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इस विश्वविद्यालय में डिग्री बांटने की फैक्ट्री, जानिए क्या है पूरी सच्चाई

वर्तमान कुलपति के ही कार्यकाल में सीपीएमटी प्रवेश परीक्षा का संपादन का दायित्व मिला था। वह तो प्रवेश परीक्षा का कार्य स्थगित होने के बाद वक्त मद में विभिन्न प्रकार के भुगतान संबंधी अनियमितताएं प्रकट में आई इसमें भी छात्रों का पैसा वापस न करके करके जहां भ्रष्टाचार किया गया हैं।

Rahul Joy
Published on: 7 Jun 2020 9:13 AM GMT
इस विश्वविद्यालय में डिग्री बांटने की फैक्ट्री, जानिए क्या है पूरी सच्चाई
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dr.ram manohar college

अयोध्या: डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय मैं परीक्षा दिए बिना पास हो जाना आम बात हो गई है। यह विश्वविद्यालय अब डिग्री बांटने की फैक्ट्री साबित हो रही है। अभी कुछ दिन पूर्व 70 नंबर के पूर्णांक में 80 नंबर छात्रों को उत्तर पुस्तिकाओं के जांचकर्ताओं ने प्रदान कर दिया जिससे विश्वविद्यालय में हड़कंप मच गया और विश्वविद्यालय ने उसे मानवीय त्रुटि करार देते हुए मामले को रफा-दफा कर दिया जबकि इसके पूर्व में भी वर्तमान कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित के कार्यकाल में श्री राम जानकी महाविद्यालय अमावा सूफी का एमएससी उत्तरार्ध रसायन विज्ञान का परीक्षा केंद्र श्रीराम गुलेरिया महाविद्यालय यशवंतनगर यहां 2 छात्र परीक्षा के दौरान गैरहाजिर थे।

कमेटी गठित कर दी

इसके बावजूद इनकी उत्तर पुस्तिकाएं विश्वविद्यालय में प्राप्त हुई जिन का मूल्यांकन कर परीक्षा फल घोषित कर दिया गया। इसकी जानकारी होने पर विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह खड़े हो गए। वही आरोपी कुलपति द्वारा आनन-फानन में स्वयं अपने अधीनस्थ कार्यरत वकील वह अपने मित्र लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ओम नारायण मिश्रा के साथ हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति इम्तियाज मुर्तजा के साथ 3 सदस्य समिति बनाकर प्रकरण की जांच करने के लिए कमेटी गठित कर दी।

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अब सवाल यह उठता है यह जांच कमेटी कैसे जांच करेगी, जबकि जांच कमेटी गठित करने वाला व्यक्ति ही आरोपों के घेरे में है, उक्त जांच रिपोर्ट 15 दिन में ही देनी थी लेकिन 3 महीना बीत गया। अभी तक कोई जांच रिपोर्ट नहीं आ सकी। इस मामले को भी रफा दफा करने की प्रक्रिया अपनाई जा रही है। विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा ही नकल के आरोप में श्री राम जानकी जानकी महाविद्यालय अमावा सूफी में परीक्षा निरस्त करने का आदेश दे दिया गया था।

छात्रों को उत्तीर्ण घोषित कर दिया

लेकिन यह आदेश मौखिक ही साबित हुआ और सभी छात्रों को उत्तीर्ण घोषित कर दिया गया। गाहे-बगाहे यहां इस तरीके की घटनाएं आम हो गई हैं । कुछ दिन पहले दिल्ली सरकार के कानून मंत्री रहे जितेंद्र तोमर की भी डिग्री डिग्री फर्जी साबित हो चुकी है। बताया जाता है कि वर्ष 2018 19 में श्री राम जानकी महाविद्यालय अमावसूफी अमानीगंज का सेंटर जिले के ही श्री राम सिंह गुलेरिया कुरावन गुलेरिया कुरावन कुरावन सिंह गुलेरिया कुरावन कुरावन गया था इसमें एमएससी अंतिम वर्ष मैथ्स केमिस्ट्री बायोलॉजी के 50 से अधिक छात्रों ने परीक्षा ही नहीं दी, लेकिन नतीजे आए तो सब फर्स्ट क्लास में पास हो गए। इसे स्वयं विश्वविद्यालय के कारनामे पर सवाल खड़ा होता है। अपूर्व राय रोल नंबर 188 19403 एमएससी फाइनल ईयर केमिस्ट्री का छात्र था।

