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महंगी बिजलीः इस कमी की भरपाई के लिए उपभोक्ताओं पर बोझ

मौजूदा समय में देश में बिजली का उत्पादन, मांग के सापेक्ष दोगुना है। देश में इस मौजूदा बिजली का उत्पादन 03 लाख 78000 मेगावाट है तथा इसके सापेक्ष मांग 01 लाख 80 हजार मेगावाट है।

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Published on: 22 July 2020 4:22 PM IST
महंगी बिजलीः इस कमी की भरपाई के लिए उपभोक्ताओं पर बोझ
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लखनऊ। गर्मी और उमस बढ़ने के साथ ही उत्तर प्रदेश में बिजली की मांग में वृद्धि हुई है। यूपी में अभी 23 हजार मेगावाट बिजली की मांग है। यूपी पावर कार्पोरेशन निजी क्षेत्रों से ज्यादा महंगी बिजली खरीद कर इस मांग को पूरा भी कर रहा है। लेकिन प्रदेश के सरकारी क्षेत्र के बिजलीघर मांग का एक तिहाई भी बिजली उत्पादन नहीं कर रहे है। लिहाजा सरकार को निजी क्षेत्रों और केंद्र से बिजली ले कर आपूर्ति करनी पड़ रही है। निजी क्षेत्र से खरीदी जाने वाली बिजली महंगी होने के कारण उपभोक्ता को भी बिजली का ज्यादा बिल का भुगतान करना पड़ रहा है। मौजूदा समय में पावर कार्पोरेशन द्वारा खरीदी जा रही बिजली की लागत ही 7.90 रुपये आ रही है।

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अनपरा की तीन इकाइयों की क्षमता 2630 मेगावाट

मौजूदा समय में यूपी में बिजली की उपलब्धता देखे तो सरकारी क्षेत्र से करीब 6500 मेगावाट, निजी क्षेत्र से करीब 6500 मेगावाट तथा केंद्रीय व यूपी के बाहर से खरीदी गई करीब 10 से 11 हजार मेगावाट बिजली मिल रही है। इसमे भी सरकारी क्षेत्र के बिजलीघरों में, अनपरा की तीन इकाइयों की क्षमता 2630 मेगावाट है। इसमे 630 मेगावाट अनपरा ए तथा अनपरा बी व डी की क्षमता 1000-1000 मेगावाट की है। इसी तरह ओबरा में 1000 मेगावाट, पारीछा में 1030 मेगावाट तथा हरदुआगंज में 600 मेगावाट उत्पादन की क्षमता है। दूसरी ओर निजी क्षेत्र के बिजली उत्पादन पर नजर ड़ाले तो अनपरा सी की उत्पादन क्षमता 1200 मेगावाट, रिलायंस के रोजा बिजलीघर की क्षमता 1200 मेगावाट तथा बजाज के ललितपुर बिजलीघर की क्षमता 1260 मेगावाट है।

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देश में बिजली का उत्पादन 03 लाख 78000 मेगावाट

दरअसल, मौजूदा समय में देश में बिजली का उत्पादन, मांग के सापेक्ष दोगुना है। देश में इस मौजूदा बिजली का उत्पादन 03 लाख 78000 मेगावाट है तथा इसके सापेक्ष मांग 01 लाख 80 हजार मेगावाट है। यहीं कारण है कि यूपी में बिजली की कमी नहीं हो रही है लेकिन सही मायनों में बिजली उत्पादन के मामलें में यूपी अभी भी आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है। इसके कारण यूपी को निजी क्षेत्र से बिजली खरीदनी पड़ती है, जो महंगी होती हैै। यही कारण है कि यूपी में बिजली की दरे ज्यादा है।

ट्रांसमिनशन लाइनों की हालत खराब

यूपी में सरकारी बिजलीघरों की संख्या में कोई वृद्धि नहीं हो रही है और न ही नए प्लांट लग रहे है। नए प्लांट लगाने के लिए 2009-10 के दौरान 09 एमओयू साइन किए गए थे। इसमें से एक को छोड़कर कोई भी जमीन पर नहीं उतर पाया। इतना ही नहीं जो नए प्लांट शुरू किए जाने थे, उनसे आपूर्ति होने में भी देरी हुई। उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग के सूत्रों के मुताबिक प्रदेश के ऊर्जा उत्पादन संयंत्र अपनी क्षमता से लगभग 40 प्रतिशत कम बिजली पैदा करते हैं।

इसके अलावा लगभग सभी संयंत्रों की एक-दो इकाइयां तकनीकी कारणों से या कोयले अथवा गैस न मिल पाने के चलते हफ्तों बंद रहती हैं। इंटरनेट पर मौजूद आंकड़ों की मानें तो उत्तर प्रदेश में लगभग 22 हजार मेगावाट क्षमता के पावर प्लांट मेंटिनेंस और कोयले की कमी की वजह से बंद पड़े हैं। इतना ही नहीं, ट्रांसमिनशन लाइनों की हालत ठीक नहीं होने के कारण केंद्र से भी उत्तर प्रदेश को बिजली नहीं मिल पा रही है।

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यूपी में बिजली के कुल एक करोड़ 45 लाख उपभोक्ता

इंटरनेट पर मौजूद आंकड़ों के मुताबिक, यूपी में बिजली के कुल एक करोड़ 45 लाख उपभोक्ता हैं, जिन पर कुल बिजली का भार 3 करोड़ 90 लाख किलोवाट है, जबकि प्रदेश के सभी सब स्टेशनों की कुल क्षमता करीब 2 करोड़, 50 लाख किलोवॉट है। इतना ही नहीं सूबे के बिजली ढांचे में एक करोड़ 40 लाख किलोवॉट का अतिरिक्त बोझ है। इसके अलावा प्रदेश में सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के स्रोतों का भी अपेक्षाकृत विकास नहीं हुआ है। जबकि फरवरी 2017 के आंकड़ों के अनुसार देश में वैकल्पिक ऊर्जा में 26.54 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

यूपी में बिजली वितरण कंपनियां कर्ज के बोझ तले दबी

यूपी में बिजली वितरण कंपनियां कर्ज के बोझ तले दबी हैं। मार्च 2015 के अंत तक सरकारी बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) का बकाया कर्ज 4.3 लाख करोड़ रुपए था। इसके अलावा 3.8 लाख करोड़ का घाटा भी शामिल था। दिलचस्प यह है कि कुल बिजली का 32 फीसद हिस्सा चोरी और बिलिंग की खामियों की वजह से बर्बाद हो जाता है।

इस संबंध में आल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे का कहना है कि यूपी को महंगी बिजली की मार से बचाने के लिए सरकारी क्षेत्र में और परियोजनाएं लगाई जानी चाहिए। उनका कहना है कि मौजूदा समय में लगी निजी क्षेत्र की अधिकांश बिजली परियोजनाओं में चीनी उपकरण लगे है। इसलिए अब जो बिजली संयत्र लगे उनमे भारत हैवी इलेक्ट्रिक्ल लि. के उपकरण ही लगाये जाए।

रिपोर्ट- मनीष श्रीवास्तव, लखनऊ

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