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ऐसे थे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, बलिया को बनाना चाहते थे आत्मनिर्भर
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के गांव इब्राहिमपट्टी में कुल दो घर ही मुसलमानों के थे। इसके बावजूद चंद्रशेखर चाहते थे कि गांव में छोटा ही सही एक मस्जिद का निर्माण हो जाए। इसके लिए वे अक्सर गांव के इस्लाम मास्टर साहब को कहते भी रहते थे।
बलिया: मुझे 25 वर्षों तक चंद्रशेखर जी की आत्मीयता मिलती रही। चंद्रशेखर ने नब्बे के दशक में कलकत्ता में मदर टेरेसा पर मेरी किताब का लोकार्पण किया था और राज्य सभा के निवर्तमान उप सभापति हरिवंश ने बताया कि कई सभाओं में चंद्रशेखर ने मेरी किताब का उल्लेख किया था। बलिया से लेकर कलकत्ता तक कई सभाओं में उनके साथ मंच साझा करने और दिल्ली और पुरुलिया आदि के भारत यात्रा केंद्रों पर उनके साथ यात्रा करने का सुयोग मिला था। साथ के लोगों की सुख-सुविधा का वे बहुत ध्यान रखते थे।
संबंधों के निर्वाह के मामले में उनका कोई जवाब न था। मेरे पारिवारिक आयोजन में चंद्रशेखर जी मेरे चैन छपरा गांव स्थित घर आए तो मेरे हावड़ा आवास पर भी आए। राजनीति चंद्रशेखर के जीवन का दस-बीस प्रतिशत हिस्सा ही थी। बाकी अस्सी प्रतिशत उनका जीवन ऐसा था जिसमें व्यक्तिगत संबंध ,एक दूसरे के लिए सद्भाव, स्नेह और ममत्व था। चंद्रशेखर ने राजनीति का अधिक मानवीयकरण किया।
चंद्रशेखर की जेल डायरी दो खंडों में तैयार हुई
आधुनिक राजनीति में चंद्रशेखर अंतिम मानवीय किंतु विचारवान और दृष्टिवान व्यक्ति थे जो राष्ट्रीय हित में संकटों के समाधान का समावेशी समाधान प्रस्तुत करते थे। विभिन्न सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर वे बेबाकी से निर्द्वंद्व भाषा अपनी राय रखते थे किंतु विरोधी विचारधारा वाले राजनेताओं के प्रति भी सद्भाव रखते थे। इसीलिए दूसरे दलों के लोगों के साथ भी उनके व्यक्तिगत संबंध सुमधुर थे। राजनीति में इस संस्कृति के पैरोकार गांधी, लोकनायक से लेकर नरेंद्र देव तक थे। चंद्रशेखर के अमृत महोत्सव पर एक साथ उनकी कई किताबें तैयार हुईं। उस टीम का मैं भी हिस्सा था।
चंद्रशेखर के विचार ग्रंथ का संपादन मैंने हरिवंश के साथ मिलकर किया। चंद्रशेखर की जेल डायरी दो खंडों में तैयार हुई। उस डायरी से पता चलता है कि चंद्रशेखर ने विश्व के श्रेष्ठ साहित्य का कितना गंभीर अध्ययन किया था। जेल में जो भी किताब वे पढ़ते थे, उसका सार डायरी में लिख लेते थे। उन्होंने राजनीति को साहित्य-कला-संस्कृति से जोड़े रखा। यंग इंडियन का संपादन उसका छोटा सा सबूत है।
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डॉ.कृपाशंकर चौबे
प्रोफेसर, जनसंचार विभाग, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा
जिले को आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे चंद्रशेखर
देश के आठवें प्रधानमंत्री रहे चंद्रशेखर अपने गृह जनपद बलिया को आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे। वे कहते थे कि हमारे जिले में प्रकृति ने अपार सम्पदा दी है। यदि यहां की प्राकृतिक सम्पदा का समुचित उपयोग किया जाय तो इस जिले की बेरोजगारी जैसी जटिल समस्या का भी समाधान हो सकता है।