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उसने द्वितीय पेपर दिया भी नहीं था। इसके बाद भी विश्वविद्यालय प्रशासन ने उसे फर्स्ट डिवीजन से पास कर डिग्री दे दी,जबकि श्री राम गुलरिया कुरावन महाविद्यालय गुलरिया कुरावन महाविद्यालय के परीक्षा इंचार्ज ने विश्वविद्यालय प्रशासन को भेजी गई अटेंडेंस शीट में इन छात्रों को अनुपस्थित दिखाया था साथ ही उनकी शादी कापियां भी विश्वविद्यालय प्रशासन को भेज दी थी। अब सब मामले पर लीपापोती करते हुए जांच का नाटक कर रहे हैं कोई चाहे कोई सचिव हो या कुलपति हो।

कोई भी साफ तरीके से बात करने को तैयार नहीं है

वर्तमान कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित के कार्यकाल में विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार की जांच सीबीआई से कराने की आवाज उठी। लेकिन वह आवाज एन केन प्रकारेण दब गई। अवध विश्वविद्यालय के कुलपति पर जो आरोप लगाए गए हैं, उनमें प्रमुख रूप से विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार को दोबारा तोड़कर उस पर पत्थर लगा कर 1000000 रूपया फिजूलखर्ची करना विश्वविद्यालय में अनियमित निर्माण कार्य कराए जाने के लिए वित्त समिति की बैठक दिनांक 13 अगस्त 2019 द्वारा विश्वविद्यालय की सावत जमा को तोड़ने जमा को तोड़ने का निर्णय पूरी तरह असंवैधानिक है। विश्वविद्यालय का एक द्वार अर्ध निर्मित होने के बाद उस पर कोई कार्यवाही ना करना ठेकेदारों को बचाने का आरोप लगाया गया है। विश्वविद्यालय के दीक्षा भवन के सामने पूर्व निर्मित द्वार को तोड़कर फिर से बना कर धन की बर्बादी करना।

धन फिजूलखर्ची किया जा रहा

इसी के साथ विश्वविद्यालय में डिजिटाइजेशन के नाम पर पूर्व के वर्षों सन 1976 से अद्यतन तक जाटों का स्कैनिंग कर डिजिटल रूप में संग्रह किए जाने के स्थान पर लेमिनेशन कराए जाने का निर्णय विश्वविद्यालय का लगभग 6 करोड रुपए करोड रुपए का अनर्गल खर्च करना वित्तीय अनियमितता की श्रेणी के अंतर्गत आता है। विश्वविद्यालय में डिजिटाइजेशन के नाम पर पर समस्त कार्यों को ऑनलाइन कराए जाने के नाम पर विश्वविद्यालय का धन फिजूलखर्ची किया जा रहा है।

एक ही एजेंसी को विभिन्न नामों से कार्य आवंटित किए जा रहे हैं। समस्त परीक्षा कार्य ऑनलाइन हो जाने के बावजूद प्रवेश पत्रों जांच पत्रों के मुद्रण के नाम पर धन की बर्बादी की गई। विश्वविद्यालय में छात्रों की सुरक्षा में सूचनाओं के लिए रक्षक ऐप के नाम पर लाखों रुपए की बंदरबांट की गई। विश्वविद्यालय में बाहर उपलब्ध होने के बाद भी तीन अतिरिक्त नए वाहनों की फिजूलखर्ची कर खरीदा गया। समर सत्ता कुंभ के नाम पर आईटीआई परिसर में बनाई गई सड़क पर लाखों रुपया खर्च कर दिया गया, जो 1 वर्ष में ही टूट गई। जिस पर कोई कार्यवाही कुलपति द्वारा नहीं किया गया!

