबर निगरानी कर रहे हैं। उनके द्वारा सुधार के दावे किए जा रहे हैं। डीएम का कहना है कि पशुओं के लिए दवा की कमी नहीं है। दवा, चारा व भूसा आदि की कमी किसी कीमत पर नहीं होने दी जाएगी। सभी डॉक्टर व कर्मचारी टीम भावना से काम कर रहे हैं। गो सदन के सभी पशुओं की टैगिंग जल्द पूरी कर ली जाएगी।

नौकरी बचाने में जुटे हैं अफसर

उधर, गोरखपुर नगर निगम और पशुपालन विभाग में महेवा के कान्हा उपवन में मर रही गायों को लेकर तलवार खिंची हुई है। जिम्मेदार अफसर व्यवस्था सुधारने के बजाय एक-दूसरे पर आरोप लगाते हुए खुद की नौकरी बचाने में जुटे हुए हैं। दरअसल, नगर आयुक्त अंजनी सिंह ने 17 अक्तूबर को मुख्य पशु चिकित्साधिकारी को कड़ा पत्र लिखा। सुर्खियां बटोर रहे इस पत्र में कहा गया है कि पशुपालन विभाग के चिकित्सक डिस्पेंसरी में सुविधा का हवाला देते हुए सड़क पर घायल पशुओं के इलाज की पूरी जिम्मेदारी नगर निगम पर थोप रहे थे। नगर आयुक्त ने मुख्य पशु चिकित्साधिकारी को चेताया कि अपने डिस्पेंसरी में इलाज की व्यवस्था कराएं अन्यथा शासन के संज्ञान में लाया जाएगा।

आरोपों को गलत बताया

जवाब में मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ.डीके शर्मा ने नगर आयुक्त को पत्र लिखा है। पत्र में लिखा कि सदर पशु चिकित्सालय पर कंट्रोल रूम संचालित है, जहां 24 घंटे टीम मौजूद रहती है। पशु चिकित्साधिकारी चरगांवा अपनी टीम के साथ घायलों का उपचार कराते हैं। कांजी हाउस फर्टिलाइजर और कान्हा उपवन में अलग से चिकित्सकों और कर्मचारियों की तैनाती है। ऐसे में घायल पशुओं के इलाज का जिम्मा नगर निगम के पशु नियंत्रण अधिकारी पर थोपने का आरोप गलत है। निगम के प्रभारी अधिकारी के पास ऐसे पशुओं के उपचार के लिए शायद कोई योग्यता ही नहीं होती है। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी ने शासनादेशों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया है कि नगरीय क्षेत्र में अवैध पशुओं के घूमते पाए जाने पर निगम या नगर पंचायत के अधिकारी ही जिम्मेदारी होंगे। निराश्रित पशुओं का इलाज न करने के आरोपों का खंडन करते हुए सीवीओ इसे हास्यास्पद बताया है।

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नगरनिगम कर्मी ड्यूटी को तैयार नहीं

इतना ही नहीं मुख्यमंत्री के शहर के कान्हा उपवन में ड्यूटी करने को नगर निगम के कर्मचारी तैयार नहीं हैं। नगर आयुक्त ने दस कर्मचारियों की कान्हा उपवन में तैनाती की है। इनमें से सिर्फ दो ने ही कार्यभार संभाला है। यहां भी अधिकारियों और कर्मचारियों में लेटरबाजी हो रही है। कर्मचारी जहां बीमारी से लेकर अन्य वजहों से कान्हा उपवन नहीं जाने को पत्र लिख रहे हैं, वहीं नगर आयुक्त ने 8 कर्मचारियों को पत्र लिखकर स्पष्टीकरण तलब किया है। यहीं नहीं गोरखपुर कमिश्नर ने बीते दिनों मुख्यमंत्री के समक्ष गायों के मौतों को रोकने के लिए एक और प्रोजेक्ट प्रस्तुत कर दिया। इसके मुताबिक गोरखपुर मंडल के सभी गो-सदनों में सेहत की स्थिति के लिहाज से गायों को तीन केटेगरी में बांटा जाएगा। गम्भीर बीमार गायों को लाल श्रेणी में तो पीले श्रेणी में कम बीमार गायों को रखा जाएगा। वहीं हरे श्रेणी में स्वस्थ पशुओं को रखा जाएगा। कमिश्नर गोरखपुर जयंत नार्लीकर का दावा है कि तीन श्रेणियों में गायों को बांटे जाने से उनके इलाज में सहूलियत होगी।

