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लखनऊ से दलितों को लेकर बड़ा संदेश दे गए थे डॉ. भीमराव आंबेडकर
अंबेडकर का लखनऊ से बहुत पुराना और गहरा संबंध है, वे यहां पर कई बार आ चुके हैं, बाबा साहब ने समाज की दशा व दिशा को सही राह पर लाने के लिए, छुआ छूत जैसी चीजों को खत्म करने के लिए और पिछड़ों को उनका हक दिलाने के लिए लखनऊ से बड़ा संदेश दिया था।
शाश्वत मिश्रा
लखनऊ: आज भारत के संविधान निर्माता, चिंतक, समाज सुधारक डॉ. भीमराव अंबेडकर की 128वीं जयंती है, जिसे भारत के साथ पूरे विश्व में मनाया जाता है। इनका जन्म मध्य प्रदेश के महू में 14 अप्रैल 1891 को हुआ था। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था। वे अपने माता-पिता की 14वीं और अंतिम संतान थे। बाबा साहेब के नाम से मशहूर अंबेडकर अपना पूरा जीवन सामाजिक बुराइयों जैसे छुआछूत और जातिवाद के खिलाफ संघर्ष में लगा दिया।
पांच बार यहां पर आए थे बाबा साहब
अंबेडकर का लखनऊ से बहुत पुराना और गहरा संबंध है, वे यहां पर कई बार आ चुके हैं, बाबा साहब ने समाज की दशा व दिशा को सही राह पर लाने के लिए, छुआ छूत जैसी चीजों को खत्म करने के लिए और पिछड़ों को उनका हक दिलाने के लिए लखनऊ से बड़ा संदेश दिया था, वह अपनी पूरी जिंदगी में लखनऊ पांच बार आये थे जिसका शहर के इतिहास में जिक्र मिलता है।
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1. पहली बार आंबेडकर लंदन में शिक्षा ग्रहण करने के बाद आए और लखनऊ के नवाब छतारी के यहां रुके थे। नवाब ने बाबा साहेब को लखनऊ आने के लिए आमंत्रित किया था। इस यात्रा के दौरान बाबा साहेब ने गोलागंज के ही रिफा-ए-आम क्लब में मीटिंग की थी।
2. दूसरी बार आम्बेडकर डिप्रेस्ड-क्लासेज कॉन्फ्रेंस में लखनऊ आए थे। इस बार बाबा साहेब ने बंगाली क्लब, हीवेट तथा घोड़ा अस्पताल, क्ले स्क्वायर में भी बाबा साहेब ने सभाएं की थीं।
3. बाबा साहेब तीसरी बार 30 जून 1943 को लोथियन कमिटी में सदस्य के तौर पर लखनऊ आए थे। आम्बेडकर का यह दौरा काफी अहम रहा। धोबी, पासी और अन्य जातियों को इस दौरान ही शिडयूल्ड कास्टस की सूची में शामिल किया गया। बाबा साहेब ने लखनऊ यूनिवर्सिटी का भी दौरा किया था। यहां पर उन्होंने एससी फेडरेशन सभा को संबोधित किया था।
4. चौथी बार 26 जनवरी 1944 को स्टैंडिंग लेबर कमिटी की बैठक में हिस्सा लेने के लिए बाबा साहेब लखनऊ आए थे। इस कमिटी की बैठक की बाबा साहेब ने अध्यक्षता की थी।
5. पांचवी बार बाबा साहेब जब लखनऊ आए तो वह कानून मंत्री थे। 25 अप्रैल 1948 को वह जब लखनऊ आए तो तत्कालीन राज्यपाल सरोजनी नायडू ने उन्हें अपने घर पर भोजन करवाया था। वह बाबा साहेब के स्वागत में चारबाग रेलवे स्टेशन भी गई थीं।
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दलित स्मृतियों को सहेजने में अव्वल है लखनऊ
तहजीब की नगरी में दलितों को हमेशा एक सम्मान के नज़रिए से देखा गया। यहाँ पर दलितों के लिए सम्मान एवं प्यार दोनों देखने को मिलता है जो कि यहां के चौराहों और सड़कों पर दिखाई पड़ता है। यहां पर बाबा साहेब, नरायणा गुरु, शाहूजी महराज और ज्योतिबा फुले की मूर्तियां हैं। ये अपने आप में दलित और बहुजन समुदाय को बड़ा संदेश देती हैं।
उदा देवी भी थीं दलित
अंग्रेजी शासनकाल में अंग्रेजों के अपनी बहादुरी से छक्के छुड़ाने वाली, शहर की वीरांगना उदा देवी ने इसी लखनऊ की सरजमीं पर अपनी बहादुरी का मुजायरा पेश किया था। उन्होंने यहाँ के बेगम हज़रत महल पार्क में बड़ी लड़ाई जीती थी। उदा देवी ने अपने शौर्य का परिचय देते हुए यहां पर 36 अंग्रेज सैनिको को मार गिराया था जिसके बाद वह वीरगति को प्राप्त हो गई।