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चहेतों को कर रहे नियुक्त

विश्वविद्यालय की आईटीआई परिसर आईटीआई परिसर में दो शौचालय का निर्माण लगभग ₹5000000 में कराया गया उसी तरह आईआईटी कैंपस में भारत सरकार द्वारा प्रदान की गई राशि को बिना वित्त अधिकारी के भुगतान करा कर अपने चहेतों को आर्थिक लाभ प्रदान किया गया हैं। कुल पद पर यह भी आरोप है कि आईआईटी कैंपस में नियमित वरिष्ठ प्रोफेसरों के स्थान पर अपने चहेते मनमाने ढंग से नियम विरूद्ध तरीके से नियुक्तियां करके-करके उन्हें आर्थिक लाभ पहुंचाया है।

T E Q I P-l l l योजना अंतर्गत भारत सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए धन का बड़े पैमाने पर बंदरबांट किया गया है। विश्वविद्यालय में पर्याप्त तृतीय और चतुर्थ और चतुर्थ और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की होने के बाद भी अपनी चाहते फर्मों के माध्यम फर्मों के माध्यम से अपने चहेतों को आउटसोर्सिंग के माध्यम से रखा जा रहा है, जिससे विश्वविद्यालय को इसी तरह आर्थिक नुकसान पहुंचाया जा रहा है !

धन का बंदरबांट हुआ

विश्वविद्यालय में छात्र संख्या ना उपलब्ध होने के बावजूद भी नित्य नए विषयों को प्रारंभ किया जा रहा है, जिसमें संविदा पर अपने चहेतों को शिक्षक अतिथि प्रवक्ता रखे जाने के साथ विश्वविद्यालय को आर्थिक नुकसान पहुंचाया जा रहा है। विश्वविद्यालय में वर्तमान कुलपति के कार्यकाल में कराए गए तमाम निर्माण कार्य तोड़कर पुनः उसी स्थान पर निर्माण कराकर विश्वविद्यालय के धन का बंदरबांट किया गया है।

इसी तरह विश्वविद्यालय की क्रीड़ा परिषद का 1600000 रुपए का खर्च किया जाना भी जांच का विषय है। शासन द्वारा निर्धारित दर से 12 गुना से अधिक पर अपनी चाहती फर्म को उपाधि मुद्रा का कार्य नियम विरुद्ध तरीके से दिया जाना भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है, जबकि इसके पूर्व शासन द्वारा निर्धारित दर पर विश्वविद्यालय कर्मचारी द्वारा उक्त कार्य कंप्यूटर द्वारा उक्त कार्य किया जाता था।

वर्तमान कुलपति के ही कार्यकाल में सीपीएमटी प्रवेश परीक्षा का संपादन का दायित्व मिला था। वह तो प्रवेश परीक्षा का कार्य स्थगित होने के बाद वक्त मद में विभिन्न प्रकार के भुगतान संबंधी अनियमितताएं प्रकट में आई इसमें भी छात्रों का पैसा वापस न करके करके जहां भ्रष्टाचार किया गया हैं। वहीं विश्वविद्यालय केधन का अपव्यय किया गया है !

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विश्वविद्यालय के धन की लूट शामिल

कुलपति पर केंद्रीय पुस्तकालय में पुस्तकों की खरीद फरोख्त पर बड़े पैमाने पर अपने चहेते रिश्तेदारों के माध्यम से किताबों का खरीद-फरोख्त किया जाना विश्वविद्यालय के धन की लूट शामिल है ! इसी तरह विश्वविद्यालय में एनएएसी मूल्यांकन को आधार बनाकर अथवा मानक भवनों का आनन-फानन में मानक भवनों का आनन-फानन में निर्माण कराया जाना भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। कुलपति ने विश्वविद्यालय के फर्नीचर का क्रेज एम के माध्यम से अपने चहेतों को दिया गया जबकि सरकारी धन का दुरुपयोग किया गया जिसे कम दर परकिया जा सकता था !