बात उन दिनों की है जब देश में लोकसभा चुनाव हो रहा था और चंद्रशेखर जी यहां चुनाव लड़ रहे थे। मैं तब एक अखबार में था। संपादक का निर्देश था कि चंद्रशेखर जी का बलिया के विकास के संदर्भ में इंटरव्यू लेकर भेजा जाय। तय समय के अनुसार मैं उनकी झोंपड़ी पर पहुंच गया। वे निकल रहे थे, बोले - गाड़ी में बईठा ओही में बात होई।
बलिया शिक्षा के मामले में विकसित है
उन्होंने अपने साथ गाड़ी में पिछली सीट पर बिठाया। गाड़ी चलते ही बोले- पुछो क्या पूछना चाहते हो। मैंने कहा था कि बलिया के विकास की संभावनाओं के बारे मे आपसे जानना चाहता हूं। चंद्रशेखर जी ने गंभीर होते हुए कहा था- देखो, बलिया शिक्षा के मामले में विकसित है। सड़कें खराब हैं, जिसके लिए मैंने उत्तर प्रदेश सरकार को कहा है। फिर जैसे वे सपनों में खो गए थे, बोले- देखो यहां बहुत से दह हैं, ताल है, कटहल नाला है, जिसमें पूरे साल पानी बहता है।
अपनी योग्यता के अनुसार इसमें रोजगार पा सकते हैं
कटहल नाला पर छोटा डैम बन सकता है। मिनी हाइड्रोलिक पावर प्लांट लग सकता है। इस प्लांट से इतनी बिजली पैदा हो सकती है कि जिला अपनी जरूरत पूरी कर सकता है। उन्होंने अपनी बात जारी रखते हुए आगे कहा था कि यहां के हजारों मछुआरे दह और ताल से मछली मारकर अपने और अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं।
यदि यहां दह, ताल व पोखरे के मछली पालन को विकसित कर दिया जाय। यहां उच्च तकनीक वाला मछली उद्योग स्थापित कर दिया जाय और इसको राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय बाजार से जोड़ने वाला तंत्र विकसित कर दिया जाय तो यहां की बेरोजगारी को काफी हद तक दूर किया जा सकता है। उन्होंने कहा था कि अपने जिले में जो बीटेक, एमबीए युवक हैं वे सभी अपनी योग्यता के अनुसार इसमें रोजगार पा सकते हैं। चंद्रशेखर जी ने कहा था कि बलिया के पास इतनी सम्पदा है कि जिला आत्मनिर्भर बन सकता है।
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पूर्व प्रधान मंत्री चंद्रशेखर जन्म से लेकर निधन तक का सफर
- 17 अप्रैल 1927 को बलिया के एक सीमांत किसान सदानंद सिंह के घर जन्म।
- 1945 में श्रीमती द्विजा देवी से विवाह।
- 1949 में बलिया के प्रतिष्ठित सतीश चंद्र कॉलेज से स्नातक की उपाधि।
- 1951 में इलाहाबाद विश्व विद्यालय से राजनीति शास्त्र में परास्नातक की उपाधि।
- 1951 में आचार्य नरेंद्रदेव के आवाहन पर अपना शोध कार्य छोड़, बलिया जिला सोशलिस्ट पार्टी के मंत्री का कार्य संभाला।
- 1955 में प्रदेश सोशलिस्ट पार्टी के महामंत्री बने।
- 1962 में प्रज्ञा सोशलिस्ट पार्टी की ओर से राज्यसभा के लिए चुने गए।
- 1964 में अशोक मेहता के रचनात्मक विपक्ष का समर्थन करने के कारण पार्टी से निष्कासन के बाद कांग्रेस में शामिल हुए।
- 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के मंत्री चुने गए।
- 1969 में और उसके बाद भी लगातार कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य रहे।
- 1969 में ही कांग्रेस सिंडीकेट के विरुद्ध व्यापारिक एकाधिकार के विरुद्ध रामधन, कृष्णकांत आदि साथियों के साथ संघर्ष का बिगुल फूंका। समाचार पत्रों द्वारा श्री चंद्रशेखर को 'युवातुर्क' की उपाधि।
- 1971 के चुनावों में इंदिरा गाँधी की ओर से जबरदस्त चुनाव प्रचार, चुनावों में इंदिरा गाँधी की अभूतपूर्व सफलता, श्री चंद्रशेखर द्वारा मंत्री पद का अस्वीकार।
- 1972 इंदिरा जी के द्वारा चुनावी वादों को पूरा न किये जाने से कुछ अनबन, इंदिरा जी व हाई कमान विरोध के बावजूद शिमला में कांग्रेस चुनाव समिति के सदस्य के रूप में चुने गए।
