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दिव्यांगता की बेडिय़ां काट कामयाबी की उड़ान, गरीबी की मार झेल रहे परिवार को नहीं मिली मदद

raghvendra
Published on: 1 Nov 2019 12:32 PM IST
दिव्यांगता की बेडिय़ां काट कामयाबी की उड़ान, गरीबी की मार झेल रहे परिवार को नहीं मिली मदद
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तेज प्रताप सिंह

गोंडा: पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है। गोंडा के पिता और चार दिव्यांग भाई-बहनों ने इन पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए सिद्ध कर दिया है कि यदि हौसला हो तो दिव्यांगता भी आगे बढऩे में आड़े नहीं आती। आंखों में रोशनी न होने से राम अर्जुन जन्मजात दिव्यांग हैं। विवाह हुआ तो तीन बेटे और एक बेटी भी इसी रोग से ग्रसित हो गई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आज उनके मेधावी बच्चे खेलों में कामयाबी की उड़ान भर रहे हैं।

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जिले के हलधरमऊ ब्लाक क्षेत्र के हरसिंहपुर गांव के मजरे पंडित पुरवा निवासी राम अर्जुन शुक्ला किसान हैं। वह स्वयं जन्म से ही अंधता के कारण दिव्यांग हैं। इनके पांच बच्चों में चार जन्म से ही दृष्टि दोष होने के कारण दिव्यांग हैं। इन्हें रोजमर्रा के काम में भी काफी संघर्ष करना पड़ता है। एक सरकारी रिसर्च बताती है कि देश में ज्यादातर दिव्यांग बच्चे पांचवीं से आठवीं के दौरान पढ़ाई छोड़ देते हैं क्योंकि वो शारीरिक दिक्कतों के चलते मन से टूट जाते है। शायद इसलिए क्योंकि उन्हें अपना आने वाला कल मुश्किल लगता है, वो खुद को मुख्यधारा से नहीं जोड़ पाते। लेकिन राम अर्जुन शुक्ला के बच्चे उच्च शिक्षा ग्रहण करने के साथ जहां खेलों में मेडल बटोर रहे हैं। वहीं गायन वादन के क्षेत्र में भी महारत हासिल कर रहे हैं।

गायन-वादन का हुनर

दिव्यांग शिवानंद, विवेकानंद और पूनम गीत भजन गायन के साथ ही हारमोनियम, ढोलक, आर्गन, की बोर्ड और तबला जैसे अनेक वाद्ययंत्र बखूबी बजा लेते हैं। राम चरित मानस का पाठ भी पूरे लय से करते हैं। शिवानंद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत अनेक नेताओं, फिल्मी कलाकारों आदि की मिमिक्री भी कर लेते हैं।

पांच बीघा खेती पर निर्भर है परिवार

राम अर्जुन शुक्ल के पास मात्र दो कमरे का घर है, जिसमें अब तक प्लास्टर और फर्श नहीं बन पाया है। इसी घर में अर्जुन पत्नी गीता और पांच बच्चों के साथ रहते हैं। घर में शौचालय भी नहीं है। गरीबी इस कदर है कि अर्जुन के पास चारपाई, कुर्सी तक नहीं है। पिता ने मात्र पांच बीघा खेत दे रखा है। उसी से वह पूरा परिवार चलाते हैं। पढ़ाई-लिखाई का भी खर्च उसी में से निकलता है। दिव्यांगता के कारण खेती का काम भी सुचारु रूप से नहीं हो पाता। खेती बाड़ी का काम गीता ही करती हैं। इसके अलावा अर्जुन थोड़ा बहुत पुरोहित का काम करके कुछ पैसा कमा लेते हैं। दिव्यांग शिवानंद ने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई के बाद बालपुर बाजार में पान की दुकान खोल ली है। छोटी सी आमदनी से पाचं दिव्यांगों वाले इस परिवार की गाड़ी चल रही है।

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नहीं मिला कोई प्रोत्साहन

राम अर्जुन बताते हैं कि अभी तक उन्हें कोई सरकारी मदद नही मिली। विवेकानंद व पूनम ने बताया कि हमारे साथ पढ़ रहे जितने भी खिलाड़ी बच्चे हैं, उनके क्षेत्र के सांसद व विधायक अधिकारी आते हैं और उनका प्रोत्साहन करने के साथ ही मदद भी करते हैं। लेकिन हमारे दरवाजे पर अब तक कोई भी नेता अथवा अधिकारी नहीं आया और न ही किसी प्रकार का प्रोत्साहन ही मिला।