‌विश्वविद्यालय में यूजीसी द्वारा 12वीं पंचवर्षीय योजना पंचवर्षीय योजना केशांपेट विश्वविद्यालय द्वारा अपने निजी स्रोतों से करोड़ों का भुगतान कर दिया गया, जबकि यूजीसी द्वारा विश्वविद्यालय को आज तक कोई ग्रांट नहीं मिली। यह सब आरोप डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय कर्मचारी परिषद के राजेश कुमार पांडे अध्यक्ष ने लगाते हुए अपने पत्र मेमो 2019 दिनांक 5 दिसंबर 2019 को माननीय कुलाधिपति महोदया राजभवन लखनऊ को पंजीकृत डाक द्वारा भेज कर पूरे प्रकरण की जांच कराए जाने का अनुरोध किया है।

फिक्स डिपाजिट की गई

इसी संबंध में महामहिम राष्ट्रपति माननीय रामनाथ कोविंद जी को भी एक रजिस्ट्री पत्र भेजकर पूरे प्रकरण की जांच सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश से कराए जाने की मांग पूर्व छात्रसंघ मंत्री साकेत एन बी सिंह ने की है। उधर समाजवादी छात्र सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिमेष प्रताप सिंह राहुल व प्रांतीय सचिव अनुराग सिंह ने डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में हो रहे भ्रष्टाचार के आरोपों को सही बताते हुए कहा आज उक्त विश्वविद्यालय में जिस तरह से कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित द्वारा किया जा रहा है उससे डॉ राम मनोहर मनोहर लोहिया की आत्मा को ठेस पहुंच रही है और पूरे प्रकरण की जांच होनी चाहिए इस विश्वविद्यालय में पूर्व कुलपति और द्वारा मेडिकल कॉलेज की स्थापना के लिए कई करोड़ों रुपए की धनराशि इकट्ठा कर फिक्स डिपाजिट की गई थी।

उक्त कुलपति द्वारा उस धन को भी पानी की तरीके खर्च कर दिया इसी तरह विश्वविद्यालय को ग्रीनरी योजना के तहत कई लाख के के पौधे लगाए गए जो आज कहीं नहीं दिखाई पड़ रहे हैं। फर्जी शिक्षकों की नियुक्ति कर ली गई। कुलपति द्वारा औषधि खोज करार किया गया , लेकिन नतीजा शून्य ही दिखाई पड़ रहा है। नकल कराने के आरोप में विश्वविद्यालय के अंतर्गत 171 महाविद्यालयों के परीक्षा केंद्रों को बनाने से रोक दिया गया जिन्हें ब्लैक लिस्ट घोषित कर दिया गया। लेकिन बाद में भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबे लोग आर्थिक बल के आधार पर पुनः परीक्षा परीक्षा केंद्र बनाने में सफल रहे।

ऐसे किया गठन

इसी तरह अध्यापकों के मामले में भी रहा विश्वविद्यालय में पुरातन छात्र परिषद का गठन किया गया, जिसमें जो पदाधिकारी बनाए गए वह अवध विश्वविद्यालय में कभी शिक्षा आप ही नहीं किए केवल साकेत महाविद्यालय के छात्रों का जो कुलपति के चहेते के चहेते थे उन्हें पदाधिकारी बनाकर कार्यक्रम प्रतिवर्ष आयोजित किए गए और अपने चहेते लोगों को ही सम्मानित कर अपनी पीठ थपथपा ने का काम किया है। इस तरह विश्वविद्यालय के विकास के नाम पर करोड़ों रुपए की हेराफेरी कर दी गई, जिसकी जांच होना आवश्यक है।

रिपोर्टर - ‌नाथ बख्श सिंह,अयोध्या

Rahul Joy

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