- जून 25,1975 को आपातकाल में कांग्रेस का महासचिव होने के बावजूद गिरफ्तार, कारण जयप्रकाश नारायण का समर्थक होने का शक। 19 महीने जेल में।
- 1977 में पहली बार बलिया की लोकसभा सीट से चुने गए। मोरारजी देसाई की जनता सरकार में जेपी के आग्रह के बावजूद मंत्री पद का अस्वीकार। किंतु जेपी के आदेश पर नवगठित जनता पार्टी के अध्यक्ष का पद स्वीकार किया। तभी से उनके लिए 'अध्यक्षजी' का संबोधन प्रचलित।
- 1983 में भारत की 4260 किलोमीटर की पदयात्रा। दक्षिण भारत और पश्चिम भारत से भारत यात्रा कार्यक्रम को भरपूर समर्थन।
- 1990 नवंबर 10, को भारत के प्रथम समाजवादी प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री पर अल्पावधि के कार्यकाल में कई मोर्चों पर महत्वपूर्ण फैसले और पहल। मसलन- भारत की आंतरिक अशांति, अयोध्या विवाद, कश्मीर समस्या, पंजाब समस्या 1991 का तेल संकट।
- 11 मार्च 1991 को त्यागपत्र किंतु राष्ट्रपति के अनुरोध पर 20 जून 1991 तक प्रधानमंत्री पद पर रहे।
- 1992 संसद में और संसद के बाहर भी उदारीकरण की नीतियों और डंकल प्रस्ताव का जबरदस्त विरोध।
- 12 दिसबंर 1995 को सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार।
- 2000 में पाँच पूर्व प्रधानमंत्रियों के साथ मिल उदारीकरण की नीतियों की समीक्षा का प्रयास।
- 2004 के चुनावों में अंतिम बार बलिया के लोकसभा सीट से निर्वाचन, 1977 से लगातार (1984 को छोड़कर) सांसद रहे।
- 8 जुलाई 2007 को बलिया के सांसद के पद पर रहते हुए निधन।
गांव में मस्जिद बनाकर गांव वालों ने दी श्रद्धांजलि
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के गांव इब्राहिमपट्टी में कुल दो घर ही मुसलमानों के थे। इसके बावजूद चंद्रशेखर चाहते थे कि गांव में छोटा ही सही एक मस्जिद का निर्माण हो जाए। इसके लिए वे अक्सर गांव के इस्लाम मास्टर साहब को कहते भी रहते थे। वे अक्सर कहते थे कि मास्टर साहब मस्जिद का निर्माण शुरू कराइए, जिस मदद की जरूरत होगी मैं कर दूंगा। मास्टर साहब टाल जाते थे, लेकिन चंद्रशेखर जी के निधन के बाद वे उनकी इच्छा का अनादर नहीं कर सके। इसके बाद गांव में एक मस्जिद के निर्माण का निर्णय लिया गया। निर्माण में परिवार से जुड़े लोगों ने भी आर्थिक सहायता दी और गांव में एक छोटा मस्जिद तैयार हो गया।
अधिकारियों को मानते थे तीरंदाज
बलिया। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर देश के अधिकारियों को तीरंदाज मानते थे। उनका मानना था कि किसी भी दैवीय आपदा में यदि अधिकारी चाह दें तो बिना किसी को कोई नुकसान हुए पूरे मामले को संभाल सकते हैं। इसके ठीक उलट आपदाओं में होने वाले हर नुकसान के लिए भी वे अधिकारियों को ही जिम्मेदार मानते थे।
एक मौके का जिक्र करते हुए शेखर फाउंडेशन के अध्यक्ष और पूर्व जिला पंचायत सदस्य अनिल सिंह बताते हैं कि एक बार अध्यक्ष जी बाढ़ का दौरा करने के बाद पीडब्ल्यूडी डाकबंगला पहुंचे और जिले के सभी अधिकारियों को तलब कर लिया। इसके बाद उनकी जमकर क्लास लगी, क्योंकि अध्यक्ष जी बार-बार सिर्फ यही कह रहे थे कि बहाने मत बनाओ मैं जानता हूं कि तुम लोगों ने जानबूझकर बदमाशी की है। क्योंकि इस देश के अधिकारी यदि चाह दें तो वे कोई भी काम कर सकते हैं चंद्रशेखर ने हमेशा सत्ता की राजनीति का विरोध किया
रिपोर्टर- अनूप कुमार हेमकर, बलिया
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