अपनों ने किया किनारा

दिव्यांग खिलाडिय़ों की मां गीता शुक्ला कहती हैं कि उनके पति जन्मांध थे। जब एक के बाद एक दिव्यांग बच्चे पैदा होने लगे तो घर से लेकर गांव तक के लोगों ने ताना मारना शुरू कर दिया। अपने सगे संबंधियों ने भी नाता तोड़ लिया। वे दिन रात घर से लेकर खेत तक काम करती हैं। कोई किसी प्रकार की सहायता भी नहीं करता। इसके बावजूद जिधर भी जाती हैं, उधर ताना ही सुनने को मिलता है। मजबूरन गांव से बाहर आकर बसे और अब हम आंख और कान बंदकर अपना काम करते रहते हैं।

मेधावी दिव्यांगों ने जीते दर्जनों खेल पुरस्कार

अर्जुन के पुत्र जन्मांध परमानंद को बीएड के बाद नौकरी नहीं मिली तो वे डा. शकुंतला विश्वविद्यालय, लखनऊ से परास्नतक कर रहे हैं। परिवार को फाकाकशी से उबारने के लिए दिव्यांग शिवानंद ने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई के बाद बालपुर बाजार में पान की दुकान खोल ली है। विवेकानंद राजकीय स्पर्श दृष्टिबाधित इंटर कालेज, मोहान रोड लखनऊ में 12वीं के छात्र हैं। जबकि दिव्यांग बेटी पूनम भी इसी कालेज में 11वीं की छात्रा है। विवेकानंद व पूनम ने दिव्यांग विद्यालय लखनऊ में पढ़ाई के दौरान पैरा जूडो सीखा। विवेकानंद ने वर्ष 2015 में प्रथम दृष्टिबाधित एवं मूक बधिर स्टेट जूडो चैंपियनशिप में 45 किग्रा भार वर्ग में गोल्ड, पांचवें राष्ट्रीय जूडो चैंपियनशिप में 45 किग्रा भार वर्ग में गोल्ड, इंडियन ब्लाइंड स्पोर्ट एसोसिएशन द्वारा आयोजित ऊषा स्पोर्ट चैंपियनशिप-2018 में सिल्वर मेडल जीता। विवेकानंद देश में कई स्थानों पर पैरा जूडो खेल चुके हैं। उन्होंने अब तक नौ गोल्ड के साथ तीन सिल्वर मेडल अपने नाम किए। विवेकानंद ने जूडो कराटे का भी प्रशिक्षण लिया है।

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पूनम ने गोरखपुर में आयोजित नेशनल पैरा जूडो चैंपियनशिप फार ब्लाइंड-2019 में गोल्ड, 2017 में इंडियन ब्लाइंड एंड पैरा जूडो एसोसिएशन की ओर से आयोजित प्रतियोगिता तथा जिला ब्लाइंड जूडो चैंपियनशिप 2018 में गोल्ड, 2012-13 में प्रथम नेशनल जूडो चैंपियनशिप फार ब्लाइंड और जिला जूडो चैंपियनशिप 2014 में सिल्वर मेडल जीता। इसके अलावा पैरा जूडो में हरियाणा, दिल्ली, लखनऊ सहित कई जगहों पर नेशनल गेम खेला। पूनम अब तक 12 गोल्ड व चार सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं। अब उन्हें खेलने के लिए इंग्लैंड जाना है, लेकिन वहां जाने के लिए उसके पास न तो पासपोर्ट है और न ही किराए की रकम। पूनम ने बताया कि उसे ब्रेल स्लेट, कागज खरीदने के मद में दो हजार रुपये का प्रति माह का खर्चा आता है जो किसी तरह पूरा हो पा रहा है। विवेकानंद ने बताया कि अमेरिकी चिकित्सक डा. पवन सिन्हा कभी-कभार भारत आते हैं तो विद्यालय में आकर कुछ मदद के रूप में सामान दे जाते हैं। विवेकानंद प्रशासनिक सेवा में जाना चाहते हैं।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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