हर दो घंटे के लिए चिकित्सक प्रभारी

कागजों में व्यवस्था में चुस्त दुरुस्त दिखाने के लिए नगर निगम और पशुपालन विभाग ने प्रत्येक दो घंटे के लिए एक चिकित्सक को कान्हा उपवन का प्रभारी बना दिया है। गायों की सेहत जांचने के लिए छह पशु चिकित्सकों की ड्यूटी लगाई गई है जो दो-दो घंटे के अंतराल पर पशुओं की जांच करेंगे। पर चिकित्सक कब रहते हैं और कब नहीं, इसका कोई आंकड़ा नहीं है। अफसर गोरखपुर से लेकर महराजगंज तक गो सदन में क्लोज सर्किट कैमरा लगवा रहे हैं। सवाल यह है कि जब कर्मचारी रहेंगे नहीं, चिकित्सक इलाज नहीं करेंगे तब क्या सिर्फ तीसरी आंख लगने से पशुओं की स्थिति सुधर जाएगी? पूर्व विधायक कौशल किशोर सिंह उर्फ मुन्ना सिंह का कहना है कि पशुपालन विभाग से लेकर जिलाधिकारी के पास पशुओं की मौतों पर अंकुश को लेकर कोई रोडमैप नहीं है। अधिकारी सिर्फ फाइलें मोटी कर रहे हैं ताकि नौकरी खतरे में पड़े तो दिखा सकें कि हमने तो जिम्मेदारों के संज्ञान में मामला ला दिया था। पूरा सिस्टम बीमार है। सिर्फ टोल टैक्स, मंडी टैक्स और आबकारी विभाग में गायों के लिए उपकर लगाने से गो-वंश की रक्षा नहीं हो सकेगी।

डॉक्टर न सुविधा, क्यों न मरें गोवंश

गोरखपुर से लेकर महराजगंज और बस्ती से लेकर देवरिया तक गोसदन गायों के लिए कब्रगाह बने हुए हैं। पहले से ही बीमार गायों के इलाज को लेकर कोई पुरसाहाल नहीं है। कार्रवाई के बाद महराजगंज के जिलाधिकारी बनाए गए डॉ.उज्जवल कुमार खुद पशु चिकित्सक हैं। मुख्यमंत्री ने उन्हें इस उम्मीद में भेजा है कि वह सिस्टम के साथ पशुओं की सेहत सुधारने का काम करेंगे। जिलाधिकारी ने पदभार संभालने के साथ ही पशुपालन विभाग को पत्र लिखकर मधवलिया में गायों की मौत की वजह जानने के लिए पशुपालन निदेशालय को पत्र लिखा था। कोरमपूर्ति के लिए लखनऊ से तीन सदस्यीय पशु विशेषज्ञों की टीम महराजगंज तो पहुंच गई, लेकिन उनके पास किसी प्रकार का संसाधन नहीं था। टीम में शामिल डॉ. अनिल कुमार शर्मा संयुक्त निदेशक पशुपालन, विशेषज्ञ डॉ.शशि विक्रम सिंह व डॉ.पंकज कुमार यह बताने से बचते रहे कि गायों की मौतें क्यों हो रही हैं? आखिर गायों की मौतों का सिलसिला कब थमेगा? पशुपालन विभाग के पास मौतों पर अंकुश लगाने को लेकर कोई रोड मैप है या नहीं? संयुक्त निदेशक डॉ.अनिल कुमार शर्मा सवालों से यह कहते हुए बच निकले कि गोवंशों की मौत का कारण लैब टेस्ट से ही मालूम हो सकेगा। इसके लिए मृत पशुओं की पोस्टमार्टम रिपोर्ट व सैम्पल आईवीआरआई (रिसर्च सेन्टर) लखनऊ भेजा जा रहा है।

गायों के पेट से निकला पॉलीथिन

महराजगंज के गो सदन में मौजूद 900 से अधिक गायों के इलाज के लिए सिर्फ एक पशु चिकित्सक की तैनाती को लेकर भी सवाल है। उधर,गोरखपुर के कान्हा उपवन में गायों के मरने का सिलसिला थम नहीं रहा है। नगर निगम के आयुक्त अंजनी कुमार सिंह ने सवालों में घिरने के बाद आधा दर्जन गायों का पोस्टमार्टम कराया है। कमोवेश सभी गाय के पेट में 20 किलोग्राम से लेकर 50 किलोग्राम तक पॉलीथिन निकला है। एक गाय के पेट से तो रस्सी और मैगी के खाली रैपर निकले हैं। गोरखपुर में कान्हा उपवन के प्रभारी संजय शुक्ला का कहना है कि ठीक-ठीक दिख रही गायें एकाएक बैठ जाती हैं। चंद घंटों में उनकी तबीयत बिगडऩे लगती है जिसके बाद उन्हें बचाना मुश्किल हो जाता है। कान्हा उपवन की अधिकतर गायों के पेट में 10 से 40 किलोग्राम तक पॉलीथिन की संभावना है। हालांकि उनके पास इसका कोई जवाब नहीं है कि जिन गायों के पेट में पॉलीथिन है, उसका इलाज क्यों नहीं समय रहते कराया जा रहा है।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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