पान का जायका हुआ दुर्लभः अनुदान भी पान की खेती को नहीं दे सका जीवनदान

पान की भीठ बनाने के लिए बांस,सेठा,रस्सी,और पुआल अथवा पतवार की भारी आवश्यकता करनी पड़ती है। इसमें लगभग 1 से 2 लाख रुपये का खर्च किसान के हिस्से में आता था।

Rahul Joy
Published on: 3 Jun 2020 5:44 AM GMT
पान का जायका हुआ दुर्लभः अनुदान भी पान की खेती को नहीं दे सका जीवनदान
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beetel cultivation

हरदोई: जिले में पान की पैदावार करने वाले किसान बदहाली का शिकार है।पान की पैदावार न होना और बाजारों में पान की कम खपत के कारण पान किसान बदहाल है। सरकार के द्वारा पान की खेती को बढ़ावा देने के लिए दिया गया अनुदान भी इस खेती को संजीवनी नही दे सका है।

75 फीसदी पान की खेती

हरदोई जनपद के सण्डीला और कछौना इलाके पान की खेती के गढ़ माने जाते थे। हालांकि जिले की बिलग्राम तहसील में भी पान की खेती होती थी लेकिन वह न के बराबर लेकिन सण्डीला कछौना में दर्जन भर से अधिक ऐसे गांव थे जहां हरदोई 75 फीसदी पान की खेती होती थी।पान की खेती करने के लिए बड़ी व्यवस्था करनी पड़ती थी और उसको भीठ और बरेजा कहा जाता था।इसकी खेती करने वालों को बसीठ बोला जाता था जोकि चौरसिया के नाम से प्रसिद्ध है।

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2 लाख का खर्च

पान की भीठ बनाने के लिए बांस,सेठा,रस्सी,और पुआल अथवा पतवार की भारी आवश्यकता करनी पड़ती है। इसमें लगभग 1 से 2 लाख रुपये का खर्च किसान के हिस्से में आता था। इसके बाद इस भीठ में पान की बेल लगाई जाती है और उसको मिट्ठी के पके बर्तन जिसको इस भाषा मे लोट कहा जाता है उससे सींचा जाता था। गर्मी हो अथवा भीषण सर्दी इस बरेजा में दिन में 3 समय पानी डाला जाता था।

इस क्षेत्र के बघुआमऊ, रैसों, कटियामऊ, गौहानी, लालताखेड़ा,भानपुर,बरुआ,ओनवा,कलौली, नयागांव आदि ऐसे गांव थे जहां से कछौना की पान मंडी लगती थी। सप्ताह में बुधवार और रविवार को लगने वाली इस मंडी में भारी मात्रा में पान आता था जहां गैर प्रान्त व गैर जिले के व्यापारी आकर पान खरीदते थे।यहां का बनारसी,कलकतिया, दसौरी, बंगलादेशी पान की किस्म की पैदावार अधिक होती थी और यही पान बाहर भेजा जाता था। उस समय अच्छी पैदावार अच्छी बिक्री की वजह से पान किसानों के दिन बेहतर थे।

किसानों की आमदनी बंद

लेकिन जैसे ही पान मसाला आदि बाजारों में आया पान किसानों के लिए यह बुरे दिन शुरू कर गया। पान की खपत कम होते ही पैदावार कम हो गयी तो किसानों की आमदनी बन्द हो गयी। हालांकि अभी कुछ समय पहले से पान की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसान ने पान किसानों को अनुदान देने की पहल की लेकिन उसमें भी भ्रष्टाचार की जड़ लग गई जिससे पान किसानों को बहुत लाभ नही मिला।पान किसान रामबिलास चौरसिया, महेश चौरसिया, लाल बहादुर चौरसिया, मदन चौरसिया आदि ने बताया कि अब पान का धंधा बहुत महंगा है और लागत भी नही निकल पाती जिससे वह लोग इस तरफ रुख कम कर रहे है।

रिपोर्टर- मनोज तिवारी, हरदोई

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